नगरीय जीवन प्रकृति से किस प्रकार कट गया है? इस विषय पर अनुच्छेद लिखिए।
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मानव जीवन की तीन मूलभूत आवश्यकताएं हैं – भोजन, वस्त्र और आवास ।पौष्टिक भोजन, स्वच्छ वस्त्र तथा साफ-सुथरा आवास मानव की कार्यक्षमता एवं जीवन को सुचारू रूप से सक्रिय रखने के लिए न्यूनतम एवं वांछनीय आवश्यकताएं हैं ।वर्त्तमान युग में मशीनीकरण का युग है ।औधोगिकीकरण के जिनते भी आयाम है, सब मशीन पर निर्भर हैं, लेकिन इन मशीनों की कार्यक्षमता को बनाये रखने अथवा अनुकूल दशाओं के विकास के लिए श्रमिकों का संतुलित एवं पौष्टिक आहार शरीर ढूंढनें को पर्याप्त मात्रा वस्त्र और प्राकृतिक आपदाओं से सुरक्षित रखने के लिए स्वास्थ्यकर आवास की उपलब्धि नितान्त आवशयक है ।लेकिन औद्योगिकप्रगति के बाद आज श्रमिकों के आवास की व्यवस्था अच्छी नहीं है ।उन्हें गंदी बस्तियों में ही रहना पडत है ।अत: वर्त्तमान युग में गंदी बस्तियों की समस्या बनती जा रही है ।इसी कारण हाउस ने नगर को “जीवन और समस्याओं का विशिष्ट केंद्र” माना है ।
जहाँ तक भारत जैसे विकासशील देश का प्रश्न है, गंदी बस्ती की समस्या यहां अत्यधिक गंभीर है ।लोगों को बुरी आर्थिक दशा के कारण यह बढ़ती हुई जनसंख्या, उन्नत तकनीकी और धीमी प्रगति से होने वाले औधोगिकीकरण का ही परिणाम है ।भारत में गंदी बस्ती का उदय कब हुआ, इसका निश्चित समय नहीं बतलाया जा सकता है ।लेकिन जैसे-जैसे समय बिताता जा रहा है नई-नई गंदी बस्तीयों का विस्तार हो रहा है ।इस प्रकार गन्दी बस्तियाँ प्राय: सभी बड़े नगरों में विकसित हुई है ।
दुनिया में कोई ऐसा देश नहीं है जहाँ गन्दी बस्ती की समस्या का निराकरण कर दिया गया हो ।यधपि संयुक्त राज्य अमेरिका और सोवियत रूस आर्थिक और तकनीकी रूप में उन्नत देश हैं, फिर ही सस्ते और स्वस्थ आवास व्यवस्था की समस्या विभिन्न उपायों को अपनाकर भी नहीं सुलझाया जा सका है ।19वीं एवं 20 वीं शताब्दी में विज्ञान, उद्धोग और शिक्षा में अत्यधिक वृधि हुई ।चिकित्सा विज्ञान ने व्यक्ति को दीर्घायु बनाया है ।पिछले 100 वर्षों में संसार की जनसंख्या दुगुनी हो गयी है ।भारत में जनसंख्या में भी तीव्र गति से वृधि हुई है ।पिछले 10 वर्षों की जनगणना के अनुसार भारत की जनसंख्या 1981 में 84.4 करोड़ हो गई ।यह वृधि 23 प्रतिशत की दर से हैं ।ग्रामीण जनसंख्या में निरन्तर वृधि होती जा रही है किन्तु अत्यधिक निर्धनता के कारण ग्रामीण निवासी बहुत बड़ी तादाद में नगरों में काम की तलाश में आ रहे हैं ।इससे नगरों में आवास की समस्या उत्पन्न हुई है ।औद्योगिकनगरों में जनसंख्या का दबाव अत्यधिक बढ़ गया है ।मलिन एवं गंदी बस्तियाँ मूलतः औद्योगिकनगरों एवं महानगरों की उपज है ।यहां व्यक्तियों को छोटा बड़ा काम मिल जाता है पर रहने को घर नहीं मिलता ।इसलिए इन महानगरों को मलिन बस्तियों में शरण मिलती है ।
नगरीकरण और औधोगिकीकरण ने जहां व्यक्तियों को विज्ञान, तकनीकी ज्ञान, शिक्षा और एक अच्छी वैज्ञानिक समझ दी है वहीं करोड़ों व्यक्तियों को नारकीय जीवन व्यतीत करने के लिए विवश किया है ।इस नारकीय जीवन को गंदी बस्तियों में देखा जा सकता है ।एक छोटी-सी झोपड़ी, कच्चे मकान अथवा एक कोठरी में 10 से 15 व्यक्ति तक रहते हैं ।जल निकासी का कोई प्रबंध नहीं होता ।कूड़े, कचरे का यहां ढेर लगा रहता है ।शौच की कोई व्यवस्था नहीं होती ।बैठने के लिए इनके पास खुला स्थान नहीं है ।