नहिं संतोषु त पुनि कुछु कहहूं । जनि रिस रो कि दुसह दुःख सहूहू।
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लक्ष्मण ने परशुराम से कहा आपने तो अपने व्यक्तित्व का अभी इतना बखान किया अगर आपको अभी भी तसल्ली नहीं है तो आप दुखी मत होइए आप फिर से कुछ कह दीजिए अपने व्यक्तित्व के बारे में आपके व्यक्तित्व के बारे में आपसे अच्छा बखान और कौन कर सकता है
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