///namak ka daroga kahani ki samiksha/// ;1)bhumika. 2)kahani ka sar (1 page). 3)patra and charitra-chitran (1 page ). 4)bhasha shaly( 1 page). 5)sanvad and vatavaran(1 page). 6)udeshya (1 page). 7)nishkarsh.anwer please
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Answer: नमक का दारोगा : समीक्षा
1 ॰ भूमिका
मुंशी प्रेमचंद द्वारा रचित नमक का दारोगा एक ऐसी कहानी है जो तत्कालीन नमक के विभाग में पंडित बंसीधर की सत्यनिष्ठा और धर्मपरायणता के आगे पंडित अलोपीदीन के सामर्थ्य को पूर्णत: पराजित करने में सफल होती है | इसके अंतर्गत दर्शाया गया है कि ईमानदारी और वफादारी जैसे नैतिक मूल्य यदि दृढ़ता के साथ पालन किए जाये तो अंतत: विजयश्री आपके द्वार तक अवश्य पहुँचती है | यहाँ नैतिकता तथा सच्चरित्रता का महिमामंडन हुआ है | पंडित अलोपीदीन की लोलुपता तथा सामर्थ्य एवं गर्व जैसी प्रवृतियों का पराभव तथा खंडन हुआ है | मानव समाज में नैतिक मूल्यों की पैठ तथा सदाचार बढ़ाने में कहानी शत –प्रतिशत सफल हुई है |
2॰ कहानी का सार : नमक का दरोगा कहानी ब्रिटिश सरकार के समय की है । भारत में नमक बनाने और बेचने पर कर लगा दिए गए थे । इस कारण नमक के विभाग में काम करने वालों की चांदी हो गई थी । वकील भी इस विभाग में काम करने के इच्छुक थे । इसी विभाग में पंडित बंसीधर की नियुक्ति हुई । वे सत्यनिष्ठ, धर्मपरायण तथा कर्त्तव्य पालन करने हेतु अत्यंत दृढ़ संकल्प थे । एक रात वे पंडित अलोपीदीनकी नमक की गाड़ियां जो अवैध रूप से नमक ले जा रही थी, को पकड़ कर जब्त कर लेते है और अलोपीदीनको गिरफ्तार ।
अलोपीदीन, अपनी ओर से खुद को बचाने में तथा स्वयं पर लगे आरोप का खंडन कर उसे बंसीधर की गलती सिद्घ करने में कामयाब होते है । बंसीधर की नौकरी भी चली जाती हैं। इस मामले के बाद घर के लोग भी बुरा बर्ताव करते है ।
अंतत: विजय बंसीधर की ही होती है । अलोपीदीन उनकी ईमानदारी से बेहद प्रभावित होकर स्वयं उनके घर आकर उन्हें अपनी अपार धन संपत्ति का रखवाला नियुक्त करते है ।
3॰ पात्रों का चयन : नमक का दरोगा कहानी के पात्रों का चयन बहुत ही सटीक एवं उपयुक्त हैं। प्रेमचंद , पाठ के अंत तक पात्रों की गरिमा, मन: स्थिति, सोच की प्रस्तुति करने में अत्यंत सफल हुए हैं । पाठक के द्वारा उनके पात्र सराहना, तथा योग्य प्रशंसा प्राप्त करने में सफल हुए हैं ।
लेखक ने पात्रों की मन:स्थिति का यथा - योग्य विवरण प्रस्तुत किया है । पात्रों की वृत्तियां, सोच तथा कार्य शैली का मनोहारी और रोचक वर्णन किया गया है । लेखक ने उनके अनुभव तथा विचार शक्ति एवं परिस्थिति का आकर्षक एवं पाठक को बांधकर रखने वाला चरित्र-चित्रण किया है। बंसीधर, अलोपीदीन तथा बंशीधर के पिता इन सभी पात्रों का चयन विषय वस्तु से युक्त और कहानी के अनुरूप किया गया है ।
4॰ भाषा शैली