तंग संकरी मलिन बस्तियाँ जहां जीवन कम और बीमारियां अधिक हैं ।पीले, मुर्झाये चेहरे, चिपके गाल , उभरती हड्डियाँ, फाटे गंदे कपड़े यहां का सौंदर्य है ।इन्हें पात नहीं ये कब जवान होते हैं और कब बूढ़े हो जाते हैं ।कब इन्हें टी.बी. हो जाती है और कब कैंसर ।ये तो मौत के मुहं में जन्म लेते हैं ।इनका जिंदा रहना और मरना समाज के लिए कोई अर्थ नहीं रखता ।आखिर गरीब के मरने कोई अर्थ नहीं होता है ।गंदी बस्तियों में इनका जीवन नाली के कीड़ों जैसा ही है ।पंडित जवाहर लाल नेहरु ने कानपुर के अहाता को देखकर एक बार कहा था – “ आदमी-आदमी को इस रूप में कैसे देखता है“ ।इस तरह गंदी बस्तियों का सीधा संबंध बढ़ती हुई जनसंख्या और आवास व्यवस्था की कमी से है जो समय के साथ और गहरी होती जा रही है ।
गंदी बस्ती का सामान्य अर्थ प्रत्येक तरह की कठिनाईयों जैसे जर्जर आवास व्यवस्था और गंदी युक्त पर्यावरण तथा वातावरण से है ।गंदी बस्तियों की सामान्य परिभाषा करना अत्यत्न कठिन है क्योंकि प्रत्येक देश आर्थिक स्थिति के अनुरूप ही गंदी बस्तियाँ स्थापित होती हैं ।गंदी बस्तियां झोपड़ी सराय , छोटी-छोटी कोठरियां, खपडैल और बांस से बने हुए कच्चे मकान, टिन शेड से निर्मित मकान, लकड़ी की छोटे केबिन आदि से स्थापित हो जाती हैं।एक स्थान पर बस्तियों की उत्पत्ती के लिए कोई निश्चित पर्यावरण निर्धारित करना कठिन है ।यह कभी भी विकसित हो सकती है ।फिलिपाइन्स के दलदली क्षेत्रों में, छोटे-छोटे पहाड़ी क्षेत्रों में और युद्ध में जी स्थान नष्ट हो गए थे वहां गंदी बस्तियां स्थापित हो गई है ।लैटिन अमेरिका में छोटे-छोटे पहाड़ों की ढ़लान पर गंदी बस्तियाँ हैं ।करांची में कब्रिस्तान और सड़क के किनारे इन्हें देखा जा सकता है ।भारत में भी इसे इस रूप में देखा जा सकता है ।रवालपिंडी और दक्षिणी स्पेन में प्राचीन गुफाओं में इनके दर्शन किए जा सकते हैं ।अहमदाबाद, कानपुर, कलकत्ता, बम्बई, मद्रास कें एक कमरे की अंधेरी कोठिरियों का गंदी बस्तियों में संख्या अत्यधिक है ।गिस्ट और हलबर्ट ‘गंदी बस्तियों को विशिष्ट क्षेत्रों का विशिष्ट स्वरूप बताते हैं, तथा क्वीन एवं थामस ‘गंदी बस्तियों को और रोगग्रस्त क्षेत्रों में पर्यायवार्ची समझते हैं ।
जहाँ तक भारत जैसे विकासशील देश का प्रश्न है, गंदी बस्ती की समस्या यहां अत्यधिक गंभीर है ।लोगों को बुरी आर्थिक दशा के कारण यह बढ़ती हुई जनसंख्या, उन्नत तकनीकी और धीमी प्रगति से होने वाले औधोगिकीकरण का ही परिणाम है ।भारत में गंदी बस्ती का उदय कब हुआ, इसका निश्चित समय नहीं बतलाया जा सकता है ।लेकिन जैसे-जैसे समय बिताता जा रहा है नई-नई गंदी बस्तीयों का विस्तार हो रहा है ।इस प्रकार गन्दी बस्तियाँ प्राय: सभी बड़े नगरों में विकसित हुई है ।
दुनिया में कोई ऐसा देश नहीं है जहाँ गन्दी बस्ती की समस्या का निराकरण कर दिया गया हो ।यधपि संयुक्त राज्य अमेरिका और सोवियत रूस आर्थिक और तकनीकी रूप में उन्नत देश हैं, फिर ही सस्ते और स्वस्थ आवास व्यवस्था की समस्या विभिन्न उपायों को अपनाकर भी नहीं सुलझाया जा सका है ।19वीं एवं 20 वीं शताब्दी में विज्ञान, उद्धोग और शिक्षा में अत्यधिक वृधि हुई ।चिकित्सा विज्ञान ने व्यक्ति को दीर्घायु बनाया है ।पिछले 100 वर्षों में संसार की जनसंख्या दुगुनी हो गयी है ।भारत में जनसंख्या में भी तीव्र गति से वृधि हुई है ।पिछले 10 वर्षों की जनगणना के अनुसार भारत की जनसंख्या 1981 में 84.4 करोड़ हो गई ।