Hindi, asked by zano942, 11 months ago

nadi ki atmakatha matdan par nibandh hindi

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Answered by kiranraut945
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नदी हूं आज मैं आपको मेरे उद्गम से लेकर अत तक के सफर की आत्मकथा सुनाने जा रही हूं. मेरे उद्गम के कई स्थान है मैं कभी हिमालय से बहती हूं तो कभी पहाड़ों से, झरनों से तो कभी मैं वर्षा के जल से अस्तित्व में आती हूं. मैं जब बहना चालू करती हूं तब मैं बहुत कम स्थान घेरती हूँ.

लेकिन जैसे-जैसे मैं मैदानी क्षेत्रों की ओर बढ़ती हूं वैसे-वैसे मेरा आकार भी बड़ा होता जाता है और मैदानी क्षेत्रों में पहुंचने के बाद मेरा आकार इतना बड़ा हो जाता है कि मेरे एक तट से दूसरे तट पर जाने के लिए नाव या पुल का सहारा लेना पड़ता है.

यह उसी प्रकार है जिस प्रकार मनुष्य जन्म लेता है तो छोटा होता है और जैसे-जैसे समय बीतता है वह बड़ा होता चला जाता है उसी प्रकार जब मेरा जन्म होता है तो मैं बहुत छोटी होती हूं लेकिन दूरी बढ़ने के साथ मैं भी बड़ी होती जाती हूं.

मैं जब बहना शुरू करती हूं तब मेरे सामने कई प्रकार की बाधाएं आती हैं जैसे कभी कोई बड़ा पहाड़ आ जाता है तो मैं डरती नहीं हूं मैं उसे काट कर आगे बढ़ जाती हूं. मुझ में बहुत शक्ति होती है मैं किसी भी कठोर से कठोर वस्तु को काट सकती हूं चाहे वो बड़ा पहाड़ी क्यों ना हो.

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मैं जब बहती हुई पहाड़ों से गिरती हूं तब मैं बहुत तेज गति से मैदानी क्षेत्रों की ओर बढ़ती हूं इस समय मेरे आगे कुछ भी आ जाए मैं उसे अपने साथ बहा ले जाती हूं. और जब मैं मैदानी क्षेत्रों में पहुंची हूं तब भूमि समतल होने के कारण मेरा बहाव भी कम हो जाता है फिर मैं सांप की तरह टेढ़ी-मेढ़ी बहती हूं इसी स्थान पर मुझ में सबसे ज्यादा जल समाया हुआ होता है.

मैं जब वहां बहना चालू करती हूं तब मैं अकेली नहीं होती हूं मेरी जैसी कई नदियां और भी होती है वह बीच रास्ते में मुझसे मिलती है और मुझ में समा जाती हैं जिससे मैं और विशालकाय हो जाती हूं.

मैं बहती हुई जिस भी क्षेत्र से गुजरती हूं वहां की भूमि को हरा-भरा कर देती हूं वहां पर सुख और शांति ला देती हूं. और जब मैं किसी बंजर भूमि पर पहुंचती हूं तो मैं साथ में उपजाऊ मिट्टी भी साथ लेकर चलती हूं और वहां पर छोड़ देती हूं उसके बाद वहां पर कोई कमी नहीं रहती है वहां पर भी फसलें लहराती हैं चारों और हरियाली छा जाती है.

मेरा जल पीकर जंगल की सभी प्राणी खुश हो जाते हैं उन्हें नया जीवन मिल जाता है मैं पूरे जंगल को हरा-भरा रखती हूं. जैसे-जैसे मैं आगे बढ़ती गई इंसानों ने मेरे ऊपर पुल बना दिए और मेरे तटो के पास आकर बस गए.

गर्मियों के दिनों में जब बारिश नहीं होती है और अकाल पड़ जाता है तो सभी लोग मेरे ऊपर निर्भर होते हैं मेरे जन्म से ही उनको सभी प्राणियों को नया जीवन मिलता है. मैं अकाल के समय में भी मेरे ऊपर निर्भर प्राणियों का साथ नहीं छोड़ती हूँ.

