Nadi Pradushan hone ke Karan, Prabhav aur samadhan for Hindi pariyojana Karya
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कई नदियों और झीलों के रूप में पानी के प्रचुर प्राकृतिक स्रोतों पर विचार करते हुए देखे तो भारत एक समृद्ध देश है। देश को सही तौर पर “नदियों की भूमि” के रूप में उल्लेखित किया जा सकता है, भारत के लोग नदियों की पूजा देवी और देवताओं के रूप में करते हैं। लेकिन क्या विडंबना है कि नदियों के प्रति हमारा गहन सम्मान और श्रद्धा होने के बावजूद, हम उसकी पवित्रता, स्वच्छता और भौतिक कल्याण बनाए रखने में सक्षम नहीं हैं। हमारी मातृभूमि पर बहने वाली गंगा, यमुना, ब्रह्मपुत्र और कावेरी या कोई अन्य नदी हो, कोई भी प्रदूषण से मुक्त नहीं है। नदियों के प्रदूषण के कारण पर्यावरण में मनुष्यों, पशुओं, मछलियों और पक्षियों को प्रभावित करने वाली गंभीर जलजनित बीमारियाँ और स्वास्थ्य सम्बंधित समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं।
नदी प्रदूषण के कारण
नदियाँ दिन-प्रतिदिन प्रदूषित हो रही हैं। कई नदियों में चलने वाली विभिन्न सरकारी परियोजनाओं के बावजूद जल प्रदूषण को प्रतिबंधित करने या रुकने का कोई भी संभव परिणाम नहीं मिला है। हम किसे दोषी ठहरायें? जल प्रदूषण के बहुत सारे कारक हैं जो नदी के पानी की समग्र गुणवत्ता को कम करते हैं। सबसे महत्वपूर्ण कारकों में से कुछ हैं:
औद्योगिक अपशिष्टों, रसायनों के मिश्रणों और भारी धातुओं को पानी में छोड़ दिया जाता है। इन्हें साफ करना मुश्किल होता है।
कृषि अपशिष्ट, रसायन, उर्वरक और कृषि में इस्तेमाल किए गए कीटनाशक नदी के जल को दूषित करते हैं।
प्राकृतिक बारिश भी प्रदूषण साथ लाती है क्योंकि यह प्रदूषित हवा के साथ गिरती है। हम इसे अम्लीय वर्षा कहते हैं जो मिट्टी में पहुँचकर हानिकारक पदार्थों को उत्पन्न करती हैं।
नदियों में प्रवाहित किये गये घरों से निकलने वाले घरेलू अपशिष्ट और गंदे नाले नदियों में प्रदूषण के स्तर को बढ़ा देते हैं।
प्लास्टिक थैले और वस्तुएं, ठोस अपशिष्ट और फूल-मालाओं का नदियों में नियमित अपवहन प्रदूषण का दूसरा कारण है।
जलाशयों के पास खुले स्थानों पर कई प्रकार के धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन करने वाले लोग भी नदियों के प्रदूषण में योगदान करते हैं।
जलाशयों में पशुओं को नहलाना, वाहनों और कपड़ो को धोना भी प्रदूषण का अन्य कारण है।
मानव अवशेषों को नदियों में प्रवाहित करना प्रदूषण का एक अन्य कारण है, आंशिक रूप से जला हुआ शरीर और मृत शरीर स्वास्थ्य संबंधी गंभीर खतरे पैदा करते हैं।
नदी प्रदूषण के बारे में कुछ औचित्य
केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी), विज्ञान और पर्यावरण केंद्र (सीएसई) द्वारा किए गए सर्वेक्षणों के सांख्यिकी आँकड़ों ने प्रदूषण के संदर्भ में नदी के प्रदूषण के कुछ कठोर स्पष्टीकरण दिये हैं, जिसने इसे गंभीर चिंता का विषय बना दिया है:
445 नदियों पर सर्वेक्षण किया गया है, सर्वेक्षण से पता चला कि इनमें से एक चौथाई नदियाँ भी स्नान के योग्य नहीं है।
भारतीय शहर हर दिन 10 अरब गैलन या 38 बिलियन लीटर नगरपालिका वाला अपशिष्ट जल उत्पन्न करते हैं, जिनमें से केवल 29% का उपचार किया जाता है।
केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने यह भी कहा है कि 2011 में किए गए सर्वेक्षण में लगभग 8,000 शहरों में केवल 160 सीवेज प्रणाली और सीवेज उपचार संयंत्र थे।
भारतीय शहरों में दैनिक रूप से उत्पादित लगभग 40,000 मिलियन लीटर सीवेज में से केवल 20% का उपचार किया जाता है।
प्रदूषित गंगा और यमुना
यमुना नदी एक कचरे के ढेर का क्षेत्र बन चुकी है जिसमें दिल्ली का 57% से अधिक कचरा फेंका जाता है।
दिल्ली के केवल 55% निवासियों को एक उचित सीवरेज प्रणाली से जोड़ा गया है।
विज्ञान और पर्यावरण केंद्र (सीएसई) के अनुसार, यमुना नदी के प्रदूषण में लगभग 80% अनुपचारित सीवेज है।
गंगा को भारत में सबसे प्रदूषित नदी माना जाता है।
गंगा नदी में नियमित रूप से लगभग 1 बिलियन लीटर कच्चे अनुपचारित सीवेज को प्रवाहित किया जाता है।
गंगा नदी में प्रति 100 मिलीलीटर जल में 60,000 फ्रैकल कॉलिफॉर्म बैक्टीरिया होते हैं, जो मानव स्वास्थ्य के लिए खतरा है