Political Science, asked by norisxd01955, 3 months ago

नक्सलवाद की शुरुआत कैसे हुई ?
SUB :- POLITICAL SCIENCE
IN HINDI
12TH CLS
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Answers

Answered by harshshahu292
6

नक्सलवाद कम्युनिस्ट क्रांतिकारियों के उस आंदोलन का अनौपचारिक नाम है जो भारतीय कम्युनिस्ट आंदोलन के फलस्वरूप उत्पन्न हुआ। नक्सल शब्द की उत्पत्ति पश्चिम बंगाल के छोटे से गाँव नक्सलबाड़ी से हुई है जहाँ भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी के नेता चारू मजूमदार और कानू सान्याल ने 1967 मे सत्ता के खिलाफ़ एक सशस्त्र आंदोलन की शुरुआत की। मजूमदार चीन के कम्यूनिस्ट नेता माओत्से तुंग के बहुत बड़े प्रशंसकों में से थे और उनका मानना था कि भारतीय मज़दूरों और किसानों की दुर्दशा के लिये सरकारी नीतियाँ जिम्मेदार हैं जिसकी वजह से उच्च वर्गों का शासन तंत्र और फलस्वरुप कृषितंत्र पर वर्चस्व स्थापित हो गया है। इस न्यायहीन दमनकारी वर्चस्व को केवल सशस्त्र क्रांति से ही समाप्त किया जा सकता है। 1967 में "नक्सलवादियों" ने कम्युनिस्ट क्रांतिकारियों की एक अखिल भारतीय समन्वय समिति बनाई। इन विद्रोहियों ने औपचारिक तौर पर स्वयं को भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी से अलग कर लिया और सरकार के खिलाफ़ भूमिगत होकर सशस्त्र लड़ाई छेड़ दी। 1971 के आंतरिक विद्रोह (जिसके अगुआ सत्यनारायण सिंह थे) और मजूमदार की मृत्यु के बाद यह आंदोलन एकाधिक शाखाओं में विभक्त होकर कदाचित अपने लक्ष्य और विचारधारा से विचलित हो गया।

नक्सलवाद से प्रभावित भारतीय क्षेत्र - २००७ में (बाएँ) तथा सन २०१३ में (दाएँ)

आज कई नक्सली संगठन वैधानिक रूप से स्वीकृत राजनीतिक पार्टी बन गये हैं और संसदीय चुनावों में भाग भी लेते है। लेकिन बहुत से संगठन अब भी छद्म लड़ाई में लगे हुए हैं। नक्सलवाद के विचारधारात्मक विचलन की सबसे बड़ी मार आँध्र प्रदेश, छत्तीसगढ, उड़ीसा, झारखंड और बिहार को झेलनी पड़ रही है।

Answered by garima12abc
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Explanation:

यह रही वो कहानी— कई अन्य महान और कुछ उतनी महान नहीं चीजों की तरह, यह सब बंगाल में शुरू हुआ।

कई वर्षों पहले( वास्तव में 1916 में), मजुमदारों के एक अमीर जमींदार परिवार में, हिमालय की तलहटी (वास्तव में पश्चिम बंगाल में सिलीगुड़ी) में एक लड़का पैदा हुआ था। उनके माता-पिता ने उनका नाम चारु रखा।

अपने स्वतंत्रता सेनानी पिता से प्रेरित - चारु अंग्रेजों के लिए बहुत गुस्से के साथ और गरीबों और असंतुष्टों के लिए प्यार के साथ बड़े हुए।

एक युवा व्यक्ति के रूप में, चारु ने पश्चिम बंगाल के बीड़ी श्रमिकों को संगठित करने में मदद की, जिससे उन्हें थोड़ी प्रसिद्धि मिली।

तब एक जमींदार के इस बंगाली बेटे ने बंगाल के दमनकारी जमींदारों के खिलाफ तेभागा आंदोलन में भाग लिया।आंदोलन मुख्य रूप से भूमिहीन टिलर को मुनाफे का 2/3 हिस्सा देने के बारे में था, जो की पहले 1/2 हिस्सा जमींदारों के द्वारा उन्हें दिया जाता था।

आंदोलन सफल रहा और चारु को थोड़ी और अधिक प्रसिद्धि अर्जित हुई। इस सफलता ने उन्हें एक ऐसे व्यक्ति के रूप में प्रसिद्ध किया जो की संस्थापन के खिलाफ आवाज उठाकर जीत सकता है।

1947 में, भारत स्वतंत्र हो गया।

लेकिन चारु उसी ढंग से डटें रहे और उनकी लड़ाई जारी रही। बस अंतर ये था कि भारत सरकार ने उनके भाषणों के लक्ष्य के रूप में अंग्रेजों की जगह ले ली थी।

1948 में, उन्हें राष्ट्रीय विरोधी गतिविधियों के लिए जेल में डाल दिया गया। जेल में रहने के दौरान उनकी मुलाकात कानू सान्याल नामक एक अन्य व्यक्ति से हुई, जो पश्चिम बंगाल के तत्कालीन मुख्यमंत्री को काला झंडा दिखाने के लिए जेल में सजा काट रहे थे। इन दोनों की दोस्ती जेल में ऐसे दोस्तों की तरह जमी जो की काफी लम्बे समय बाद एक दूसरे से मिल रहे हों।

1960 के दशक तक, चारु और कानू को अपना आदर्श मिल चूका था-- चीन के माओ ज़ेदोंग। ये दोनों माओ ज़ेदोंग से बहुत प्रभावित थे और वे भी विश्वास करते थे, ठीक उसी तरह जैसे कि माओ ज़ेदोंग करते थे-- सरकार को गिराने और किसानों के लिए एक सुखमय जीवन जीने के लिए सशस्त्र संघर्ष करना।

ऐतिहासिक आठ दस्तावेज[1]को चारु ने इस दौरान चीन के चेयरमैन माओ के पदचिह्नों पर सशस्त्र संघर्ष की विचारधारा को स्थापित करने के लिए जारी किया था।

चारु और कानू दोनों को पश्चिम बंगाल के तत्कालीन सहानुभूतिपूर्ण स्थानीय प्रेस में नायक के रूप में सम्मानित किया गया।

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