History, asked by sparida3346, 1 year ago

नमक यात्रा की चर्चा करते हुए स्पष्ट करें कि उपनिवेशवाद के खिलाफ प्रतिरोध का एक असरदार प्रतीक था महात्मा गांधी की दांडी यात्रा ब्रिटिश शासन के खिलाफ प्रतिरोध का असरदार प्रतीक्षा थी समस्याएं उपनिवेशवाद के विरोध नमक यात्रा किस प्रकार एक प्रभावी हथियार बनी स्पष्ट कीजिए

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Answered by bickychaudhary123456
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Answer:

दांडी मार्च जिसे नमक मार्च, दांडी सत्याग्रह के रूप में भी जाना जाता है जो इसवी सन् 1930 में महात्मा गांधी के द्वारा अंग्रेज सरकार के नमक के ऊपर कर लगाने के कानून के विरुद्ध किया गया सविनय कानून भंग कार्यक्रम था। ये ऐतिहासिक सत्याग्रह कार्यक्रम गाँधीजी समेत ७८ लोगों के द्वारा अहमदाबाद साबरमती आश्रम से समुद्रतटीय गाँव दांडी तक पैदल यात्रा करके १२ मार्च १९३० को नमक हाथ में लेकर नमक विरोधी कानून का भंग किया गया था।

Answered by shishir303
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नमक यात्रा की चर्चा करते हुए स्पष्ट करें कि उपनिवेशवाद के खिलाफ प्रतिरोध का एक असरदार प्रतीक था महात्मा गांधी की दांडी यात्रा ब्रिटिश शासन के खिलाफ प्रतिरोध का असरदार प्रतीक्षा थी समस्याएं उपनिवेशवाद के विरोध नमक यात्रा किस प्रकार एक प्रभावी हथियार बनी स्पष्ट कीजिए।

नमक आंदोलन महात्मा गाँधी द्वारा किया गया एक सफल आयोजन था। इस आंदोलन के माध्यम से उन्होंने ब्रिटिश उपनिवेशवाद के खिलाफ जोरदार प्रतिरोध प्रकट किया और उनका यह प्रतिरोध बेहद असरदार रहा।

नमक आंदोलन के अंतर्गत गाँधी जी ने दांडी मार्च किया था और इस आंदोलन के अंतर्गत उनकी कुछ सामान्य मांगे थे जो उस समय के कुछ व्यापारियों और किसानों तक अलग-अलग तबकों के हितों से जुड़ी हुई थीं।

गाँधी जी द्वारा किए गए इस आंदोलन में समाज के सभी वर्ग के लोग उनके साथ शामिल थे। ब्रिटिश सरकार ने नमक पर लगाकर और नमक उत्पादन को आम जनता के लिए प्रतिबंधित करते जैसे जरूरी पदार्थ पर अपना एकाधिकार स्थापित करने की कोशिश की थी। यह बात गाँधीजी से प्रत्येक भारतीय को नागवार गुजरी थी और गाँधीजी ने इसी कारण इस आंदोलन इस कानून का जोरदार प्रतिरोध किया।

सबसे पहले उन्होंने तत्कालीन वायसराय इरविन को खत लिखा, जिसमें उन्होंने अपनी 11 मांगों का उल्लेख किया। यह सभी मांगे नमक कानून से संबंधित और आम जनता के हित से जुड़ी हुई थीं।

जब सरकार ने उनकी सुनवाई नहीं की तो उन्होंने दाँडी मार्च आरंभ किया और अपने 78 सेवकों के साथ नमक यात्रा शुरू कर दी। उन्होंने साबरमती आश्रम से गुजरात के दाँड़ी नामक कस्बे तक पैदल मार्च किया था।

इस तरह दाँडी मार्च का यह आंदोलन तत्कालीन ब्रिटिश उपनिवेशवाद के प्रति प्रतिरोध का प्रतीक बनकर उभरा और इस आंदोलन को समर्थन मिला।

#SPJ3

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