Sociology, asked by SpellreacterRE36601, 10 months ago

नमक यात्रा की चर्चा करते हुए स्पष्ट करें कि यह उपनिवेशवाद के खिलाफ़ प्रतिरोध का एक असरदार प्रतीक था।

Answers

Answered by nikitasingh79
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उत्तर :  

नमक यात्रा उपनिवेशवाद के खिलाफ़ प्रतिरोध का एक असरदार प्रतीक था :  

नमक यात्रा का उद्देश्य वास्तव में सविनय अवज्ञा आंदोलन को आरंभ करना था । यह आंदोलन 1930 ईस्वी में चलाया गया । इस आंदोलन के द्वारा सरकारी कानूनों को भंग करके सरकार के विरोध रोष प्रकट करना था। आंदोलन का आरंभ गांधी जी ने अपने डांडी यात्रा से किया । यह यात्रा साबरमती में गांधीजी के आश्रम से 240 किलोमीटर दूर डांडी नामक तटीय कस्बे में समाप्त होनी थी।  12 मार्च 1930 ईस्वी को उन्होंने अपने 78 स्वयंसेवकों के साथ साबरमती आश्रम से अपनी यात्रा आरंभ की। मार्ग में अनेक लोग उनके साथ मिल गए। 24 दिन की कठिन यात्रा के बाद वह समुद्र तट पर पहुंचे और उन्होंने समुद्र के पानी से नमक बनाकर नमक कानून भंग किया । इसके बाद सारे देश में लोगों ने सरकारी कानूनों को भंग करना आरंभ कर दिया।

आशा है कि है उत्तर आपकी मदद करेगा।

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Answered by Anonymous
9

Explanation:

समाजशास्त्र एक नया अनुशासन है अपने शाब्दिक अर्थ में समाजशास्त्र का अर्थ है – समाज का विज्ञान। इसके लिए प्रयुक्त अंग्रेजी शब्द सोशियोलॉजी लेटिन भाषा के सोसस तथा ग्रीक भाषा के लोगस दो शब्दों से मिलकर बना है जिनका अर्थ क्रमशः समाज का विज्ञान है। इस प्रकार सोशियोलॉजी शब्द का अर्थ भी समाज का विज्ञान होता है। परंतु समाज के बारे में समाजशास्त्रियों के भिन्न – भिन्न मत है इसलिए समाजशास्त्र को भी उन्होंने भिन्न-भिन्न रूपों में परिभाषित किया है।

अति प्राचीन काल से समाज शब्द का प्रयोग मनुष्य के समूह विशेष के लिए होता आ रहा है। जैसे भारतीय समाज , ब्राह्मण समाज , वैश्य समाज , जैन समाज , शिक्षित समाज , धनी समाज , आदि। समाज के इस व्यवहारिक पक्ष का अध्यन सभ्यता के लिए विकास के साथ-साथ प्रारंभ हो गया था। हमारे यहां के आदि ग्रंथ वेदों में मनुष्य के सामाजिक जीवन पर पर्याप्त प्रकाश डाला गया है।

इनमें पति के पत्नी के प्रति पत्नी के पति के प्रति , माता – पिता के पुत्र के प्रति , पुत्र के माता – पिता के प्रति , गुरु के शिष्य के प्रति , शिष्य के गुरु के प्रति , समाज में एक व्यक्ति के दूसरे व्यक्ति के प्रति , राजा का प्रजा के प्रति और प्रजा का राजा के प्रति कर्तव्यों की व्याख्या की गई है।

मनु द्वारा विरचित मनूस्मृति में कर्म आधारित वर्ण व्यवस्था और उसके महत्व पर विस्तार से प्रकाश डाला गया है और व्यक्ति तथा व्यक्ति , व्यक्ति तथा समाज और व्यक्ति तथा राज्य सभी के एक दूसरे के प्रति कर्तव्यों को निश्चित किया गया है। भारतीय समाज को व्यवस्थित करने में इसका बड़ा योगदान रहा है इसे भारतीय समाजशास्त्र का आदि ग्रंथ माना जा सकता है।

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