यह वृधि 23 प्रतिशत की दर से हैं ।ग्रामीण जनसंख्या में निरन्तर वृधि होती जा रही है किन्तु अत्यधिक निर्धनता के कारण ग्रामीण निवासी बहुत बड़ी तादाद में नगरों में काम की तलाश में आ रहे हैं ।इससे नगरों में आवास की समस्या उत्पन्न हुई है ।औद्योगिकनगरों में जनसंख्या का दबाव अत्यधिक बढ़ गया है ।मलिन एवं गंदी बस्तियाँ मूलतः औद्योगिकनगरों एवं महानगरों की उपज है ।यहां व्यक्तियों को छोटा बड़ा काम मिल जाता है पर रहने को घर नहीं मिलता ।इसलिए इन महानगरों को मलिन बस्तियों में शरण मिलती है ।
नगरीकरण और औधोगिकीकरण ने जहां व्यक्तियों को विज्ञान, तकनीकी ज्ञान, शिक्षा और एक अच्छी वैज्ञानिक समझ दी है वहीं करोड़ों व्यक्तियों को नारकीय जीवन व्यतीत करने के लिए विवश किया है ।इस नारकीय जीवन को गंदी बस्तियों में देखा जा सकता है ।एक छोटी-सी झोपड़ी, कच्चे मकान अथवा एक कोठरी में 10 से 15 व्यक्ति तक रहते हैं ।जल निकासी का कोई प्रबंध नहीं होता ।कूड़े, कचरे का यहां ढेर लगा रहता है ।शौच की कोई व्यवस्था नहीं होती ।बैठने के लिए इनके पास खुला स्थान नहीं है ।तंग संकरी मलिन बस्तियाँ जहां जीवन कम और बीमारियां अधिक हैं ।पीले, मुर्झाये चेहरे, चिपके गाल , उभरती हड्डियाँ, फाटे गंदे कपड़े यहां का सौंदर्य है ।इन्हें पात नहीं ये कब जवान होते हैं और कब बूढ़े हो जाते हैं ।कब इन्हें टी.बी. हो जाती है और कब कैंसर ।ये तो मौत के मुहं में जन्म लेते हैं ।इनका जिंदा रहना और मरना समाज के लिए कोई अर्थ नहीं रखता ।आखिर गरीब के मरने कोई अर्थ नहीं होता है ।गंदी बस्तियों में इनका जीवन नाली के कीड़ों जैसा ही है ।पंडित जवाहर लाल नेहरु ने कानपुर के अहाता को देखकर एक बार कहा था – “ आदमी-आदमी को इस रूप में कैसे देखता है“ ।इस तरह गंदी बस्तियों का सीधा संबंध बढ़ती हुई जनसंख्या और आवास व्यवस्था की कमी से है जो समय के साथ और गहरी होती जा रही है ।
गंदी बस्ती का सामान्य अर्थ प्रत्येक तरह की कठिनाईयों जैसे जर्जर आवास व्यवस्था और गंदी युक्त पर्यावरण तथा वातावरण से है ।गंदी बस्तियों की सामान्य परिभाषा करना अत्यत्न कठिन है क्योंकि प्रत्येक देश आर्थिक स्थिति के अनुरूप ही गंदी बस्तियाँ स्थापित होती हैं ।गंदी बस्तियां झोपड़ी सराय , छोटी-छोटी कोठरियां, खपडैल और बांस से बने हुए कच्चे मकान, टिन शेड से निर्मित मकान, लकड़ी की छोटे केबिन आदि से स्थापित हो जाती हैं।एक स्थान पर बस्तियों की उत्पत्ती के लिए कोई निश्चित पर्यावरण निर्धारित करना कठिन है ।यह कभी भी विकसित हो सकती है ।फिलिपाइन्स के दलदली क्षेत्रों में, छोटे-छोटे पहाड़ी क्षेत्रों में और युद्ध में जी स्थान नष्ट हो गए थे वहां गंदी बस्तियां स्थापित हो गई है ।लैटिन अमेरिका में छोटे-छोटे पहाड़ों की ढ़लान पर गंदी बस्तियाँ हैं ।करांची में कब्रिस्तान और सड़क के किनारे इन्हें देखा जा सकता है ।भारत में भी इसे इस रूप में देखा जा सकता है ।रवालपिंडी और दक्षिणी स्पेन में प्राचीन गुफाओं में इनके दर्शन किए जा सकते हैं ।अहमदाबाद, कानपुर, कलकत्ता, बम्बई, मद्रास कें एक कमरे की अंधेरी कोठिरियों का गंदी बस्तियों में संख्या अत्यधिक है ।गिस्ट और हलबर्ट ‘गंदी बस्तियों को विशिष्ट क्षेत्रों का विशिष्ट स्वरूप बताते हैं, तथा क्वीन एवं थामस ‘गंदी बस्तियों को और रोगग्रस्त क्षेत्रों में पर्यायवार्ची समझते हैं ।
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