Hindi, asked by varshitanayal505, 7 months ago

'नमक का दारोगा' पाठ मे इश्वर प्रद्त वस्तु कसे कहा गया है?​

Answers

Answered by kubetkumar60
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Explanation:

निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए:

4. पंडित आलोपदीन ने हँसकर कहा हम सरकारी हुक्म को नहीं जानते और न सरकार को। हमारे सरकार तो आप ही हैं। हमारा और आपका तो घर का मामला है, हम कभी आपसे बाहर हो सकते हैं? मापने व्यर्थ का कष्ट उठाया। यह हो नहीं सकता कि इधर से जाएँ और इस घाट के देवता को भेंट न चढ़ावें। मैं तो आपकी सेवा में स्वयं ही आ रहा था। वंशीधर पर ऐश्वर्य की मोहिनी वशी का कुछ प्रभाव न पड़ा। ईमानदारी की नयी उमंग थी। कड़ककर बोले-हम उन नमकहरामों में नहीं हैं जो कौड़ियों पर अपना ईमान बेचते फिरते हैं। आप इस समय हिरासत में हैं। आपका कायदे के अनुसार चालान होगा। बस मुझे अधिक बातों की पुरसत नहीं है। जमादार बदलू सिंह, तुम इन्हें हिरासत में ले चलो, मैं हुक्म देता हैं।

प्रश्न

1. पडित अलोपीदीन का व्यवहार कैसा है?

2. 'घाट के देवता को भेंट चढाने से क्या तात्पर्य हैं?

3 दशधर का व्यवहार कैसा था।

उत्तर-

1. पंडित अलोपीदीन चालाक व्यापारी है। वह चापलूसी, रिश्वत आदि से अपना काम निकलवाना जानता है। रिश्वत देने में माहिर होने के कारण वह सरकारी कर्मियों व अदालत से नहीं घबराता।

2. इस कथन का तात्पर्य है कि इस क्षेत्र के नमक के दरोगा को रिश्वत देना आवश्यक है अर्थात् बिना रिश्वत दिए वह मुफ्त में घाट नहीं पार करने देंगे।

3, वंशीधर ने अलौपदीन से कठोर व्यवहार किया। वह ईमानदार था तथा गैरकानूनी कार्य करने वालों को सजा दिलाना चाहता था। इस प्रकार वंशीधर का व्यवहार सरकारी गरिमा एवं पद के अनुरूप था।

निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए:

5. दुनिया सोती थी, पर दुनिया की जीभ जागती थी। सवेरे देखिए तो बालक-वृद्ध सबके मुँह से यही बात सुनाई देती थी। जिसे देखिए, वहीं पंडित जी के इस व्यवहार पर टीका-टिप्पणी कर रहा था, निंदा की बौछारें हो रही थीं मानी संसार से अब पापी का पाप कट गया। पानी को दूध के नाम से बेचनेवाला ग्वाला, कल्पित रोशनामधे भरनेवाले अधिकारी वर्ग, रेन में बिना टिकट सफर करने वाले बाद लोग, जाली दस्तावेज़ लानानेवाले सेठ और साहूकार, यह सब-वे-सब देवताओं की भाँति गरदने चला रहे थे। जब दूसरे दिन पंडित भलोपीदीन अभियुक्त होकर कांस्टेबलों के साथ, हाथों में हथकड़ियाँ, हृदय में ग्लानि और क्षोभ भरे, लज्जा से गरदन झुकाए अदालत की तरफ चले तो सारे शहर में हलचल मच गई। मेलों में कदाचित् आँखें इतनी व्यग्र न होती होंगी। भीड़ के मारे छत और दीवार में कोई भेद न रहा।

प्रश्न

1. दुनिया सोती थी, पर दुनिया की जीभ जगती थी।' से क्या तात्पर्य हैं।

2. देवताओं की तरह गरदने चलाने का क्या मतलब है

३. कौन-कौन लोग गरदन चला रहे थे?

उत्तर-

1. इस कधन के माध्यम से लेखक कहना चाहता है कि संसार में परनिंदा हर समय होती रहती है। रात के समय हुई घटना की चर्चा आग की तरह सारे शहर में फैल गई। हर आदमी मजे लेकर यह बात एक-दूसरे बता रहा था।

2. इसका अर्थ है-स्वयं को निर्दोष समझना। देवता स्वयं को निर्दोष मानते हैं, अतः वे मानव पर तरह-तरह के आरोप लगाते हैं। पंडित अलोपीदीन के पकड़े जाने पर भ्रष्ट भी उसकी निंदा कर रहे थे।

3. पानी को दूध के नाम से बेचने वाला ग्वाला, नकली बही-खाते बनाने वाला अधिकारी वर्ग, रेल में बेटिकट यात्रा करने वाले बाबू जाली दस्तावेज बनाने वाले सेठ और साहूकार ये भी गरदने चला रहे थे।

निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए:

6. किंतु अदालत में पहुँचने की देर थी। पंडित अलोपीदीन इस अगाध वन के सिंह थे। अधिकारी वर्ग उनके भक्त, मले उनके सेवक, वकील मुलार उनके आज्ञापालक और अदला चपरासी तथा चौकीदार तो उनके बि| माल के गुलाम थे। उन्हें देखते ही लो। चारों तरफ से दौड़े। सभी लोग विस्मित हो रहे थे। इसलिए नहीं कि अलोपीदीन ने क्यों यह कर्म किया, बल्दिा इसलिए कि वह कानून के पंजे में कैसे । आए। ऐसा मनुष्य जिसके पास असाध्य साधन करनेवाला धन और अनन्य वाघालता हो, वह यय कानून के पंजे में आए । प्रत्येक मनुष्य उनसे सहानुभूति प्रकट करता था। बड़ी तत्परता से इस आक्रमण को रोकने के निमित्त वकीलों की एक सेना तैयार की गई। न्याय के मैदान में धर्म और धन में युद्ध ठन गया। वंशीधर चुपचाप खड़े थे। उनके पास सत्य के सिवा न कोई बल था, न स्पष्ट भाषण के अतिरिक्त कोई शस्त्र। गवाह थे किंतु लोभ से डाँवाडोल।

प्रश्न

1. किस वन का सिह कहा गया तथा क्यों?

2. कचहरी की अगाध वन क्यों कहा गया।

३. लोगों के विस्मित होने का क्या कारण था?

उत्तर-

1. 1पंडित अलोपीदीन को अदालत रूपी वन का सिंह कहा गया, क्योंकि यहाँ उसके खरीदे हुए अधिकारी, अमले, अरदली, चपरासी, चौकीदार आदि थे। वे उसके हुबम के गुलाम थे।

2. कचहरी को अगाध वन कहा गया है, क्योंकि न्याय की व्यवस्था जटिल व बीहड़ होती है। हर व्यक्ति दूसरे को खाने के लिए वोठा है| वहा से बहुत कुछ खरीदा जा सकता है, जिससे जनसाधारण न्याय प्रणाली का शिकार बनकर रह जाता है।

3. लोग अलोपीदीन की गिरफ्तारी से हैरान थे, क्योंकि उन्हें उसकी धन की ताकत व बातचीत की कुशलता का पता था। उन्हें उसवे पकड़े जाने पर हैरानी थी क्योंकि वह अपने धन के बल पर कानून की हर

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