नमक का दरोगा पाठ का प्रतिपाद्य लिखिए 252 96 शब्दों में
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➲ नमक का दरोगा कहानी का प्रतिपाद्य...
नमक का दरोगा’ कहानी की मूल संवेदना समाज और शासन-प्रशासन में फैले भ्रष्टाचार की प्रवृति को उजागर करना और उस पर व्यंग्यामत्मक कटाक्ष करना है।
‘नमक का दरोगा’ कहानी समाज की यथार्थ स्थिति को उजागर करती है, और बताती है कि भ्रष्टाचार की जड़ें समाज में गहरे तक अपनी पैठ बना चुकी हैं और हर वर्ग के लोग उसमें आकंठ डूब चुके हैं, लेकिन कुछ ईमानदार लोग अभी भी समाज में हैं।
मुंशी वंशीधर के रूप में जहाँ ईमानदार दरोगा है जो अपने कर्तव्य के प्रति अडिग है तो अलोपदीन के रूप में भ्रष्टाचार का प्रतिनिधि है जो अपने धनबल से सब कुछ खरीद लेने की सामर्थ्य रखता है।
ये कहानी हमें बताती है परिस्थितियां पहले की तरह ही है। परिस्थितियां जरा भी नहीं सुधरी हैं बल्कि और अधिक बिगड़ गई हैं। नमक का दरोगा के काल में धन के बल पर न्याय को अपने पक्ष में करवा लिया गया जाता था, लेकिन उस जमाने में वंशीधर जैसे ईमानदार दरोगा तो थे, जिन्होंने ईमानदारी दिखाई और अपने कर्तव्य के लिए अपने पद तक को त्याग कर दिया और अपने कर्तव्य से नहीं डिगे, जबकि आज के समय में तो चारों तरफ भ्रष्टाचार व्याप्त है। पुलिस, न्यायालय, शासन-प्रशासन और धन्ना सेठ सब जगह भ्रष्टाचार व्याप्त है। धन के बल पर कोई भी अनैतिक कार्य को संपन्न करा लिया जाता है, इसलिए स्थितियां पहले से सुधरी नहीं बल्कि बिगड़ी हैं। आजकल नैतिकता का निरंतर पतन होता जा रहा है। वंशीधर जैसे ईमानदार लोग नही रहे, अलोपदीन जैसे लोग भी नही रहे जिनमें थोडी बहुत नैतिकता बची थी, जो आखिर में उन्होंने अपनी गलती मान ली। आज के अलोपदीन तो अपनी गलती भी नही मानेंगे।
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