nadi ka mehetva atmakatha
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Explanation:
नदी प्रकृति के जीवन का एक महत्वपूर्ण अंग है। इसकी गति के आधार पर इसके बहुत नाम जैसे – नहर, सरिता, प्रवाहिनी, तटिनी, क्षिप्रा आदि होते हैं। जब मैं सरक-सरक कर चलती थी तब सब मुझे सरिता कहते थे। जब मैं सतत प्रवाहमयी हो गई तो मुझे प्रवाहिनी कहने लगे।
जब मैं दो तटों के बीच बह रही थी तो तटिनी कहने लगे और जब मैं तेज गति से बहने लगी तो लोग मुझे क्षिप्रा कहने लगे।साधारण रूप से तो मैं नदी या नहर ही हूँ। लोग चाहे मुझे किसी भी नाम से बुलाएँ लेकिन मेरा हमेशा एक ही काम होता है दूसरों के काम आना। मैं प्राणियों की प्यास बुझाती हूँ और उन्हें जीवन रूपी वरदान देती हूँ। नदी का जन्म : मैं एक नदी हूँ और मेरा जन्म पर्वतमालाओं की गोद से हुआ है। मैं बचपन से ही बहुत चंचल थी। मैंने केवल आगे बढना सीखा है रुकना नहीं। मैं एक स्थान पर बैठने की तो दूर की बात है मुझे एक पल रुकना भी नहीं आता है। मेरा काम धीरे-धीरे या फिर तेज चलना है लेकिन मै निरंतर चलती ही रहती हूँ।
मैं केवल कर्म में विश्वास रखती हूँ लेकिन फल की इच्छा कभी नहीं करती हूँ। मैं अपने इस जीवन से बहुत खुश हूँ क्योंकि मैं हर एक प्राणी के काम आती हूँ, लोग मेरी पूजा करते हैं, मुझे माँ कहते हैं, मेरा सम्मान करते हैं। मेरे बहुत से नाम रखे गये हैं जैसे – गंगा, जमुना, सरस्वती, यमुना, ब्रह्मपुत्र, त्रिवेणी। ये सारी नदियाँ हिंदू धर्म में पूजी जाती हैं।