नगरी क्षेत्रों की सामाजिक व्यवस्था के सामने कौन सी चुनौतियाँ हैं?
Answers
Answer with Explanation:
नगरी क्षेत्रों की सामाजिक व्यवस्था के सामने निम्नलिखित चुनौतियाँ हैं :
परिवार के ढांचे में परिवर्तन ;
शुरू के समाजों में संयुक्त परिवार की ज्यादा महानता रही है। पुराने जमाने में हर जगह संयुक्त परिवार पाए जाते थे । पर आधुनिक समय में परिवार के ढांचे में बहुत बड़ा परिवर्तन यह आया है कि अब संयुक्त परिवार काफी हद तक कम हो रहे हैं और इनकी जगह केंद्रीय परिवार आगे आ रहे। केंद्रीय परिवार के आने से समाज में भी कुछ परिवर्तन आए हैं।
परिवारों का टूटना :
पुराने समय में लड़की के जन्म को श्राप माना जाता था । उसको शिक्षा भी नहीं दी जाती थी। धीरे-धीरे समाज में जैसे-जैसे परिवर्तन आए औरतों ने भी शिक्षा लेनी प्रारंभ कर दी। पहले विवाह के बाद औरतें सिर्फ पति पर निर्भर होती थी पर आजकल के समय में काफी औरतें आर्थिक पक्ष से मजबूत है और वह पति पर कम निर्भर है । कई स्थानों पर तो पत्नी की तनख्वाह पति से ज्यादा है। इन हालातों में परिवारिक विघटन की स्थिति पैदा होने का खतरा हो जाता है । इसके अतिरिक्त पति-पत्नी की स्थिति आजकल बराबर होती है जिसके कारण दोनों का अहंकार एक दूसरे से नीचा होता । इसके कारण दोनों में लड़ाई झगड़ा शुरू हो जाता है और इससे बच्चे भी प्रभावित होते हैं। इस तरह ऐसे कई और कारण है जिनके कारण परिवार के टूटने के खतरे बढ़ जाते हैं और बच्चे तथा परिवार दोनों मुश्किल में आ जाते हैं।
पारिवारिक एकता में कमी :
पुराने जमाने में विस्तृत परिवार हुआ करते थे पर आज का परिवारों में यह एकता और विस्तृत परिवार खत्म हो गए है । हर किसी के अपने अपने आदर्श हैं । कोई एक दूसरे के दखल अंदाजी पसंद नहीं करता । इस तरह वह इकट्ठे रहते हैं , खाते पीते हैं पर एक दूसरे के साथ कोई वास्ता नहीं रखते उनमें एकता का अभाव होता है।
व्यक्तिवादी दृष्टिकोण:
आजकल के समय में नगर में परिवार के सभी सदस्यों में दृष्टिकोण व्यक्तिगत हो गए हैं। प्रत्येक सदस्य केवल अपने लाभ के बारे में ही सोचता है। प्राचीन समय में तो ग्रामीण समाज में परिवार की इच्छा के आगे व्यक्ति अपनी इच्छा को दबा देता था। व्यक्तिवादिता पर सामूहिकता हावी थी। व्यक्ति की व्यक्तिगत इच्छा की कोई कीमत नहीं होती थी । परंतु आजकल के शहरी समाजों में यह चीजें बिल्कुल ही परिवर्तित हो गई है । व्यक्ति अपनी इच्छा के आगे परिवार की इच्छा को दरकिनार कर देता है । उसके लिए परिवार की इच्छा का कोई मूल्य नहीं रह गया है। उसके लिए केवल उसकी इच्छा का ही महत्व है । व्यक्ति का दृष्टिकोण अब व्यक्तिवादी हो गया है।
स्त्रियों की स्थिति में परिवर्तन ;
शहरी स्त्रियों की स्थिति में भी बहुत अधिक परिवर्तन आ गया है। पहले ग्रामीण समाजों में स्त्रियों का जीवन नर्क से भी बदतर था । उसको सारा जीवन घर की चारदीवारी में रहना पड़ता था । सारा जीवन उसको परिवार तथा पति के अत्याचार सहन करने पड़ते थे। उसकी स्थिति नौकर या गुलामों जैसी थी। परंतु शहरी समाजों की स्त्री पढ़ी-लिखी स्त्री है। पढ़ लिखकर वह दफ्तरों, फैक्ट्री , स्कूलों ,कॉलेजों में नौकरी कर रही है तथा आर्थिक तौर पर आत्मनिर्भर हैं। वह परिवार पर बोझ नहीं है बल्कि परिवार को चलाने वाले सदस्य है । यदि पति को कुछ हो जाए तो वह ही परिवार का पेट पालती हैं।
आशा है कि यह उत्तर आपकी अवश्य मदद करेगा।।।।
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ग्रामीण क्षेत्रों की सामाजिक व्यवस्था की कुछ विशेषताएँ क्या हैं?
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गाँव, कस्बा तथा नगर एक दूसरे से किस प्रकार भिन्न हैं?
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★ उत्तर :-
शहरी क्षेत्रों में सामाजिक व्यवस्था के लिए कुछ चुनौतियाँ नीचे सूचीबद्ध हैं :-
- अंतरिक्ष का प्रबंधन क्योंकि इसमें सीमित स्थान के साथ उच्च जनसंख्या घनत्व है इसलिए आवास और अन्य सुविधाओं के बारे में समस्या उत्पन्न होती है।
- आवास की अपर्याप्त सुविधाएं क्योंकि लोग गांवों से शहरी क्षेत्रों और शहरी क्षेत्रों में पलायन करते हैं और सुविधाओं और आजीविका के अन्य साधनों के मामले में आबादी के बोझ के लिए तैयार नहीं हैं।
- अपराध दर में वृद्धि।
- लोगों के बीच की दूरी, जिसके कारण शहरी क्षेत्र में सहयोग का अभाव है और उन स्थानों के बीच की दूरी जिसके कारण लोग निजी परिवहन पर भरोसा करते हैं जिसके परिणामस्वरूप यातायात की समस्याएं और पर्यावरण होता है