नए जवद्यालय मेंअपनेपुत् का दाब्दखला जदलवानेपर अजभवावक और प्रधानाचायगके मध्य हुए
वातागलाप का संवाद लेखन कीजिए।
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Answer:
संवाद शब्द ‘वाद’ मूल शब्द में ‘सम्’ उपसर्ग लगाने से बना है। संवाद का अर्थ है वार्तालाप या बातचीत। अर्थात् दो व्यक्तियों के बीच किसी विषय पर हुई बातचीत को संवाद कहते हैं। उनके मध्य हुई बातचीत को लिपिबद्ध करना ही संवाद-लेखन कहलाता है। अच्छा संवाद लेखन करते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए-
संवाद सुनने वाले की उम्र, रुचि को ध्यान में रखना चाहिए।
वाक्यों का स्पष्ट, शुद्ध उच्चारण करना चाहिए। रोचकता और सहजता होनी चाहिए।
विषय पर पकड़ एवं संबद्धता होनी चाहिए।
मनोभावों को स्पष्ट करने के लिए विराम चिह्नों का प्रयोग आवश्यक है।
आइए संवाद लेखन के कुछ उदाहरण देखते हैं
प्रश्नः 1.
आजकल महँगाई बढ़ती ही जा रही है। इससे परेशान दो महिलाओं की बातचीत को संवाद के रूप में लिखिए।
उत्तर:
रचना – अलका बहन नमस्ते! कैसी हो?
अलका – नमस्ते रचना, मैं ठीक हूँ पर महँगाई ने दुखी कर दिया है।
रचना – ठीक कहती हो बहन, अब तो हर वस्तु के दाम आसमान छूने लगे हैं।
अलका – मेरे घर में तो नौकरी की बँधी-बधाई तनख्वाह आती है। इससे सारा बजट खराब हो गया है।
रचना – नौकरी क्या रोज़गार क्या, सभी परेशान हैं।
अलका – हद हो गई है कोई भी दाल एक सौ बीस रुपये किलो से नीचे नहीं है।
रचना – अब तो दाल-रोटी भी खाने को नहीं मिलने वाली।
अलका – बहन कल अस्सी रुपये किलो तोरी और साठ रुपये किलो टमाटर खरीदकर लाई। आटा, चीनी, दाल, चावल मसाले दूध सभी में आग लगी है।
रचना – फल ही कौन से सस्ते हैं। सौ रुपये प्रति किलो से कम कोई भी फल नहीं हैं। अब तो लगता है कि डाक टर जब लिखेगा तभी फल खाने को मिलेगा।
अलका – सरकार भी कुछ नहीं करती महँगाई कम करने के लिए। वैसे जनता की भलाई के दावे करती है। जमाखोरों पर कार्यवाही भी नहीं करती है।
रचना – नेतागण व्यापारियों से चुनाव में मोटा चंदा लेते हैं फिर सरकार बनाने पर कार्यवाही कैसे करे।
अलका – गरीबों को तो ऐसे ही पिसना होगा। इनके बारे में कोई नहीं सोचता।
प्रश्नः 2.
यमुना की दुर्दशा पर दो मित्रों की बातचीत को संवाद के रूप में लिखिए।
उत्तर:
अजय – नमस्कार भाई साहब, शायद आप दिल्ली के बाहर से आए हैं।
प्रताप – नमस्कार भाई, ठीक पहचाना तुमने, मैं हरियाणा से आया हूँ।
अजय – मैं भी अलवर से आया हूँ। तुम यहाँ कैसे?
प्रताप – दिल्ली आया था। सोचा सवेरे-सवेरे यमुना में स्नान कर लेता हूँ पर
अजय – कल मेरा यहाँ साक्षात्कार था और आज कुछ और काम था। मैं भी यहाँ स्नान के लिए आया था।
प्रताप – इतनी गंदी नदी में कैसे नहाया जाए?
अजय – मैंने भी यमुना का बड़ा नाम सुना था, पर यहाँ ती उसका उल्टा निकला।
प्रताप – इसका पानी तो काला पड़ गया है।
अजय – फैक्ट्रियों और घरों का पानी लाने वाले कई नाले इसमें मिल जाते हैं न।
प्रताप – देखो, वे सज्जन फूल मालाएँ और राख फेंककर पुण्य कमा रहे हैं।
अजय – इनके जैसे लोग ही तो नदियों को गंदा करते हैं।
प्रताप – सरकार को नदियों की सफ़ाई पर ध्यान देना चाहिए।
अजय – केवल सरकार को दोष देने से कुछ नहीं होने वाला। हमें खुद सुधरना होगा।
प्रताप – ठीक कहते हो। यदि सभी ऐसा सोचें तब न।
अजय – यहाँ की शीतल हवा से मन प्रसन्न हो गया। अब चलते हैं।
प्रताप – ठीक कहते हो। अब हमें चलना चाहिए।