Hindi, asked by Ashuvan6437, 1 year ago

Nadiyon se labh nibandh 150 words

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Answered by iammanpreet7099
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हम नदी के पानी को पवित्र कलश में भरकर पानी को धन्यवाद देने के लिए प्रार्थना करते हैं क्योंकि पानी वरदान है; यह जीवनदाता और जीवन को बनाए रखने वाला है।



आध्यात्मिक स्तर पर यह माना जाता है कि पानी की स्वच्छ करने की शक्ति आंतरिक बाधाओं को दूर करने में सहायता करती है। जब हम नदी में डुबकी लगाते हैं तो पानी हमारे नकारात्मक विचारों को अवशोषित कर लेता है। जब ऋषि नदियों के किनारे तपस्या करते हैं तो नदी उन नकारात्मक विचारों से मुक्त हो जाती है और पानी पवित्र हो जाता है। नदी का पानी वह पवित्र मार्ग है जो पापियों को पवित्र पुरूषों और महिलाओं के साथ जोड़ता है और नदी के किनारे उन लोगों की आध्यात्मिक ऊर्जा से भर जाते हैं जो यहां ध्यान लगाते हैं।


पत्थरों, बजरी, जड़ी-बूटियों और पौधों को छूकर बहते पानी के कारण नदी के भौतिक, रासायनिक और जैविक गुण बढ़ जाते हैं। उदाहरण के लिए, गंगा नदी के निश्चित औषधीय गुण पहाड़ों की हिमालय श्रृंखला में पाई जाने वाली औषधीय जड़ी-बूटियों की उपस्थिति से बढ़ते हैं। इस तरह के पानी में लाभकारी रेडियोधर्मिता सूक्ष्म स्तर पर पाई जाती है।

यह आवश्यक है कि नदी के पानी में उपस्थित भौतिक गुणों को पवित्र रखा जाए जिससे कि गहन आध्यात्मिक गुण प्रकट हो सकें। इस तरह का आपसी संबंध पंतंजली आष्टांग योग द्वारा समझाया गया है। देवत्व जगाने के लिए केवल आठ प्रकारों की स्वच्छता आवश्यक है, नदियों के भौतिक, रासायनिक और जैविक गुणों को उनके प्राचीन रूप में बनाए रखना आवश्यक है ताकि हमें हमारे पापों से मुक्ति दिलाना उनके लिए संभव हो सके।


हमें गरीबों और कम विशेषाधिकार प्राप्त लोगों की पीड़ा को दूर करने के लिए आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा देना चाहिए। हालांकि, अर्थ या भौतिक स्तर से जुड़ा हुआ आर्थिक विकास या गतिविधियां इस तरह से अपनाई जानी चाहिए कि वह धर्म की स्थापना करते हुए लंबे समय तक सामाजिक कल्याण बनाए रखे और पर्यावरण की सुरक्षा करें। फिर इस तरह से सेवा क्षेत्र का विकास करें कि वह कम से कम ऊर्जा का प्रयोग करके पर्यावर्णीय सद्भावना के साथ तालमेल बिठा सके। प्रकृति की यात्राएं उन विद्यार्थियों और रोगियों के लिए लाभकारी रहेंगी जो प्राकृतिक जल निकायों और उनके परिप्रदेशों का प्रत्यक्ष रूप से अनुभव ले सकते हों।

शहरों के नालों से बहने वाले पानी को यदि साफ भी कर दिया जाए तो भी उसे नदियों में नहीं बहाना चाहिए। इसकी बजाय उसे सिंचाई उद्देश्यों के लिए प्रयोग में लाना चाहिए। विकास के नाम पर होने वाली अंधाधुंध गतिविधियों से पहाड़ी इलाकों को बचाना चाहिए और ऐसे इलाकों को कूड़ा मुक्त रखने के प्रयास किए जाने चाहिए। यदि अपने उद्गम स्थल पहाड़ों के पास नदियों के आध्यात्मिक और प्राकृतिक गुण पानी में मंद पड़ जाएं और पानी का रास्ता सुरंगों, नहरों और जलाशयों की तरफ मोड़ दिया जाए तो नदियां प्राकृतिक परिवेश और माहौल के संपर्क में नहीं आ पाएंगी, और इस प्रक्रिया में वह आध्यात्मिक गुण खो जाएंगे जो जल को पवित्र रखते हैं।
Answered by duragpalsingh
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नदियाँ सदैव ही जीवन दायिनी रही है । नदियाँ , प्रकृति का एक अभिन्न अंग है। नदियाँ , अपने साथ बारिस का जल एकत्र कर ,उसे भू-भाग मे पहुंचाने का कार्य करती है। गंगा, सिन्धु, अमेज़न, नील , थेम्स, यंगतिशि आदि विश्व की प्रमुख नदियां है।  

नदियों के कई सामाजिक, वैज्ञानिक व्  आर्थिक लाभ है । नदियों से जीवन के लिए अत्यन्त आवश्यक स्वच्छ जल प्राप्त होता है यही कारण है कि अधिकांश प्राचीन सभ्यताएं ,जनजातियाँ नदियों के समीप ही विकसित हुईं। उदाहरण के लिए सिंधु घाटी सभ्यता , सिंधु नदी के पास विकसित होने के प्रमाण मिले है । सम्पूर्ण विश्व के बहुत बड़े भाग मे  , पीने का पानी और  घरेलू उपयोग के लिए पानी , नदियो के द्वारा ही प्राप्त किया जाता है। आर्थिक दृष्टि से भी देखे तो नदियाँ बहुत उपयोगी होती है क्योंकि उद्योगो के लिए आवश्यक जल  नदियों से सरलता से प्राप्त किया जा सकता है । कृषि के लिए , सिंचाई एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है, इसके लिए आवश्यक पानी  नदियों द्वारा प्रदान किया जाता है । नदियाँ खेती के लिए लाभदायक उपजाऊ जलोढ़ मिट्टी का उत्तम स्त्रोत होती हैं। नदियां न केवल जल प्रदान करती है बल्कि घरेलू एवं उद्योगिक गंदे व अवशिष्ट पानी को अपने साथ बहकर ले भी जाती है। बड़ी नदियों का उपयोग जल परिवहन के रूप मे भी किया जा रहा है। सैलानिओ के लिए भी नदियों कई  मनोरंजन के साधन जैसे बोटिंग , रिवर रैफ्टिंग आदि उपलब्ध करती है जिससे पर्यटन उद्योग को बढ़ावा मिलता है। नदियो से मछली के रूप मे खाद्य पदार्थ भी प्राप्त होते है। नदियों पर बांध बनाकर उनसे हाइड्रो बिजली प्राप्त होती है ।

नदियां हमारी सदैव मित्र रही है और हमे उनसे अनेक महत्वपूर्ण लाभ होते है । हमारा कर्तव्य है कि उनका अति दोहन न करे एवं उन्हे प्रदूषित होने से बचाये।

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