Hindi, asked by loveypatel, 10 months ago

नई ओर पुरानी शिक्षा नीति का आकलन किजिये​

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Answered by Utkarshiyadav
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भारत की प्राचीन शिक्षा आध्यात्मिमकता पर आधारित थी। शिक्षा, मुक्ति एवं आत्मबोध के साधन के रूप में थी। यह व्यक्ति के लिये नहीं बल्कि धर्म के लिये थी। भारत की शैक्षिक एवं सांस्कृतिक परम्परा विश्व इतिहास में प्राचीनतम है। डॉ॰ अल्टेकर के अनुसार,

वैदिक युग से लेकर अब तक भारतवासियों के लिये शिक्षा का अभिप्राय यह रहा है कि शिक्षा प्रकाश का स्रोत है तथा जीवन के विभिन्न कार्यों में यह हमारा मार्ग आलोकित करती है।

प्राचीन काल में शिक्षा को अत्यधिक महत्व दिया गया था। भारत 'विश्वगुरु' कहलाता था। विभिन्न विद्वानों ने शिक्षा को प्रकाशस्रोत, अन्तर्दृष्टि, अन्तर्ज्योति, ज्ञानचक्षु और तीसरा नेत्र आदि उपमाओं से विभूषित किया है। उस युग की यह मान्यता थी कि जिस प्रकार अन्धकार को दूर करने का साधन प्रकाश है, उसी परकार व्यक्ति के सब संशयों और भ्रमों को दूर करने का साधन शिक्षा है। प्राचीन काल में इस बात पर बल दिया गया कि शिक्षा व्यक्ति को जीवन का यथार्थ दर्शन कराती है। तथा इस योग्य बनाती है कि वह भवसागर की बाधाओं को पार करके अन्त में मोक्ष को प्राप्त कर सके जो कि मानव जीवन का चरम लक्ष्य है।

• शिक्षा के सारतत्त्व व उसकी भूमिका के बारे में नीति में कहा गया है कि शिक्षा सबके लिए आवश्यक है, शिक्षा की सांस्कृतिक भूमिका है, शिक्षा वर्तमान और भविष्य के लिए अपने आय में एक अद्वितीय निवेश है।

• समानता के लिए शिक्षा : महिलाओं, अनुसूचित जातियों व जनजातियों तथा वंचित समूह को समान अवसर उपलब्ध करवाना।

• शिक्षकों की शिक्षा, कार्य-प्रणाली, जिम्मेदारी, वेतन आदि सभी स्तरों पर गुणात्मक सुधार की आवश्यकता।

• तकनीकी व व्यावसायिक शिक्षा को महत्त्व देना।

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