. भाषा की चित्रात्मकता, लोकोक्तियों और मुहावरों के उपयोग तथा हिंदी-उर्दू के साझा रूप एवं बोलचाल की भाषा के लिहाज से यह कहानी अद्भुत है। कहानी में मुहावरों के प्रयोग से कहानी का प्रभाव बढ़ा है। प्रेमचंद कलाम के सिपाही थे | उनकी भाषा शैली सहज सरस एवं तारतम्यता से ओतप्रोत है | इसी अनूठी शैली के कारण वे पाठक को अपनी कहानी में आकर्षित कर लेते है और उसी में गुम कर देते है | उनकी मुहावरेदार भाषा जहां पाठक को गुदगुदाती है वहीं समय समय पर कौतुहल भी जगाती है |
5. संवाद और वातावरण : संवाद और वातावरण रुचिकर एवम् सहज ग्राहय है । वातावरण का चित्रण, संवाद तथा परिस्थितियों के अनुकूल बन पड़ा है । संवादों में भाषा की रोचकता तथा सरसता पाठक को जिज्ञासा तथा कौतूहल की ओर धकेलती है । संवादों द्वारा कहानी का सातत्य समग्र विषय वस्तु को लेकर आगे बढ़ता है तथा अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में पूर्णत: सफल भी होता है ।
वातावरण तथा समय का समायोजन यथोचित रूप से हुआ है । नैतिक मूल्यों की विजय तथा अनैतिकता की पराजय का दर्शन एवं मूल्यांकन की दृष्टि से, विषय- सामग्री के द्वारा लोगों की मनोवृत्ति और रोचक एवम् गूढ़ संवादों के परिप्रक्ष्यों में सम्यक विस्तार हुआ हैं ।
6॰ कहानी का उद्देश्य : कहानी का उद्देश्य धर्मपरायणता सत्यनिष्ठा तथा कर्तव्यनिष्ठा की विजय को दर्शाना है और लेखक इसमें पूर्णत: सफल हुए हैं | पाठ की रोचक प्रस्तुति तथा समाप्ति उजागर करती हैं की सत्य कुछ समय के लिए परेशान या पीड़ित भले ही हो किंतु अंत में विजय उसी की होती है | इस पाठ के द्वारा लेखक का यही उद्देश्य सफल तथा संपूर्ण गरिमा के साथ अपने लक्ष्य को प्राप्त करता है | पंडित अलोपीदीन की धनलोलुपता तथा सामर्थ्य बंसीधर की अडिग ईमानदारी के समक्ष पराजित हो जाते हैं | कथा का समापन नैतिकता की विजय और सत्य के शंखनाद के साथ होता है ।
7॰ कहानी का निष्कर्ष : कहानी का निष्कर्ष यही निकलता है कि मनुष्य कितना भी सामर्थयुक्त क्यों न हो किंतु सत्यनिष्ठा और ईमानदारी जैसे अपराजित नैतिक मूल्यों के समक्ष जीतने की ताकत नहीं रख सकता।
वस्तुत: यह वे मूल्य है जो मनुष्य को मनुष्य बनाते हैं । जीवन की सार्थकता इसमें नहीं है कि आप कितना धन कमाते हैं अपितु इसमें है कि आपका मानस तथा मूल्य कितने अडिग एवं अजेय है । वस्तुतः यह वो निधि है जो जीवन की वास्तविक पूंजी है जिसके समक्ष बड़े से बड़ा लक्ष्मीपति भी निर्धन तथा असहाय हो जाता है ।
Explanation:
यह कहानी हमें कर्मों के फल के महत्व के बारे में समझाती है। यह कहानी अधर्म पर धर्म औरअसत्य पर सत्य की जीत को दर्शाती है। भले ही इंसान खुद कितना भी बुरा काम क्यों न कर ले लेकिन उसे भी अच्छाई पसंद आती है। खुद कितना भी भ्रष्ट क्यों न हो लेकिन वह पसंद ईमानदार लोगों को ही करता है। कुछ लोग कितने भी ऊंचे पद पर क्यों न बैठे हो जाएं और कितना अच्छा वेतन क्यों न पाते हों लेकिन उनके मन में ऊपरी आय का लालच हमेशा बना रहता है। इस कहानी के द्वारा लेखक ने प्रशासनिक स्तर और न्यायिक व्यवस्था में भ्रष्टाचार और उसकी सामाजिक सुविकृति को बड़े ही साहसिक तरीके से उजागर किया है।
