नक्शों एवं अन्य संकेतों का अर्थ समझना किस प्रकार का अनुभव है ?
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नक्शों एवं अन्य संकेतों का अर्थ
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भूगोल और नक्शों को लेकर हमारे छात्रों में जिज्ञासा होती है। नक्शे अपने आप में ढेर सारी जानकारी समेटे रहते हैं। लेकिन जब हम नक्शों को महज़ नदी-पहाड़ों और समुद्रों की स्थिति दिखाने वाला पुर्जा बना देते हैं तो नक्शों को पढ़ने की प्रक्रिया उबाऊ और नीरस-सी रह जाती है। यह ठीक उसी तरह है जैसे कोई छात्र दरवाज़ा खोलना तो जानता हो लेकिन नज़र उठाकर सामने फैले दृश्य का मज़ा न ले पाता हो। स्कूलों में बच्चे जिस तरह नक्शा देखते हैं, उसमे बिल्कुल यही लगता है। इसके कई उदाहरण हमें बार-बार देखने को मिले हैं।नदियां कहां से निकलकर कहां समाप्त होती हैं? जमीन, जंगल, मैदान, शहर किस प्रकार के होते हैं? उनमें बसने वाले कौन लोग हैं? उनकी मुख्य गतिविधियां क्या हैं? उपजीविका, उद्योग-धंधे क्या हैं? इस तरह की अनेक छवियों और कल्पनाओं का मिलाजुला ताना-बाना ही हमें किसी जगह का एक संपूर्ण वास्तविक और जीवन्त चित्र देता है। नक्शा मूलतः इसी संपूर्ण चित्र को दिखाने की कोशिश करता है, लेकिन कम जगह में और प्रतीकों और चिन्हों की मदद से संक्षेप में। नक्शे को समझने के लिए उसमें दिए गए चिन्हों, प्रतीकों को पढ़ लेना ही काफी नहीं है, बल्कि इन संकेतों की मदद से उस जगह की जीवन्त छवि बनाने की कोशिश करना भी जरूरी है। यह सब कर सकने की परिपक्वता बच्चों में किस उम्र में आती है यह तो विशेषज्ञ ही तय कर पाएंगे लेकिन हमारा अनुभव यही बताता है कि हाई स्कूलों में भी नक्शों का वैसा उपयोग नहीं हो रहा है जैसा होना चाहिए।