Physics, asked by adityasinghbaghel, 4 months ago

नमस्कार, सभी को, मुझे इस समस्या के साथ मदद की ज़रूरत है और यह एक कविता है जिसमें आपको इसे राम लक्ष्मण परशुराम वार्तालाप {कक्षा 10 के अध्याय} से संबंधित करना है कि आज की दुनिया में यह कितना भरोसेमंद है। धन्यवाद, इसलिए कृपया केवल एक उचित उत्तर लिखें, न कि बकवास।
यह कविता है-
यह बात है बहुत पुरानी
जब तुम्हारे माँ बाप थे छोटे छोटे
रहते थे एक अंकल जी थोड़े मोटे मोटे
तीखी थी ज़ुबान, क्रोधी था इंसान
हर मसले में टांग अड़ाना था उनका एकमात्र काम
तभी घटि एक दुर्घटना, अंकल जी ने किया ऐसा काम
अनेक थे जिसके दुष्परिणाम
सरपंच और उनका बेटा आया
हाथ में ताने बंदूक़,
देखकर उनकी फ़ितरत, अच्छे अच्छे हो गए चुप
बोले उठे अहंकार में “अब ना करना ऐसा कर्म
छन्नी कर दूँगा एक बार में फिर दिखाना अपना बल”
अंकल जी को आया ग़ुस्सा, वह भी दहाड़ उठे
“चाय समझ के रखा है जो तू छन्नी करेगा
अरे मैंने कुछ किया तो ना तू ना तेरा लड़का बचेगा”
सुनकर ऐसी कठोर धमकी थाम ली बंदूक़
परंतु अंकल जी रहे खड़े मानो कोई अछूत
बोले सरपंच जी फिर टेढ़ी सी मुस्कान लिए
“मंदबुद्धि है क्या तू? क्या तुझे समझ ना आता
दस पहलवान खड़े कर दूँगा फिर उमर का लाज ना भाता”
अंकल जी भी बोले, कौतुकता के साथ
“कर क्या लेंगे जाने हम भी बूढ़े तो है आप
जो खुद नहीं कुछ कर पाते, हर वक्त रहते सुरक्षा के साथ”
सुनकर कठोर वचन खौल उठा उनका खून
“सुन बुड्ढे देख ले, दुबारा ना मैं बोलूँगा
माँग ले माफ़ी ख़त्म करदे, हैं नहीं तू गूँगा”
अंकल जी भी अड़े रहे, श्रेष्ठ खुद को दिखाने पर
डरते ना थे वह भी ज़रा सी डाट खाने पर
उतर गए फिर वह भी अपनी ज़ुबानी पर
बोल दिये ऐसे अपशब्द सुनकर रूह काँप गये
धर धर चल गयी गोली सिर्फ़ एक निशाने पर
लेकिन अंत में हुआ क्या? क्या अंकल जी हार हुए?
अरे सुनो वालों! होता क्या? अंकल जी परलोक सुधार गये।

So Plzzzzzzzz Help plzzzzzzzzz

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Answered by manasimaindad
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Answer:

नमस्कार, सभी को, मुझे इस समस्या के साथ मदद की ज़रूरत है और यह एक कविता है जिसमें आपको इसे राम लक्ष्मण परशुराम वार्तालाप {कक्षा 10 के अध्याय} से संबंधित करना है कि आज की दुनिया में यह कितना भरोसेमंद है। धन्यवाद, इसलिए कृपया केवल एक उचित उत्तर लिखें, न कि बकवास।

यह कविता है-

यह बात है बहुत पुरानी

जब तुम्हारे माँ बाप थे छोटे छोटे

रहते थे एक अंकल जी थोड़े मोटे मोटे

तीखी थी ज़ुबान, क्रोधी था इंसान

हर मसले में टांग अड़ाना था उनका एकमात्र काम

तभी घटि एक दुर्घटना, अंकल जी ने किया ऐसा काम

अनेक थे जिसके दुष्परिणाम

सरपंच और उनका बेटा आया

हाथ में ताने बंदूक़,

देखकर उनकी फ़ितरत, अच्छे अच्छे हो गए चुप

बोले उठे अहंकार में “अब ना करना ऐसा कर्म

छन्नी कर दूँगा एक बार में फिर दिखाना अपना बल”

अंकल जी को आया ग़ुस्सा, वह भी दहाड़ उठे

“चाय समझ के रखा है जो तू छन्नी करेगा

अरे मैंने कुछ किया तो ना तू ना तेरा लड़का बचेगा”

सुनकर ऐसी कठोर धमकी थाम ली बंदूक़

परंतु अंकल जी रहे खड़े मानो कोई अछूत

बोले सरपंच जी फिर टेढ़ी सी मुस्कान लिए

“मंदबुद्धि है क्या तू? क्या तुझे समझ ना आता

दस पहलवान खड़े कर दूँगा फिर उमर का लाज ना भाता”

अंकल जी भी बोले, कौतुकता के साथ

“कर क्या लेंगे जाने हम भी बूढ़े तो है आप

जो खुद नहीं कुछ कर पाते, हर वक्त रहते सुरक्षा के साथ”

सुनकर कठोर वचन खौल उठा उनका खून

“सुन बुड्ढे देख ले, दुबारा ना मैं बोलूँगा

माँग ले माफ़ी ख़त्म करदे, हैं नहीं तू गूँगा”

अंकल जी भी अड़े रहे, श्रेष्ठ खुद को दिखाने पर

डरते ना थे वह भी ज़रा सी डाट खाने पर

उतर गए फिर वह भी अपनी ज़ुबानी पर

बोल दिये ऐसे अपशब्द सुनकर रूह काँप गये

धर धर चल गयी गोली सिर्फ़ एक निशाने पर

लेकिन अंत में हुआ क्या? क्या अंकल जी हार हुए?

अरे सुनो वालों! होता क्या? अंकल जी परलोक सुधार गये।

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