नहीं कुछ इससे बढ़कर कविता का भावार्थ
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शीत-ताप में जूझ प्रकृति से
बहा स्वेद ,भू- रज कर उर्वर ,
शस्य श्यामला बना धरा को
जब भंडार कृषक देते भर
नहीं प्रार्थना इससे शुभकर
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