Hindi, asked by santoshsahuhfg, 7 months ago

नमक का दरोगा कहानी का उद्देश्य ​

Answers

Answered by lalankumar99395
13

Answer:

लक्ष्य: ईमानदारी एवं कर्तव्यनिष्ठ समाज का निर्माण करना ! उद्देश्य: ... नामक का दरोगा कहानी समाज की यथार्थ स्थिति को उदघाटित करती है मुंशी वंशीधर एक ईमानदार और कर्तव्यपरायण व्यक्ति है ,जो समाज में ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा की मिशाल कायम करता है |पंडित अलोपीदीन दातागंज के सबसे अधिक अमीर और इज्जतदार व्यक्ति थे!.....

Answered by hemantsuts012
0

Answer:

नमक का दरोगा कहानी का उद्देश्य होता है कि ईमानदारी एवं कर्तव्यनिष्ठ समाज का निर्माण करना। नमक का दरोगा कहानी के पात्र कौन-कौन हैं? नमक का दरोगा कहानी में चार प्रमुख पात्र हैं – अलोपीदीन, मुंशी वंशीधर, बूढ़े मुंशी जी और नमक।

Find :

नमक का दरोगा कहानी का उद्देश्य

Given :

नमक का दरोगा कहानी का उद्देश्य

Explanation:

कहानी आजादी से पहले की है। नमक का नया विभाग बना। विभाग में ऊपरी कमाई बहुत ज्यादा थी इसलिए सभी व्यक्ति इस विभाग में काम करने को उत्सुक थे। उस दौर में फारसी का बोलबाला था और उच्च ज्ञान के बजाय केवल फारसी में प्रेम की कथाएँ और शृंगार रस के काव्य पढ़कर ही लोग उच्च पदों पर पहुँच जाते थे। मुंशी वंशीधर ने भी फारसी पढ़ी और रोजगार की खोज में निकल पड़े। उनके घर की आर्थिक दशा खराब थी। उनके पिता ने घर से निकलते समय उन्हें बहुत समझाया, जिसका सार यह था कि ऐसी नौकरी करना जिसमें ऊपरी कमाई हो और आदमी तथा अवसर देखकर घूस जरूर लेना।

वंशीधर पिता से आशीर्वाद लेकर नौकरी की तलाश में निकल जाते हैं। भाग्य से नमक विभाग के दारोग पद की नौकरी मिली जाती है जिसमें वेतन अच्छा था साथ ही ऊपरी कमाई भी ज्यादा थी। यह खबर जब पिता को पता चली तो वह बहुत खुश हुए। मुंशी वंशीधर ने छः महीने में अपनी कार्यकुशलता और अच्छे आचरण से सभी अधिकारियों को मोहित कर लिया।

जाड़े के समय एक रात वंशीधर अपने दफ़्तर में सो रहे थे। उनके दफ़्तर से एक मील पहले जमुना नदी थी जिसपर नावों का पुल बना हुआ था। गाड़ियों की आवाज़ और मल्लाहों की कोलाहल से उनकी नींद खुली। बंदूक जेब में रखा और घोड़े पर बैठकर पुल पर पहुँचे वहाँ गाड़ियों की एक लंबी कतार पुल पार कर रही थीं। उन्होंने पूछा किसकी गाड़ियाँ हैं तो पता चला, पंडित अलोपीदीन की हैं। मुंशी वंशीधर चौंक पड़े। पंडित अलोपीदीन इलाके के सबसे प्रतिष्ठित जमींदार थे। लाखों रुपयों का व्यापार था। वंशीधर ने जब जाँच किया तब पता चला कि गाड़ियों में नमक के ढेले के बोरे हैं। उन्होंने गाड़ियाँ रोक लीं। पंडितजी को यह बात पता चली तो वह अपने धन पर विश्वास किए वंशीधर के पास पहुँचे और उनसे गाड़ियों के रोकने के बारे में पूछा। पंडितजी ने वंशीधर को रिश्वत देकर गाड़ियों को छोड़ने को कहा परन्तु वंशीधर अपने कर्तव्य पर अडिग रहे और पंडितजी को गिरफ़्तार करने का हुक्म दे दिया। पंडितजी आश्चर्यचकित रह गए। पंडितजी ने रिश्वत को बढ़ाया भी परन्तु वंशीधर नहीं माने और पंडितजी को गिरफ्तार कर लिया गया।

