nagrikta sanshodhan bill par two buddhijiviyo ke madhya samvad likhiye
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1.remove caa and nrc.
2.let muslims recieve their rights .
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दिल्ली से लेकर असम तक, उत्तर प्रदेश से लेकर बेंगलुरु-मुंबई तक हर जगह नए नागरिकता (संशोधन) कानून 2019 के खिलाफ प्रदर्शन हो रहा है.
केंद्र की मोदी सरकार के द्वारा इस बिल को पास तो करा लिया गया है, लेकिन अब देश भर में इसका विरोध हो रहा है. नागरिकता (संशोधन) कानून 2019 बनने के बाद जो हिंसक विरोध प्रदर्शन पूर्वोत्तर के राज्यों में शुरू हुआ था, अब वह देश की राजधानी दिल्ली तक पहुंच गया है.
पूर्वोत्तर के राज्यों को एक ओर जहां अपनी अस्मिता की चिंता है, तो देश के अन्य राज्य इस कानून को ही गैर-संवैधानिक करार दे रहे हैं.
तीन पड़ोसी देशों के गैर मुस्लिम अल्पसंख्यकों को भारत की नागरिकता का मार्ग प्रशस्त करने वाला नागरिकता (संशोधन) कानून 2019 पर बवाल मचा हुआ है.
आइये जानते हैं इससे जुड़ी पांच बड़ी बातें
1. क्या है नागरिकता (संशोधन) कानून 2019
अविभाजित भारत में रहने वाले लाखों लोग अलग धर्म को मानते हुए आजादी के वक्त से साल 1947 से पाकिस्तान और बांग्लादेश में रह रहे थे. इसके साथ ही अफगानिस्तान भी मुस्लिम राष्ट्र है और इन देशों में हिंदू, सिख, बौद्ध, पारसी, जैन और ईसाई समुदायों के बहुत से लोग धार्मिक आधार पर उत्पीड़न झेलते हैं.
नागरिकता कानून 1955 के अनुसार, किसी अवैध अप्रवासी नागरिक को भारत की नागरिकता नहीं मिल सकती. सरकार ने इस कानून में संशोधन के जरिये अब नागरिकता कानून 2019 के हिसाब से अल्पसंख्यकों को भारत की नागरिकता आसानी से देने का फैसला किया है.
2. मोदी सरकार क्या कहती है?
भारत के तीनों पड़ोसी देशों में हिंदू, सिख, बौद्ध, पारसी, जैन और ईसाई समुदायों के बहुत से लोग धार्मिक आधार पर उत्पीड़न झेलते हैं. पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान का संविधान उन्हें विशिष्ट धार्मिक राज्य बनाता है. इनमें से बहुत से लोग रोजमर्रा के जीवन में सरकारी उत्पीड़न से डरते हैं.
इन तीनों देशों में अल्पसंख्यकों को अपनी धार्मिक पद्धति, उसके पालन और आस्था रखने में बाधा आती है. इनमें से बहुत से लोग भारत में शरण के लिए आए और वे अब यहीं रहना चाहते हैं. इन लोगों के वीजा या पासपोर्ट की अवधि भी समाप्त हो चुकी है. कुछ लोगों के पास कोई दस्तावेज नहीं है, लेकिन अगर वे भारत को अपना देश मानकर यहां रहना चाहते हैं तो सरकार उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करना चाहती है.
3. विपक्षी दलों का क्या है तर्क?
विपक्षी दलों का कहना है कि विधेयक मुसलमानों के साथ भेदभाव करता है, जिन्हें इसमें शामिल नहीं किया गया है. इस हिसाब से यह संविधान के आर्टिकल 14 का उल्लंघन है. केंद्र सरकार ने कहा है कि पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान मुस्लिम राष्ट्र हैं, वहां मुस्लिम बहुसंख्यक हैं, इस वजह से उन्हें धर्म के आधार पर उत्पीड़न का शिकार नहीं माना जा सकता. केंद्र सरकार ने आश्वासन दिया है कि सरकार दूसरे समुदायों की प्रार्थना पत्रों पर अलग-अलग मामले में गौर करेगी
4.पूर्वोत्तर में बवाल क्यों?
नए नागरिकता कानून के तहत बांग्लादेश, अफगानिस्तान, पाकिस्तान से आए हिंदू-जैन-बौद्ध-ईसाई-पारसी-सिख शरणार्थियों को भारत की नागरिकता मिलना आसान होगा, लेकिन पूर्वोत्तर के राज्य इसका विरोध कर रहे हैं.
दरअसल, पूर्वोत्तर के कई राज्यों का कहना है कि अभी भी बड़ी संख्या में उनके राज्य या इलाके में इस समुदाय के लोग ठहरे हुए हैं, अगर अब उन्हें नागरिकता मिलती है तो वह स्थाई हो जाएंगे. इससे उनकी संस्कृति, भाषा, खानपान और अन्य पहचान को खतरा पैदा हो जायेगा.
पूर्वोत्तर के कुछ क्षेत्रों/राज्यों को केंद्र सरकार ने इनर लाइन परमिट में रखा है, जिसके कारण नागरिकता कानून वहां लागू नहीं होता. इनमें मणिपुर, अरुणाचल, मेघालय के कुछ इलाके शामिल हैं.
5.नागरिकता (संशोधन) कानून 2019 में है कुछ खास?
नागरिकता संशोधन विधेयक अपनी शुरुआती अवस्था में जनवरी 2019 में पास हुआ था. इसमें छह गैर मुस्लिम समुदाय हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाइयों के लिए भारतीय नागरिकता मांगी गई थी. इसमें भारत की नागरिकता पाने के लिए भारत में कम से कम 12 साल रहने की आवश्यक शर्त को कम करके सात साल कर दिया गया.
यदि भारत की नागरिकता चाहने वाले व्यक्ति के पास कोई वैध दस्तावेज नहीं है तब भी उसे नागरिकता दी जा सकती है. इस विधेयक को संयुक्त संसदीय कमेटी के पास भेजा गया था, हालांकि यह बिल पास नहीं हो सका क्योंकि यह राज्यसभा में गिर गया था.