नमस्ते, शुभ शंध्या :)
क्या हमें हमारी राष्ट्रीय भाषा बदलनी चाहिए, इसमे हमे नही के रूप में पक्ष लेना है व हिंदी का पक्ष लेना है।
❑ विषय के विपक्ष में अपने विचार रखिए ।
❑ तथा उत्तर 100 (१००) शब्दों का होना चाहिए ।
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Explanation:
हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा है हमें हिंदी के बारे में कोई भी ऐसा ऐसा शब्द या फिर ऐसा कुछ नहीं करना चाहिए जिससे कि हमारी हिंदी पता हमारी राष्ट्रभाषा को ठेस पहुंचे हमारी राष्ट्रभाषा एक ऐसी भाषा है जिसका उच्चारण बहुत पहले हमारे पूर्वजों ने किया था इस वजह से हमारे को अपने हिंदी भाषा के विपक्ष में कभी कुछ नहीं करना चाहिए क्योंकि हमारी हिंदी मात्र हिंदी भाषा हमारी मातृभाषा है जो कि हमारा हम अपनी मम्मी से मां से जीते हैं इसी वजह से हमें इनके विपक्ष में रहना नहीं चाहिए क्योंकि हिंदी हमारी मातृभाषा है जय हिंद
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हर साल देश में 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाया जाता है। देश का आम नागरिक जानता है कि हिंदी दिवस क्यों मनाया जाता है लेकिन शायद वो यह नहीं जानता कि आज तक हिंदी को हम हमारी राष्ट्रभाषा के तौर पर स्थापित क्यों नहीं कर पाए। हिंदी आज भी हमारी राष्ट्रभाषा नहीं है बल्कि राजभाषा है।
भारत एक ऐसा देश है जो अपनी विभिन्नताओं के लिए जाना जाता है, यहां हर राज्य की अपनी राजनैतिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक पहचान है लेकिन उसके बाद भी देश में की कोई एक राष्ट्रभाषा नहीं है। हिंदी को राजभाषा का दर्जा 14 सितंबर 1949 को मिला था लेकिन राष्ट्रभाषा को लेकर लंबी बहसें चली और नतीजा कुछ नहीं निकला।
देश में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा हिंदी ही है और यही वजह है कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने हिंदी को जनमानस की भाषा कहा था। महात्मा गांधी ने साल 1918 में हिंदी साहित्य सम्मेलन में हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने की बात कही थी। महात्मा गांधी के अलावा जवाहरलाल नेहरू भी थे जिन्होंने हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने की वकालत की थी।
1946-1949 तक संविधान को बनाने की तैयारियां शुरू कर दी गई। संविधान में हर पहलू को लंबी बहस से होकर गुजरना पड़ा ताकि समाज के किसी भी तबके को ये ना लगे कि संविधान में उसकी बात नहीं कही गई है। लेकिन सबसे ज्यादा विवादित मुद्दा रहा कि संविधान को किस भाषा में लिखा जाना है, किस भाषा को राष्ट्रीय भाषा का दर्जा देना है, इसे लेकर सभा में एक मत पर आना थोड़ा मुश्किल लग रहा था।
महात्मा गांधी और जवाहरलाल नेहरू ने हिंदुस्तानी (हिंदी और ऊर्दू का मिश्रण) भाषा का समर्थन किया, इनके साथ कई और सदस्य भी शामिल हुए लेकिन विभाजन की वजह से लोगों के मन में काफी गुस्सा था, इसलिए हिंदुस्तानी भाषा की जगह शुद्ध हिंदी के पक्षधर का पलड़ा ज्यादा भारी होने लगा।
इधर दक्षिण भारत के सदस्य हिंदुस्तानी और हिंदी दोनों भाषा के खिलाफ थे, जब कभी भी इन दोनों भाषाओं को लेकर चर्चा होती तो सबसे पहले इन सदस्यों की ओर से अनुवाद की मांग की जाती।
आशा है कि यह आपके लिए मददगार होगा......❤️❤️
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