अगले दिन यह खबर हर तरफ फैली गयी। पंडित अलोपीदीन के हाथों में हथकड़ियाँ डालकर अदालत में लाया गया। हृदय में ग्लानि और क्षोभ और लज्जा से उनकी गर्दन झुकी हुई थी। सभी लोग चकित थे कि पंडितजी कानून की पकड़ में कैसे आ गए। सारे वकील और गवाह पंडितजी के पक्ष में थे, वंशीधर के पास केवल सत्य का बल था। न्याय की अदालत में पक्षपात चल रहा था। मुकदमा तुरन्त समाप्त हो गया। पंडित अलोपीदीन को सबूत के अभाव में रिहा कर दिया गया। वंशीधर के उद्दण्डता और विचारहीनता के बर्ताव पर अदालत ने दुःख जताया जिसके कारण एक अच्छे व्यक्ति को कष्ट झेलना पड़ा। भविष्य में उसे अधिक होशियार रहने को कहा गया। पंडित अलोपीदीन मुस्कराते हुए बाहर निकले। रुपये बाँटे गए। वंशीधर को व्यंग्यबाणों को सहना पड़ा। एक सप्ताह के अंदर कर्तव्यनिष्ठा का दंड मिला और नौकरी से हटा दिया गया।।

पराजित हृदय, शोक और खेद से व्यथित अपने घर की ओर चल पड़े। घर पहुँचे तो पिताजी ने कड़वीं बातें सुनाई। वृद्धा माता को भी दुःख हुआ। पत्नी ने कई दिनों तक सीधे मुँह तक बात नहीं की। एक सप्ताह बीत गया। संध्या का समय था। वंशीधर के पिता राम-नाम की माला जप रहे थे। तभी वहाँ एक सजा हुआ एक रथ आकर रुका। पिता ने देखा पंडित अलोपीदीन हैं। झुककर उन्हें दंडवत किया और चापलूसी भरी बातें करने लगे, साथ ही अपने बेटे को कोसा भी। पंडितजी ने बताया कि उन्होंने कई रईसों और अधिकारियों को देखा और सबको अपने धनबल का गुलाम बनाया। ऐसा पहली बार हुआ जब कोई व्यक्ति ने अपनी कर्तव्यनिष्ठा द्वारा उन्हें हराया हो। वंशीधर ने जब पंडितजी को देखा तो स्वाभिमान सहित उनका सत्कार किया। उन्हें लगा की पंडितजी उन्हें लज्जित करने आए हैं। परन्तु पंडितजी की बातें सुनकर उनके मन का मैल मिट गया और पंडितजी की बातों को उनकी उदारता बताया। उन्होंने पंडितजी को कहा कि उनका जो हुक्म होगा वे करने को तैयार हैं। इस बात पर पंडितजी ने स्टाम्प लगा हुआ एक पत्र निकला और उसे प्रार्थना स्वीकार करने को बोला। वंशीधर ने जब कागज़ पढ़ा तो उसमें पंडितजी ने वंशीधर को अपनी सारी जायदाद का स्थायी मैनेजर नियुक्त किया था। कृतज्ञता से वंशीधर की आँखों में आँसू आ गए और उन्होंने कहा कि वे इस पद के योग्य नहीं हैं। इसपर पंडितजी ने मुस्कराते हुए कहा कि उन्हें अयोग्य व्यक्ति ही चाहिए। वंशीधर ने कहा कि उनमें इतनी बुद्धि नहीं की वह यह कार्य कर सकें। पंडितजी ने वंशीधर को कलम देते हुए कहा कि उन्हें विद्यवान नहीं चाहिए बल्कि धर्मनिष्ठ व्यक्ति चाहिए। वंशीधर ने काँपते हुए मैनेजरी की कागज़ पर दस्तखत कर दिए। पंडित अलोपीदीन ने वंशीधर को ख़ुशी से गले लगा लिया।

#SPJ3

Similar questions