मैंने इस पृथ्वी को बदलते देखा है मैंने कई राजाओं को रंक बनते देखा है मैंने कई बड़ी-बड़ी लड़ाईयां देखी है मैंने किसी वीर को इतिहास रचते देखा है.

कुछ लोग मुझे देवी की समान पूजते है यह देख कर मुझे बहुत अच्छा लगता है लेकिन जब वे ही लोग मुझ में गंदगी फैलाते हैं तो मुझे बहुत ही बुरा लगता है क्योंकि मेरे जल में कई और प्राणी भी अपना जीवन जीते हैं और गंदगी फैलने के कारण मेरा जल प्रदूषित हो जाता है जिस कारण मुझमें समाए हुए प्राणी जैसे मछली, कछुए, मगरमच्छ आदि का जीवन संकट में पड़ जाता है.

साथ ही मनुष्य भी मेरा ही जल पीते हैं इसलिए उनका स्वास्थ्य दिन खराब हो जाता है यह देखकर मुझे बहुत ही दुख होता है पीड़ा महसूस होती है लेकिन मैं चाह कर भी कुछ नहीं कर पाती हूं बस निरंतर बहती रहती हूं.

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कुछ लोग मुझे एक जगह से दूसरे जगह पर पहुंचने के लिए यात्रा के साधन के रुप में भी काम में लेते हैं वे लोग मुझ पर लकड़ी की नाव चलाकर एक जगह से दूसरी जगह बड़ी तेजी से पहुंच जाते है मुझे अच्छा लगता है कि मैं किसी के यात्रा के काम में भी आती हूं.

मैं बहती हुई कई गांव कई शहरों से गुजरती हूं मैं जब गांव से गुजरती हूं तो वहां के लोग मुझे आदर पूर्वक प्रणाम करते है यह देख कर मुझे बहुत अच्छा लगता है और वह मुझ में से छोटी-छोटी नहरे निकालकर अपने खेतों में ले जाते है और फसलों को पानी देते है मेरे जल से उनकी फसलें लहरा उठती है और किसानों के चेहरे पर एक अलग ही खुशी आ जाती है.

और जब मैं शहरों से निकलती है तब आसपास के लोग मुझे देखने आते हैं लेकिन शहरों के विस्तार के कारण मेरे तर्क छोटे हो गए है जिस कारण जब वर्षा का मौसम आता है

तो मैं उफान पर होती हूं तो मेरे तटों पर बनाए हुए मकान बह जाते है और लोगों के जान माल की भी हानि होती है. लेकिन इसमें मेरा कोई कसूर नहीं है वे लोग मेरे रास्ते में आते है तो मैं इसमें कुछ भी नहीं कर सकती हूं.

शहरों के लोग मुझ में कई प्रकार के प्रदूषित केमिकल और कूड़ा करकट डाल देते है जिससे मेरा जल प्रदूषित हो जाता है और फिर जो भी मेरा जल पीता है वह बीमार पड़ जाता है. यह देख कर मुझे बहुत कष्ट होता है लेकिन फिर भी मैं निरंतर बहती रहती हूं.

अंत में मैं बहती हुई मेरे लक्ष्य समुंदर तक पहुंच जाती हूं और उसमें समा जाती हूँ. इस समय मैं बहुत खुश रहती हूं.

मैं अंत में यही कहना चाहती हूं कि वर्तमान समय में बहुत अधिक प्रदूषित किया जा रहा है आप सभी से निवेदन है कि आप मुझे साफ सुथरा रखें जिससे मैं निरंतर बहती रहा हूं और सभी को जीवन देती रहू.

नदी की आत्मकथा से शिक्षा – Nadi ki Atmakatha se Siksha

नदी हमें सीख देती है कि हमेशा मुश्किलों से डरने की वजह हमें लड़ना चाहिए तभी हम अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकते है.

फटी पुस्तक की आत्मकथा | Fati Pustak ki

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