नन्हा संगीतकार मार्मिकता कहानी पर प्रकाश डालिए
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‘नन्हा संगीतकार’ कहानी हेनरिक सेकेंवीच के द्वारा लिखी गई एक मर्मस्पर्शी कहानी है जिसमें मानवीय संवेदना को प्रकट किया गया है | यह कहानी जेन नामक एक बालक के बारे में है जो अभागा है | गरीबी और अभाव ने उसे समय में ही सयाना बना दिया है | वह 8 साल का होते होते अपने पैरों पर ही खड़ा हो गया और भेड़ बकरी चलाने जाता और अपने मां के लिए खाद्य सामग्री का संग्रह कर लेता था | सभ्य समाज की आंखों के सामने दरिद्रता का नंगा नाच होता पर जेन के प्रति किसी की सहानुभूति नहीं थी | लेकिन ईश्वर बहुत बड़ा है, जब वह सब कुछ वंचित कर देता है तो कोई ना कोई हुनर अवश्य दे देता है | जेन संगीत का बड़ा प्रेमी था, उसके अंदर संगीत के प्रति जुनून पैदा था | जिस प्रकार सपेरा बीन बजाकर सांपों को मुगध कर देता है उसी प्रकार संगीत सुनते ही वह दीवानगी की हद को पार कर जाता था | वह एक निहायत गरीब मां का बेटा था, उसकी प्रबल इच्छा होती वायलिन का संगीत सुनने की | उसने वायलिन के जैसी स्वयं एक सारंगी बना ली थी | एक दिन उसके पास वाले बंगले के वर्दीधारी सिपाही के यहां वायलिन टंगा देख लिया | उसे देखने के लिए स्पर्श करने के लिए वह सिपाही के घर में रात में घुस गया | फिर वह सिपाही द्वारा पकड़ लिया गया | जैन की पिटाई वर्दीधारी सिपाही ने बेरहमी से की और उसे जरा भी दया ना आई | बच्चा रोता रहा गिड़ - गिड़ा ता रहा पर उसे सुनने वाला कोई नहीं था | जब उसे न्यायधीश में ले जाया गया उसे समझ ही नहीं आया कि उसके साथ क्या हो रहा है और उसके प्रति कोई नरमी नहीं दिखाई गई और उसे बेत से पिटाई करने की सजा दी | यह एक सभ्य समाज का नंगा, बर्बरतापूर्ण तांडव था | क्या उस नन्हे से बच्चे के लिए यह सजा ठीक थी ? क्या विवेकशील न्यायाधीश को जरा भी न्याय करते समय दया नहीं आई ? पद एवं प्रतिष्ठा के चकाचौंध में व्यक्ति तनक हो गया है कि उसमें जीवन मूल्य एवं मानवीय संवेदनाओं के लिए कोई जगह नहीं | ईश्वर ही ऐसे समाज का मालिक है |