Hindi, asked by aprajitasinha48, 1 year ago

Nai shiksha niti nibhandh in hindi..​

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Answered by masterji7
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1968 की शिक्षा नीति और उसके बाद[सम्पादन]

1.4 1968 की राष्ट्रीय नीति आजादी के बाद के इतिहास में एक अहम कदम थी। उसका उद्देश्य राष्ट्र की प्रगति को बढ़ाना तथा सामान्य नागरिकता व संस्कृति और राष्ट्रीय एकता की भावना को सुदृढ़ करना था। उसमें शिक्षा प्रणाली के सर्वांगीण पुनर्निर्माण तथा हर स्तर पर शिक्षा की गुणवत्ता को ऊँचा उठाने पर जोर दिया गया था। साथ ही उस शिक्षा नीति में विज्ञान और प्रौद्योगिकी पर नैतिक मूल्यों को विकसित करने पर तथा शिक्षा और जीवन में गहरा रिश्ता कायम करने पर भी ध्यान दिया गया था।

1.5 1968 की नीति लागू होने के बाद देश में शिक्षा का व्यापक प्रसार हुआ है। आज गांवों में रहने वाले 90 प्रतिशत से अधिक लोगों के लिए एक किलोमीटर के पफासले के भीतर प्राथमिक विद्यालय उपलब्ध हैं। अन्य स्तरों पर भी शिक्षा की सुविधाएं पहले के मुकाबले कहीं अधिक बढ़ी हैं। 1.6 पूरे देश में शिक्षा की समान संरचना और लगभग सभी राज्यों द्वारा 10+2+3 की प्रणाली को मान लेना शायद 1968 की नीति की सबसे बड़ी देन है। इस प्रणाली के अनुसार स्कूली पाठ्यक्रम में छात्र-छात्राओं को एक समान शिक्षा देने के अलावा विज्ञान व गणित को अनिवार्य विषय बनाया गया और कार्यानुभव को महत्त्वपूर्ण स्थान दिया गया।

1.7 स्नातक स्तर की कक्षाओं के पाठ्यक्रम बदलने की प्रक्रिया भी प्रारंभ हुई। स्नातकोतर शिक्षा तथा शोध के लिए उच्च अध्ययन के केन्द्र स्थापितकिए गए। हम देश की आवश्यकता के अनुसार शिक्षित जनशक्ति की आवश्यकताओं की पूर्ति भीकर सके हैं।

1.8 यद्यपि ये उपलब्धियाँ अपने आप में महत्त्वपूर्ण हैं, किन्तु यह भी सत्य है कि 1968 की शिक्षा नीति के अधिकांश सुझाव कार्यरूप में परिणत नहीं हो सके, क्योंकि क्रियान्वयन की पक्की योजना नहीं बनी, न स्पष्ट दायित्व निर्धारित किए गए औरन ही वित्तीय एवं संगठन संबंधी व्यवस्थाएं हो सकी। नतीजा यह है कि विभिन्न वर्गों तक शिक्षा को पहुँचाने, उसका स्तर सुधारने और विस्तार करने और आर्थिक साधन जुटाने जैसे महत्त्वपूर्ण काम नहीं हो पाए, और आज इन कमियों ने एक बड़े अंबार का रूप धारण कर लिया है। इन समस्याओं का हल निकालना वक्त की पहली जरूरत है।

1.9 मौजूदा हालात ने शिक्षा को एक दुराहे पर ला खड़ा किया है। अब न तो अब तक होते आये सामान्य विस्तार से, और न ही सुधार के वर्तमान तौर-तरीकों या रफ्रतार से काम चल सकेगा।