ये कहानी आज़ादी के पहले की है अंग्रेजों ने नमक पर अपना एकाधिकार जताने के लिए अलग नमक विभाग बना दिया। नमक विभाग के बाद लोगों ने कर से बचने के लिए नमक का चोरी छुपे व्यापार भी करने लगे जिसके कारण भ्रष्टाचार भी फैलने लगा। कोई रिश्वत देकर अपना काम निकलवाता, कोई चालाकी और होशियारी से। नमक विभाग में काम करने वाले अधिकारी वर्ग की कमाई तो अचानक कई गुना बढ़ गई थी। अधिकतर लोग इस विभाग में काम करने के इच्छुक रहते थे क्योंकि इसमें ऊपर की कमाई काफी होती थी। लेखक कहते हैं कि उस दौर में लोग महत्वपूर्ण विषयों के बजाय प्रेम कहानियों व श्रृंगार रस के काव्यों को पढ़कर भी उच्च पद प्राप्त कर लेते थे।
उसी समय मुंशी वंशीधर नौकरी के तलाश कर रहे थे। उनके पिता अनुभवी थे अपनी वृद्धावस्था का हवाला देकर ऊपरी कमाई वाले पद को बेहतर बताया। वे कहते हैं कि मासिक वेतन तो पूर्णमासी का चांद है जो एक दिन दिखाई देता है और घटते-घटते लुप्त हो जाता है। ऊपरी आय बहता हुआ स्रोत है जिससे सदैव प्यास बुझती है। वह अपने पिता से आशीर्वाद लेकर नौकरी की तलाश कर रहे होते है और भाग्यवश उन्हें नमक विभाग में नौकरी प्राप्त होती है जिसमें ऊपरी कमाई का स्रोत अच्छा है ये बात जब पिता जी को पता चली तो बहुत खुश हुए।
छ: महीने अपनी कार्यकुशलता के कारण अफसरों को प्रभावित कर लिया था। ठंड के मौसम में वंशीधर दफ्तर में सो रहे थे। यमुना नदी पर बने नावों के पुल से गाड़ियों की आवाज सुनकर वे उठ गए। यमुना नदी पर बने नावों के पुल से गाड़ियों की आवाज सुनकर वे उठ गए। पंडित अलोपीदान इलाके के प्रतिष्ठित जमींदार थे। जब जांच की तो पता चला कि गाड़ी में नमक के थैले पड़े हुए हैं। पडित ने वंशीधर को रिश्वत ले कर गाड़ी छोड़ने को का लेकिन उन्होंने साफ़ मन कर दिया। पंडित जी को गिरफ्तार कर लिया गया।
अगले दिन ये खबर आग की तरह से फेल गई। अलोपीदीन को अदालत लाया गया। लज्जा के कारण उनकी गर्दन शर्म से झुक गई। सारे वकील और गवाह उनके पक्ष में थे, लेकिन वंशीधर के पास के केवल सत्य था। पंडितजी को सबूतों के आभाव की वजह से रिहा कर दिया।
पंडित जी ने बाहर आ कर पैसे बांटे और वंशीधर को व्यंगबाण का सामना करना पड़ा एक हफ्ते के अंदर उन्हें दंड स्वरूप नौकरी से हटा दिया। संध्या का समय था। पिता जी राम-राम की माला जप रहे थे तभी पंडित जी रथ पर झुक कर उन्हें प्रणाम किया और उनकी चापलूसी करने लगे और अपने बेटे को भलाबुरा कहा। उन्होने कहा मैंने कितने अधिकारियो को पैसो के बल पर खरीदा है लेकिन ऐसा कर्तव्यनिष्ठ नहीं देखा पंडित जी वंशीधर की कर्तव्यनिष्ठा के कायल हो गए। वंशीधर ने पंण्डित जी को देखा तो उनका सम्मानपूर्वक आदर सत्कार किया।
उन्हें लगा कि पंडितजी उन्हें लज्जित करने आए हैं। लेकिन उनकी बात सुनकर आश्चर्यचकित हो गए और उन्होंने कहा जो पंडितजी कहेंगे वही करूंगा। पंडितजी ने स्टाम्प लगा हुआ एक पत्र दिया जिसमें लिखा था कि वंशीधर उनकी सारी स्थाई जमीन के मैनेजर नियुक्त किए गए हैं। वंशीधर की आंखों में आंसू आ गए और उन्होंने का वो इस पद के काबिल नहीं है। पंडित जी ने कहा मुझे न काबिल व्यक्ति ही चाहिए जो धर्मनिष्ठा से काम करे।