Namak ke daroga mein सरकारी कर्मचारी जरूरतमंदों के साथ कैसा व्यवहार करते हैं और क्यों
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Answer:
इस प्रश्न का उत्तर हम मुंशी वंशीधर के पिता के शब्दों से समझ सकते है जो उन्होंने अपने पुत्र को कहे थे
नौकरी में ओहदे की ओर ध्यान मत देना, यह तो पीर का मजार है. निगाह चढ़ावे और चादर पर रखनी चाहिए. ऐसा काम ढूंढ़ना जहां कुछ ऊपरी आय हो. मासिक वेतन तो पूर्णमासी का चांद है, जो एक दिन दिखाई देता है और घटते-घटते लुप्त हो जाता है. ऊपरी आय बहता हुआ स्रोत है जिससे सदैव प्यास बुझती है. वेतन मनुष्य देता है, इसी से उसमें वृध्दि नहीं होती. ऊपरी आमदनी ईश्वर देता है, इसी से उसकी बरकत होती हैं, तुम स्वयं विद्वान हो, तुम्हें क्या समझाऊं.
‘इस विषय में विवेक की बड़ी आवश्यकता है. मनुष्य को देखो, उसकी आवश्यकता को देखो और अवसर को देखो, उसके उपरांत जो उचित समझो, करो. गरजवाले आदमी के साथ कठोरता करने में लाभ ही लाभ है. लेकिन बेगरज को दांव पर पाना ज़रा कठिन है. इन बातों को निगाह में बांध लो यह मेरी जन्मभर की कमाई है.’
Explanation:
इस प्रकार हम कह सकते है कि आम आदमी की स्थिति काफी खराब थी