nadi aur pahad ke beech samvad
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एक बार नदी ने मन में सोचा “क्या मैं अपनी पूरी जिंदगी इसी तरह बहती रहूंगी”? क्या मुझे कुछ दिन का आराम नहीं मिल सकता है?
उसै एक सलाह चाहिए थी तो उसे पहाड़ के सामने अपने विचार रखे, उसकी बात सुनकर पहाड़ बहुत जोर से हंसा और बोला, बहन नदी जरा मुझे देखो “मैं कितने सालो से एक ही जगह पर खड़ा हूं |”
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नदी बोली तुम बहुत मजबुत और एक ही जगह पर स्थिर हो तो तुम एक ही जगह खड़े रहकर कैसे थक सकते हो |
मुझे देखो में हमेशा बहती रहती है। मुझे तो एक भी मिनट आराम करने का वक्त नहीं मिलता है। मैं बहुत थक जाती हूं।
पहाड़ ने नदी को समझाया |
पहाड़ फिर से हँसा और बोला, ऐसा तुम्हें लगता है की मैं नहीं थकता हूं लेकिन एक जगह पर खड़े रहकर मैं बहुत ठक जाता हूँ |पहाड़ बोला, ” मैं हर रोज यही पेड़, यही आसमान देख कर थक गया हूँ ” |
“मेरा भी मन करता है की मैं तुम्हारी तरह बहता रहूँ , एक जगह से दसरी जग जाऊं , नए नए गाँवो में , नए जंगलो में जाऊं,” मैं भी खुलकर जीना चाहता हूं तुम्हारी तरह सब मुझे भी प्यार दें |
नदी बीच में ही बोली, बहुत अजीब बात है तुम्हारी जिंदगी तो बहुत आरामदयाक और खुशाल है तब भी तुम खुश नहीं हो|पहाड़ मुस्कुरा कर बोला, बहन ये सब तुम्हें समझ नहीं आएगा देखो , “तुम सब के द्वारा पूजा जाती हो, तुम दुसरो के लिए बहती हो। और इतना ही नहीं जो कुछ बचाता है वो तुम समुद्र को अर्पित कर देती हो “|
ये सुनकर नदी खुश हो जाती है और पूरे जोश के साथ पहाड़ से कहती है ,तुम बिलकुल सही कह रहे हो पहाड़ भाई |”मेरी जिंदगी का सबसे महत्वपूर्ण उदेश्य दुसरो को जीवन देना है” मुझे ये बात समझाने के लिए आपका बहुत धन्यवाद। और खुशी खुशी तेज आवाज करती हुई बहने लगती है।
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