Hindi, asked by mrramgupta, 1 year ago

Naitik Shiksha par Shlok

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Answered by SinisterChill
51
स्वभावो नोपदेशेन शक्यते कर्तुमन्यथा !
सुतप्तमपि पानीयं पुनर्गच्छति शीतताम् !!

हिन्दी अर्थ : किसी व्यक्ति को आप चाहे कितनी ही सलाह दे दो किन्तु उसका मूल स्वभाव नहीं बदलता ठीक उसी तरह जैसे ठन्डे पानी को उबालने पर तो वह गर्म हो जाता है लेकिन बाद में वह पुनः ठंडा हो जाता है.

Answered by shishir303
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नैतिक शिक्षा पर चंद श्लोक...

येषां न विद्या न तपो न दानं ज्ञानं न शीलं न गुणो न धर्मः !

ते मर्त्यलोके भुविभारभूता मनुष्यरूपेण मृगाश्चरन्ति !!

अर्थ — जिन लोगों के पास विद्या, तप, शील, सदाचार, ज्ञान, धर्म, दान जैसे गुण नहीं होते, वह लोग इस पृथ्वी पर एक बोझ के समान हैं। ऐसे लोग कहने को तो मनुष्य है, लेकिन मनुष्य के रूप में पशु के समान हैं। ऐसे लोग पृथ्वी पर मनुष्य रूपी पशु बन कर घूमते हैं। उनके जीवन का कोई महत्व नही है।

न चोरहार्य न राजहार्य न भ्रतृभाज्यं न च भारकारि !

व्यये कृते वर्धति एव नित्यं विद्याधनं सर्वधनप्रधानम् !!

अर्थ — विद्या एक ऐसा धन है, इसे ना तो कोई चोर चोरी कर सकता और ना ही कोई राजा इसे छीन सकता है। यह ऐसा धन है जिसे संभाल कर रखना कोई कठिन कार्य नहीं। ना ही इसकी रक्षा करनी पड़ती है। ना ही इस धन का बंटवारा होता है, ना ही यह धन खर्च करने से कम होता है। बल्कि यह ये ऐसा धन है, जो खर्च करने से निरंतर बढ़ता है। विद्या अर्थात ज्ञान का धन सभी धनों में सबसे श्रेष्ठ धन होता है। इसलिये अगर किसी धन का संचय करना है तो विद्या अर्थात ज्ञान रूपी धन का ही संचय कीजिये।

आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः !

नास्त्युद्यमसमो बन्धुः कृत्वा यं नावसीदति !!

अर्थ — आलस्य मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है और परिश्रम मनुष्य का सबसे बड़ा मित्र है। आलस्य एक ऐसा शत्रु है जो मनुष्य का सर्वनाश करके छोड़ता है। यह मनुष्य को अकर्मण्य और कर्महीन बना देता है, आलस्य को अपनाने वाला मनुष्य जीवन में कभी भी सफलता प्राप्त नही कर पाता। परिश्रम मनुष्य का सबसे बड़ा मित्र है और परिश्रम करने वाला व्यक्ति जीवन में कभी भी दुखी नहीं रहता और निरंतर सफलता प्राप्त करता है। इसलिए आलस्य रूपी शत्रु से हमेशा दूर रहना चाहिये और परिश्रम रूपी मित्र का साथ कभी न छोड़ना चाहिये।

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