Hindi, asked by riponahmed, 9 months ago

nadiyan ke mahatva par 20 panktiyan

Answers

Answered by Mrunalmeena24
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Answer:

म जिसे पानी, हवा, भोजन कहते हैं और जिस पृथ्वी पर चलते हैं, वे वस्तुएं नहीं हैं। हमने नदियों को कभी भी केवल ...

Explanation:

Answered by sarfaraj78615
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ANSWER :

मैं नदी हूँ। सर सर का स्वर करते हुये चलती हूँ इसलिये लोग मुझे सरिता भी कहते हैं। तेज प्रवाह में होने के कारण प्रवाहिनी भी कहलाती हूँ। मेरे छोटे रूप को नहर कहते हैं।

‘जल’ मेरा जीवन, मेरी पहचान है। मेरे दोनों किनारे मेरा ही अंग हैं। मेरी धड़कनें हैं उठती गिरती लहरें। मेरा काम, धर्म सब है – निरन्तर बहना, जो सांसों की तरह सदैव चलता है।

पहाड़ों की बर्फीली कन्दराओं पर सूर्य की तपिश से मेरा जन्म होता है और मैं चल पड़ती हूँ संगीतमय ध्वनि के साथ। तेजी से कभी मैं झरनों के रूप में खूबसूरत वादियों में गिरती हूँ, फिर उठती गिरती बहती रहती हूँ। घाटियों में दोनों ओर वृक्षों की लम्बी कतारें मुझमें अपनी छवि निहारती हैं। आकाश, सूर्य चाँद, सितारे सब मेरे साथ साथ चलते हैं। कभी चट्टानें मेरे रास्ते में आ जाती हैं तो मैं उनसे टकरा का अपना रूख बदल लेती हूँ। संसार के हर देश में स्थानीय लोगों के दिये नामों से मुझे पुकारा जाता है। सबसे बड़ी मैं अमरीका में मिसीसिपी नदी हूँ। भारत में मैं गंगा, यमुना, गोदावरी, गोमती, ब्रह्मपुत्र, कावेरी और कृष्णा हूँ। मैं हर किसी के लिये महत्व रखती हूँ, सबके काम आती हूँ।

बड़ी बड़ी सभ्यताओं और संस्कृतियों ने मेरे तट पर ही जन्म लिया। बड़े बड़े नगरों, उद्योगों को मेरे तट पर बसाया गया है। गया, प्रयाग, इलाहाबाद, हरिद्वार तो मेरे कारण ही तीर्थस्थल बन गये हैं, जहाँ त्योहार के दिनों में लोग स्नान करने आते हैं।

मेरे पानी से कृषक खेत सींचते हैं, धरती हरी भरी रहती है। पीने का पानी भी मैं हूँ। उद्योगधन्धों में भी मेरा प्रयोग होता है। बिजली मेरे पानी से बनती है। मुझ पर बाँध और पुल बना कर इंसान ने मुझे जीत लिया है। नौका और जहाज मुझे चीरते हुए आगे निकल जाते हैं। अब तो बच्चे ‘रिवर राफिंटग’ करते हैं। मुझमें जाल डाल कर मछुआरे मछलियाँ निकालते हैं। मेरे पानी में कई तरक की वनस्पति, मछलियां, मगरमच्छ पलते हैं। किन्तु आजकल शहरों की सारी गन्दगी डाल कर तुम सबने मुझे गंदा कर दिया है। अब सरकार सफाई अभियान चला रही है ताकि मैं निर्मल नदी के रूप में सागर में मिलं अब मैं पुनः स्वच्छ एवं निर्मल हो जाऊँगी।

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