नहीं कुछ इससे बढ़कर कविता का भावार्थ by paragraph
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नहीं कुछ इससे बढ़कर कविता का भावार्थ :
नहीं कुछ इससे बढ़कर कविता कवि सुमित्रानंदन पंत द्वारा लिखी गई है |
कविता में माँ , किसान , कलाकार , बलिदानी पुरुष , कवि , सज्जन व्यक्ति के महत्व के बारे में बताया है |
माँ : यह सभी हमेशा देश की रक्षा के लिए हमेशा तैयार रहते है | माँ इतनी दर्द सहन करके बच्चा पैदा करती है | वह बच्चे से निस्वार्थ प्यार करती है | हमेशा बच्चों के लिए त्याग करती है | हर समय अपने बच्चे पर प्रति सब कुछ करती है | कवि कहते माँ के लिए बच्चे से बढ़कर कोई प्रार्थना नहीं है |
किसान हम ठंठ और या गर्मी हो , किसान मेहनत करता है | किसान हमेशा प्रकति के साथ परिश्रम करता है | मिट्टी को उपजाऊ बनाता है , और अनाज उगाता है | किसान से प्परिश्रम से बढ़कर कोई प्रार्थना नहीं है |
कलाकार : कलाकार की सुन्दर रचना से बढ़कर कोई प्रार्थना नहीं है | कलाकर का गुणगान किया है |
बलिदानी पुरुष : प्रस्तुत पंक्ति में बलिदानी पुरुष का वर्णन किया गया है। बलिदानी पुरुष सत्यनिष्ठता का पालन करता है व अपने देशवासियों व मातृभूमि से प्रेम करने वाला बलिदानी पुरुष हमेशा तैयार रहते है | बलिदानी पुरुष की प्रार्थना से बढ़कर अन्य कोई प्रार्थना नहीं हो सकती।
कवि : कवि अपने गुणों-गुणों से भावना से रचना करता है | इन सुन्दर रचना करता है , वह लोगों कोअपनी और आकृषित करता है | कवि की कविता को पड़कर लोग सही मार्ग अपनाते है | कवि की रचना से प्रार्थना से बढ़कर अन्य कोई प्रार्थना नहीं हो सकती।
सज्जन व्यक्ति : सज्जन व्यक्तियों से बढ़कर अन्य कोई प्रार्थना नहीं हो सकती। सज्जन व्यक्ति अपना जीवन दूसरों की भलाई के लिए काम करते है | वह मानसिक रूप से वह समृद्ध बनते है | दुखी लोगों को देखकर उनका हृदय पिघल जाता है | वू मनुष्य को दुखी मन से सुख की और खींचते रहते है |
Explanation:
प्रस्तुत पंक्तियाँ नहीं कुछ इससे बढ़कर’ कविता से ली गई हैं। इसके कवि सुमित्रानंदन पंत हैं। प्रस्तुत पंक्ति में मधुकर यानी भ्रमरों का वर्णन है। भ्रमर मधुरस को प्रतिक्षण चखकर विपुल मात्रा में मधु-रूपी मनोवैभव का संचय करते हैं और अपना मधु छत्र बना लेते हैं। उसी प्रकार कलाकार, कवि, बलिदानी पुरुष, कृषक एवं माँ व्यक्ति, समाज व देश के हित में सदैव तत्पर रहते हैं। इनका हृदय दूसरों के लिए द्रवित हो उठता है। इनके कारण ही यह लोक महान बन गया है। अत: इनकी प्रार्थना से अन्य कोई पवित्र व शुभ प्रार्थना नहीं हो सकती।