1.10 भारतीय विचारधारा के अनुसार मनुष्य स्वयं एक बेशकीमती संपदा है, अमूल्य संसाधन है। जरूरत इस बात की है कि उसकी परवरिश गतिशील एवं संवेदनशील हो और सावधानी से की जाये। हर इंसान का अपना विशिष्ट व्यक्तित्व होता है, जन्म से मृत्युपर्यन्त, जिन्दगी के हर मुकाम पर उसकी अपनी समस्याएं और जरूरतें होती हैं। विकास की इस पेचीदा और गतिशील प्रक्रिया में शिक्षा अपना उत्प्रेरक योगदान दे सकें, इसके लिए बहुत सावधानी से योजना बनाने और उस पर पूरी लगन के साथ अमल करने की आवश्यकता है।

1.11 आज भारत राजनीतिक और सामाजिक दृष्टि से ऐसे दौर से गुजर रहा है जिसमें परम्परागत मूल्यों के ”ास का खतरा पैदा हो गया है और समाजवाद, धर्मनिरपेक्षता, लोकतंत्र तथा व्यावसायिक नैतिकता के लक्ष्यों की प्राप्ति में लगातार बाधाएं आ रही हैं।

1.12 देहात में रोजमर्रा की सहूलियतों के अभाव में पढ़े-लिखे युवक गांवों में रहने के लिए तैयार नहीं हैं। इसलिए गांव और शहर के पफ़र्क को कम करने और ग्रामीण क्षेत्रो में रोजगार के विविध और व्यापक साधन उपलब्ध कराने की बड़ी जरूरत है।

1.13 आने वाले दशकों में जनसंख्या की बढ़ती हुई रफ्ऱतार पर काबू पाना होगा। इस समस्या को हल करने में जो सबसे अहम् उपाय कारगर साबित हो सकता है, वह है महिलाओं का साक्षर और शिक्षित होना।

1.14 अगले दशक नए तनावों और समस्याओं के साथ अभूतपूर्व अवसर भी प्रदान करेंगे। उन तनावों से निपटने और अवसरों का पफायदा उठाने के लिए मानव संसाधन को नए ढंग से विकसित करना होगा। आने वाली पीढ़ियों के लिए यह भी जरूरी होगा कि वे नए विचारों को सतत् सृजनशीलता के साथ आत्मसात कर सकें। उन पीढ़ियों में मानवीय मूल्यों और सामाजिक न्याय के प्रति गहरी प्रतिबद्धता प्रतिष्ठित करनी होगी। यह सब अधिक अच्छी शिक्षा से ही संभव है।

1.15 अतएव इन नई चुनौतियों और सामाजिक आवश्यकताओं का तकाजा है कि सरकार एक नई शिक्षा नीति तैयार करें और उसकी क्रियान्वित करे।इसके अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं है।

भाग 2[सम्पादन]शिक्षा का सार और उसकी भूमिका[सम्पादन]

2.1 हमारे राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में ‘‘सबके लिए शिक्षा’’ हमारे भौतिक और आध्यात्मिक विकास की बुनियादी आवश्यकता है।

2.2 शिक्षा सुसंस्कृत बनाने का माध्यम है। यह हमारी संवेदनशीलता और दृष्टि को प्रखर करती है, जिससे राष्ट्रीय एकता पनपती है, वैज्ञानिक तरीकेके अमल की संभावना बढ़ती है और समझ और चिंतन में स्वतन्त्रता आती है। साथ ही शिक्षा हमारे संविधान में प्रतिष्ठित समाजवाद, धर्मनिरपेक्षता और लोकतंत्र के लक्ष्यों की प्राप्ति में अग्रसर होने में हमारी सहायता करती है।

2.3 शिक्षा के द्वारा ही धार्मिक व्यवस्था के विभिन्न स्तरों के लिए जरूरत के अनुसार जनशक्ति का विकास होता है। शिक्षा के आधार पर ही अनुसंधान और विकास को सम्बल मिलता है जो राष्ट्रीय आत्म-निर्भरता की आधारशिला है।

2.4 कुल मिलाकर, यह कहना सही होगा कि शिक्षा वर्तमान तथा भविष्य के निर्माण का अनुपम साधन है। इसी सिद्धांत को राष्ट्रीय शिक्षा नीति के निर्माण की धुरी माना गया है।

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