Hindi, asked by mohitpandey82, 2 days ago

नम्नलिखित चित्रों को देखकर उसे 60 से 70 सब्दो में वर्णन कीजिए। ​

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Answered by kishansoni299
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i hope this answer is correct ☺️

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Answered by monikavaghela9622
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तोड़े से भी ना टूटे, ये ऐसा मन बंधन है,

इस बंधन को सारी दुनिया कहती रक्षा बंधन है।

प्रस्तावना

रक्षा बंधन का त्योहार भारतीय त्योहारों में से एक प्राचीन त्योहार है। रक्षा-बंधन यानि – रक्षा का बंधन, एक ऐसा रक्षा सूत्र जो भाई को सभी संकटों से दूर रखता है। यह त्योहार भाई-बहन के बीच स्नेह और पवित्र रिश्ते का प्रतिक है। रक्षाबंधन एक सामाजिक, पौराणिक, धार्मिक और ऐतिहासिक भावना के धागे से बना एक ऐसा पावन बंधन है, जिसे रक्षाबंधन के नाम से केवल भारत में ही नहीं बल्कि नेपाल और मॉरेशिस में भी बहुत धूम-धाम से मनाया जाता है। राखी के त्योहार को हम संपूर्ण भारतवर्ष में सदियों से मनाते चले आ रहे हैं। आजकल इस त्योहार पर बहनें अपने भाई के घर राखी और मिठाइयाँ ले जाती हैं। भाई राखी बाँधने के पश्चात् अपनी बहन को दक्षिणा स्वरूप रुपए देते हैं या कुछ उपहार देते हैं।

 

रक्षा-बंधन कब मनाया जाता है

रक्षाबन्धन एक हिन्दू व जैन त्योहार है, जो प्रतिवर्ष श्रावण मास (जुलाई-अगस्त) की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। श्रावण (सावन) में मनाये जाने के कारण इसे श्रावणी (सावनी) या सलूनो भी कहते हैं। रक्षाबंधन पर बहनें भाइयों की दाहिनी कलाई एक पवित्र धागा यानि राखी बाँधती है और उनके अच्छे स्वास्थ्य और लम्बे जीवन की कामना करती है। वहीं दूसरी तरफ भाइयों द्वारा अपनी बहनों की हर हाल में रक्षा करने का संकल्प लिया जाता है। राखी कच्चे सूत जैसे सस्ती वस्तु से लेकर रंगीन कलावे, रेशमी धागे, तथा सोने या चाँदी जैसी मँहगी वस्तु तक की हो सकती है। हालांकि रक्षाबंधन की व्यापकता इससे भी कहीं ज्यादा है। राखी बांधना सिर्फ भाई-बहन के बीच का कार्यकलाप नहीं रह गया है। राखी देश की रक्षा, पर्यावरण की रक्षा, हितों की रक्षा आदि के लिए भी बांधी जाने लगी है।

 

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भाई-बहन के प्यार का प्रतीक

वैसे तो भाई-बहन का रिश्ता बहुत खास होता है, जिस तरह से वह एक-दूसरे की चिंता करते है, उसकी कोई तुलना नहीं की जा सकती है। भाई-बहन के बीच का रिश्ता अतुलनीय है, वे चाहे छोटी-छोटी बातों पर एक-दूसरे से कितना भी लड़ाई-झगड़ा करें, लेकिन फिर भी वह एक-दूसरे के लिए कुछ भी करने से पीछे नहीं हटते। जैसे-जैसे वह बड़े होते जाते हैं जीवन के विभिन्न समयों पर यह रिश्ता और भी ज्यादा मजबूत होता जाता है। बड़े भाई अपनी बहनों की सुरक्षा के लिए हमेशा तैयार रहते हैं, इसी तरह बड़ी बहनों द्वारा भी अपने छोटे भाइयों का मार्गदर्शन किया जाता है। भाई-बहन के इसी प्रेम के कारण यह विशेष पर्व मानाया जाता है, रक्षा बंधन का त्योहार हर भाई-बहन के लिए बहुत खास होता है। यह उनका एक-दूसरे के प्रति आपसी स्नेह, एकजुटता और विश्वास का प्रतीक है।

 

