Hindi, asked by vikrant101058, 7 months ago

. नमक का दरोगा कहानी का प्रथम प्रकाशन कब हुआ था ?


Answers

Answered by vikramrawat123
4

Answer:

Hindi Story Namak Ka Daroga by Munshi Premchand

लेखक: प्रेमचंद

जब नमक का नया विभाग बना और ईश्वरप्रदत्त वस्तु के व्यवहार करने का निषेध हो गया तो लोग चोरी-छिपे इसका व्यापार करने लगे. अनेक प्रकार के छल-प्रपंचों का सूत्रपात हुआ, कोई घूस से काम निकालता था, कोई चालाकी से. अधिकारियों के पौ-बारह थे. पटवारीगिरी का सर्वसम्मानित पद छोड़-छोड़कर लोग इस विभाग की बरकंदाज़ी करते थे. इसके दारोगा पद के लिए तो वक़ीलों का भी जी ललचाता था.

यह वह समय था जब अंगरेज़ी शिक्षा और ईसाई मत को लोग एक ही वस्तु समझते थे. फ़ारसी का प्राबल्य था. प्रेम की कथाएं और शृंगार रस के काव्य पढ़कर फ़ारसीदां लोग सर्वोच्च पदों पर नियुक्त हो जाया करते थे.

मुंशी वंशीधर भी जुलेखा की विरह-कथा समाप्त करके सीरी और फ़रहाद के प्रेम-वृत्तांत को नल और नील की लड़ाई और अमेरिका के आविष्कार से अधिक महत्व की बातें समझते हुए रोज़गार की खोज में निकले.

उनके पिता एक अनुभवी पुरुष थे. समझाने लगे,‘बेटा! घर की दुर्दशा देख रहे हो. ऋण के बोझ से दबे हुए हैं. लड़कियां हैं, वे घास-फूस की तरह बढ़ती चली जाती हैं. मैं कगारे पर का वृक्ष हो रहा हूं, न मालूम कब गिर पडूं! अब तुम्हीं घर के मालिक-मुख़्तार हो.

‘नौकरी में ओहदे की ओर ध्यान मत देना, यह तो पीर का मजार है. निगाह चढ़ावे और चादर पर रखनी चाहिए. ऐसा काम ढूंढ़ना जहां कुछ ऊपरी आय हो. मासिक वेतन तो पूर्णमासी का चांद है, जो एक दिन दिखाई देता है और घटते-घटते लुप्त हो जाता है. ऊपरी आय बहता हुआ स्रोत है जिससे सदैव प्यास बुझती है. वेतन मनुष्य देता है, इसी से उसमें वृध्दि नहीं होती. ऊपरी आमदनी ईश्वर देता है, इसी से उसकी बरकत होती हैं, तुम स्वयं विद्वान हो, तुम्हें क्या समझाऊं.

‘इस विषय में विवेक की बड़ी आवश्यकता है. मनुष्य को देखो, उसकी आवश्यकता को देखो और अवसर को देखो, उसके उपरांत जो उचित समझो, करो. गरजवाले आदमी के साथ कठोरता करने में लाभ ही लाभ है. लेकिन बेगरज को दांव पर पाना ज़रा कठिन है. इन बातों को निगाह में बांध लो यह मेरी जन्मभर की कमाई है.’

इस उपदेश के बाद पिताजी ने आशीर्वाद दिया. वंशीधर आज्ञाकारी पुत्र थे. ये बातें ध्यान से सुनीं और तब घर से चल खड़े हुए. इस विस्तृत संसार में उनके लिए धैर्य अपना मित्र, बुद्धि अपनी पथप्रदर्शक और आत्मावलम्बन ही अपना सहायक था. लेकिन अच्छे शकुन से चले थे, जाते ही जाते नमक विभाग के दारोगा पद पर प्रतिष्ठित हो गए. वेतन अच्छा और ऊपरी आय का तो ठिकाना ही न था. वृद्ध मुंशीजी को सुख-संवाद मिला तो फूले न समाए. महाजन कुछ नरम पड़े, कलवार की आशालता लहलहाई. पड़ोसियों के हृदय में शूल उठने लगे.

Answered by dgmellekettil
0

Answer:

नमक का दरोगा कहानी का प्रथम प्रकाशन 1917 में हुआ था।

Explanation:

  • नमक का दारोगा कहानी "सप्त सरोज" शीर्षक के नाम से सात कहानियों का एक संग्रह सर्व प्रथम हिन्दी साहित्य संसार के सामने सन् 1917 में आयी।
  • उन सात कहानियों में एक कहानी नमक का दारोगा भी था।
  • परन्तु हिन्दी साहित्य में प्रथम प्रकाशन पर मतभेद है।
  • दैनिक भास्कर के अनुसार मुंशी प्रेमचंद की 1925 में नमक का दारोगा लीखित कहानी आज भी प्रासंगिक है।
  • 1914 में आई मुंशी प्रेमचंद की कहानी ने अपने कथन की जटिलता और प्रस्तुति की सरलता से सबके ह्रदय में उनका मुकाम तय कर दिया।
  • इनका काल 1914 माना जाता है।
  • मॉक्सहैम की किताब द ग्रेट हेज ऑफ इंडिया ने जो सन् 2001 में प्रकाशित होकर धीरे धीरे चर्चा में आई।
  • प्रेमचंद की कहानी प्रकाशन के 32 साल पहले सन् 1882 में इंडिया सॉल्ट एक्ट के तहत पूरे देश में नमक की कीमत बराबर कर दी गई थी।
  • माॅक्सहैम की पुस्तक के अनुसार सन् 1788 से 1878 तक बाॅम्बे और मद्रास प्रेसीडेंसियों के अलावा सेन्ट्रल प्राॅविसेंज और दक्षिणी रियासतों में नमक पर टैक्स 1 रूपया 13 आना प्रति मन, जबकि बंगाल और असम से प्रारंभ करके उत्तरी पश्चिमी सीमा प्रांत तक सवा तीन रूपया प्रति मन हुआ करता था। 1727 चौकियों पर कुल 14188 अधिकारी कर्मचारी इस लाइन की निगरानी के लिए तैनात थे।
  • इस प्रकार हम नमक का दारोगा कहानी के प्रकाशन वर्ष 1900के लगभग मान सकते है।
Similar questions