Political Science, asked by sandeeppatel50722, 7 months ago

नई विश्व व्यवस्था में भारत रूस संबंधों का परीक्षण कीजिए​

Answers

Answered by abhipatel8119
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Explanation:

एक जून को प्रधानमंत्री रूस पहुँचे और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से मुलाकात की। दोनों देशों ने विभिन्न आपसी महत्त्व के महत्त्वपूर्ण समझौतों पर हस्ताक्षर करते हुये एक सयुंक्त वक्तव्य ‘21वीं सदी का एक दृष्टिपत्र’ नाम से ज़ारी किया। भारत और रूस ने अपने संबंधों की 70वीं वर्षगांठ मनाते हुये कहा कि दोनों देशों के मध्य अटूट संबंधों का आधार प्रेम, सम्मान और दृढ़ विश्वास रहा है। उल्लेखनीय है कि पिछले दशक में भारत-रूस के संबंधों में एक निराशाजनक पैटर्न रहा है। अत: नई सहस्राब्दी में दोनों देशों को विश्व में मौज़ूद चुनौतियों और अवसरों को देखते हुए अपने संबंधों को एक नई दिशा देने की ज़रूरत है।

महत्त्वपूर्ण बिंदु

दोनों देश रक्षा हार्डवेयर और प्रौद्योगिकी, परमाणु ऊर्जा एवं तेल और गैस जैसे क्षेत्रों में सहयोग कर रहे हैं।

दोनों देश एक बहुध्रुवीय अंतर्राष्ट्रीय राजनीति और सुरक्षा अवसंरचना को बढ़ावा देना चाहते हैं।

शीत युद्ध के अंत से ही वैश्विक परिस्थितियों में एक नाटकीय परिवर्तन हुआ है, ऐसे में दोनों देशों को अपने साझा हितों को विघटनकारी प्रवृत्तियों से बचाने की आवश्यकता है।

ज्ञातव्य है कि दोनों देशों के संबंध, वैश्विक भू-राजनीतिक परिस्थितियों में हुए परिवर्तनों के बावज़ूद स्थिर बने हुए हैं।

शीत युद्ध के बाद भारत-सोवियत रणनीतिक साझेदारी में परिवर्तन

रूस एवं चीन

चीन के खतरे को देखते हुए ही दिल्ली और मास्को एक-दूसरे के करीब आए।

शीत युद्ध के अंत के बाद रूस, चीन को अब अपनी सुरक्षा के लिये खतरा नहीं मानता है।

रूस द्वारा चीन के साथ सीमा विवाद के निपटारे, आर्थिक और व्यापार संबंधों में विस्तार और रूसी हथियारों और रक्षा प्रौद्योगिकियों का चीन एक प्रमुख आयातक होने के कारण भारत एवं रूस का चीन के प्रति अलग-अलग दृष्टिकोण है।

लेकिन चीन के बढ़ते विस्तार और परमाणु शस्त्रागार में गुणात्मक वृद्धि के कारण रूस अभी भी चीन के बारे में बहुत सावधान है। यह एक कारण हो सकता है कि रूस परमाणु हथियारों में कटौती से हिचकिचता रहा है।

चीन द्वारा मध्य एशिया और पूर्वी यूरोप में विकसित किये जा रहे चीनी मार्ग पर भी रूस को आपत्ति है, क्योंकि दोनों ही क्षेत्रों का सामरिक महत्त्व है।

रूस की चीन के साथ वर्तमान निकटता सामरिक संबंधों के कारण बनी हुई है।

Answered by anushka33244
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hey mate!

here is ur ans...

वैश्विक स्तर पर विभिन्न देशों के मध्य शक्ति-संतुलन एवं सत्ता विभाजन का क्रम विश्व-व्यवस्था कहलाता है। द्वितीय विश्व युद्ध के समाप्ति से लेकर शीत युद्ध की समाप्ति तक विश्व व्यवस्था मूलतः अमेरिका और सोवियत संघ के इर्द-गिर्द केंद्रित रही। शीत युद्ध की समाप्ति के पश्चात् अमेरिका विश्व की केन्द्रीय शक्ति बना। परंतु, 2008 की वैश्विक आर्थिक मंदी, वर्तमान अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की ‘इनवार्ड पॉलिसी’ तथा भारत व चीन जैसे एशियाई देशों के तेजी से उभरने ने एक नई विश्व व्यवस्था के निर्माण के संकेत दिये हैं। यह नई विश्व व्यवस्था बहुध्रुवीय प्रतीत हो रही है, जिसमें शक्ति के कई केंद्र हैं।

नई विश्व व्यवस्था में भारत की स्थितिः

भारत की भौगोलिक अवस्थिति, अर्थव्यवस्था की मजबूत स्थिति, बड़ा बाजार तथा जनांकिकीय लाभांश इसे वैश्विक आर्थिक पटल पर महत्त्वपूर्ण स्थान दिलाते हैं।

वर्तमान में भारत ने गुटनिरपेक्षता (NAM) की रणनीति को बदलकर बहुपक्षीयता (Multi-alignment/NAM 2.0) की नीति अपना रखी है, इससे भारत की स्थिति मजबूत हुई है।

विदेशी नीति के स्तर पर भारत ने पड़ोसी देशों से संबंधों को मजबूत व मधुर बनाने की सशक्त पहलें की हैं एवं विभिन्न देशों से अलग-अलग क्षेत्रों में समझौते किये हैं। अमेरिका, रूस, जापान, ब्रिटेन, जर्मनी, फ्राँस, इज़राइल जैसे देशों के साथ-साथ ईरान, अफगानिस्तान और यू.ए.ई. जैसे देशों के साथ भी विभिन्न समझौते किये हैं। इससे भारत की वैश्विक स्तर पर साख बढ़ी है।

भारत को एम.टी.सी.आर. में सदस्यता मिलने तथा सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता की दावेदारी ने भी भारत को वैश्विक स्तर पर एक बड़ी ताकत के रूप में पहचान दी है।

निष्कर्षतः यह कह सकते हैं कि वर्तमान में उदित होती नई विश्व व्यवस्था में पूरा विश्व एक ऐसी बहुध्रुवीयता की ओर बढ़ रहा है, जिसमें भारत, चीन जैसे विकासशील देश शक्ति के नए केंद्र के रूप में उभर रहे हैं।

hope it helps....❤❤

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