Environmental Sciences, asked by suryanathyadav91, 3 months ago

नम्ना
(क) 'जगदीश मंदिर' का निर्माण किसने करवाया था?​

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Answered by pjdipke298gmailcom
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Answer:

जगदीश मंदिर पुराने उदयपुर शहर के मध्य में स्थित एक विशाल मंदिर है। इस मंदिर को जगन्नाथराय का मंदिर भी कहते हैं। इसका निर्माण 1652 में पूरा हुआ था। उदयपुर के महाराणा जगत सिंह प्रथम ने इस भव्य मंदिर का निर्माण कराया था। इसके निर्माण में कुल 25 साल लगे थे।

Explanation:

कहा जाता है कि महाराजा जगत सिंह की जगन्नाथ पुरी के विष्णु भगवान में अखंड आस्था थी। एक दिन सपने में उन्हें विष्णु भगवान ने कहा कि वह उनका मंदिर उदयपुर में बनवाएं, वह वहीं आकर निवास करेंगे। इसी सपने के बाद इस मंदिर का निर्माण शुरू हुआ। मंदिर आधार तल से 125 फीट ऊंचाई पर है। इसका शिखर 100 फीट ऊंचा है। मंदिर में कुल 50 कलात्मक स्तंभ हैं। इस मंदिर में जो प्रतिमा स्थापित है, वह राजस्थान के डूंगरपुर के पश्वशरण पर्वत से लाई गई थी। गर्भ गृह में काले पत्थर की सुंदर विष्णु प्रतिमा स्थापित की गई है। इस मंदिर को जागृत मंदिर माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि साक्षात जगदीश यहां वास करते हैं। शिखर और गर्भ गृह के लिहाज से यह नागर शैली में बना मंदिर है। मंदिर परिसर में कई छोटे मंदिरों का निर्माण कराया गया है, जो पंचायतन शैली का उदाहरण है। मंदिर परिसर में एक शिलालेख भी है, जो गुहिल राजाओं के बारे में जानकारी देता है।यह मंदिर मारू-गुजराना स्थापत्य शैली का भी उत्कृष्ट उदाहरण है। नक्काशीदार खंभे, सुंदर छत और चित्रित दीवारों के साथ यह मंदिर एक चमत्कारी वास्तुशिल्प की संरचना प्रतीत होता है। यह मंदिर एक ऊंचे विशाल चबूतरे पर निर्मित है। मंदिर के बाहरी हिस्सों में चारों तरफ अत्यन्त सुंदर नक्काशी का काम किया गया है। इसमें गजथर, अश्वथर तथा संसारथर को प्रदर्शित किया गया है। सन 1736 में मुगल बादशाह औरंगजेब के आक्रमण के समय मंदिर का अगला हिस्सा टूट गया। इसके गजथर के कई हाथी तथा बाहरी द्वार के पास का कुछ भाग आक्रमणकारियों ने तोड़ डाला था। बाद में महाराणा संग्राम सिंह द्वितीय ने फिर से मंदिर की मरम्मत कराई।

कैसे पहुंचें : उदयपुर देश के कई प्रमुख शहरों से रेलमार्ग से जुड़ा है। दिल्ली, कोलकाता, मुंबई, जयपुर सहित कई शहरों से यहां के लिए सीधी ट्रेनें हैं। साथ ही दिल्ली, जयपुर, इंदौर, कोटा और अहमदाबाद से उदयपुर के लिए बसें उपलब्ध हैं। नजदीकी हवाई अड्डा महाराणा प्रताप एयरपोर्ट है, जो शहर से करीब 20 किलोमीटर की दूरी पर है।

Answered by gopeshmeena44
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जगदीश मंदिर उदयपुर का बड़ा ही सुन्दर,प्राचीन एवं विख्यात मंदिर है। आद्यात्मिक्ता के क्षेत्र में इसका अपना एक विशेष स्थान हैं,साथ ही मेवाड़ के इतिहास में भी इसका योगदान रहा है। यह मंदिर उदयपुर में रॉयल पैलेस के समीप ही स्थित है, यह मंदिर भारतीय-आर्य स्थापत्य कला का उत्कृष्ट उदाहण है, चूकिं यह मंदिर उदयपुर की शान है इसलिए उदयपुर के बारे में संक्षिप्त जानकारी-

उदयपुर झीलों, पहाड़ों, महलों, ऐतिहासिक इमारतों एवं दर्शनीय स्थलों से सुशोभित एक सुन्दर शहर है । महाराणा उदयसिंह ने सन् 1553 में उदयपुर को अपनी राजधानी बनाया , जो की 1818 तक मेवाड़ की राजधानी रही।

मंदिर निर्माण –

इसका निर्माण महाराणा जगत सिंह ने सन् 1651 में करवाया था , उस समय उदयपुर मेवाड़ की राजधानी था। यह मंदिर लगभग 400 वर्ष पुराना है यह उदयपुर का सबसे बड़ा मंदिर है । मंदिर में प्रतिष्ठापित चार हाथ वाली विष्णु की छवि काले पत्थर से बनी है।

जानिए जगदीश मंदिर के इतिहास व निर्माण के बारे में | पुजारी जी से विशेष बातचित
Source: Wikipedia


मंदिर भ्रमण –

यह मंदिर जगत के पालनकर्ता भगवान विष्णु को समर्पित है। यह पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र है । इसे जगन्नाथ मंदिर के नाम से भी जाना जाता है । इसकी ऊंचाई 125 फीट है । यह मंदिर 50 कलात्मक खंभों पर टिका है । मंदिर में प्रवेश से पहले मैंने पाया कि यह मंदिर सिटी पेलेस से कुछ ही दुरी पर है यहाँ से सिटी पेलेस का बारा पोल सीधा देखा जा सकता है,एवं गणगौर घाट भी यहाँ से नज़दीक ही है । मंदिर में भगवान जगन्नाथ का श्रृंगार बेहद खूबसूरत था । शंख, घधा ,पद्म व चक्र धारी श्री जगन्नाथ जी के दर्शन कर मैं धन्य हुआ।जानिए जगदीश मंदिर के इतिहास व निर्माण के बारे में | पुजारी जी से विशेष बातचित

दर्शन कर मुझे सकारात्मक ऊर्जा की अनुभूति हुई। मंदिर की सभी व्यवस्थाएं मुझे बहुत अच्छी लगी मंदिर में मुख्य मूर्ति के अलावा गणेश जी, शिव जी ,माता पार्वती एवं सूर्य देव की मूर्ति भी है । मंदिर के द्वारपाल के रूप में सीढ़ियों के पास दो हाथियों की मूर्तियां तैनाद है। मंदिर में भ्रमण के दौरान मैं इसकी खूबसूरती व स्थापत्य कला पर मोहित हो गया । मैंने देखा की मंदिर के स्तम्भों पर जटिल नक्काशियां की हुई हैं, मंदिर की उत्कृष्ट शिल्पकारी व कलात्मकता सचमुच दर्शनीय है । यहाँ खंभों पर विभिन्न छोटी-छोटी शिल्प कलाकृतियाँ है जिन्हें देखकर लगता है मानो ये कोई कहानी कह रही हो । मंदिर के अंदर लगे शिलालेख हमें इतिहास के बारे में बहुत कुछ बताते हैं।

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