रक्षा-बंधन की तैयारियाँ

प्रातः स्नानादि करके लड़कियाँ और महिलाएँ पूजा की थाली सजाती हैं। थाली में राखी के साथ रोली या हल्दी, चावल, दीपक, मिठाई, फूल और कुछ पैसे भी होते हैं। लड़के और पुरुष तैयार होकर टीका करवाने के लिये पूजा या किसी उपयुक्त स्थान पर बैठते हैं। पहले अभीष्ट देवता की पूजा की जाती है, इसके बाद रोली या हल्दी से भाई का टीका करके चावल को टीके पर लगाया जाता है और सिर पर फूलों को छिड़का जाता है, उसकी आरती उतारी जाती है और दाहिनी कलाई पर राखी बाँधी जाती है। भाई बहन को उपहार या धन देता है। इस प्रकार रक्षाबन्धन के अनुष्ठान को पूरा करने के बाद ही भोजन किया जाता है।

प्रत्येक पर्व की तरह उपहारों और खाने-पीने के विशेष पकवानों का महत्त्व रक्षाबन्धन में भी होता है। आमतौर पर दोपहर का भोजन महत्त्वपूर्ण होता है और रक्षाबन्धन का अनुष्ठान पूरा होने तक बहनों द्वारा व्रत रखने की भी परम्परा है। यह पर्व भारतीय समाज में इतनी व्यापकता और गहराई से समाया हुआ है कि इसका सामाजिक महत्त्व तो है ही, धर्म, पुराण, इतिहास, साहित्य और फ़िल्में भी इससे अछूते नहीं हैं।

 

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रक्षा-बंधन का महत्त्व

रक्षाबन्धन के दिन राखी बाँधने की बहुत पुरानी परम्परा है। रक्षाबंधन एक रक्षा का रिश्ता होता है जहाँ पर सभी बहन और भाई एक दूसरे के प्रति प्रेम और कर्तव्य का पालन, रक्षा का दायित्व लेते हैं और ढेर सारी शुभकामनाओं के साथ रक्षाबंधन का उत्सव मनाते हैं। जैन धर्म में भी राखी का बहुत महत्व होता है। यह बात जरूरी नहीं होती कि जिनको बहनें राखी बाँधे वे उनके सगे भाई हो, लडकियाँ सभी को राखी बाँध सकती हैं और सभी उनके भाई बन जाते हैं। इस दिन बहन भाई के लिए मंगल कामना करती हुई उसे राखी बाँधती है। भाई उसे हर स्थिति में रक्षा करने का वचन देता है। इस प्रकार रक्षा बंधन भाई बहन के पावन स्नेह का त्योहार है।

 

रक्षा-बंधन का पौराणिक प्रसंग

राखी का त्योहार कब शुरू हुआ यह कोई नहीं जानता। लेकिन भविष्य पुराण में वर्णन मिलता है कि देव और दानवों में जब युद्ध शुरू हुआ तब दानव हावी होते नज़र आने लगे। भगवान इन्द्र घबरा कर बृहस्पति के पास गये। वहां बैठी इन्द्र की पत्नी इंद्राणी सब सुन रही थी। उन्होंने रेशम का धागा मन्त्रों की शक्ति से पवित्र करके अपने पति के हाथ पर बाँध दिया। संयोग से वह श्रावण पूर्णिमा का दिन था। लोगों का विश्वास है कि इन्द्र इस लड़ाई में इसी धागे की मन्त्र शक्ति से ही विजयी हुए थे। उसी दिन से श्रावण पूर्णिमा के दिन यह धागा बाँधने की प्रथा चली आ रही है। यह धागा धन, शक्ति, हर्ष और विजय देने में पूरी तरह समर्थ माना जाता है।

इतिहास में श्री कृष्ण और द्रौपदी की कहानी प्रसिद्ध है, जिसमें जब कृष्ण ने सुदर्शन चक्र से शिशुपाल का वध किया तब उनकी तर्जनी में चोट आ गई। द्रौपदी ने उस समय अपनी साड़ी फाड़कर उनकी उँगली पर पट्टी बाँध दी, और इस उपकार के बदले श्री कृष्ण ने द्रौपदी को किसी भी संकट में द्रौपदी की सहायता करने का वचन दिया था और उसी के चलते कृष्ण ने इस उपकार का बदला बाद में चीरहरण के समय उनकी साड़ी को बढ़ाकर चुकाया। कहते हैं परस्पर एक दूसरे की रक्षा और सहयोग की भावना रक्षाबन्धन के पर्व में यहीं से प्रारम्भ हुई।

 

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