नना साहेबकी पुत्री देवी मैना को भस्म कर दिया गया
Answers
Answer:
1857 की क्राति में फर्रुखनगर के नवाब अहमद अली खा भी अपनी सेना को साथ लेकर अंग्रेजों को देश से खदेड़ने के लिए मैदान में उतर गए थे। नवाब को 1857 के संग्राम के दौरान लड़ाई में शामिल होने के लिए दिल्ली के बादशाह का पत्र मिला। उस पत्र के बाद नवाब अहमद अली खा ने अंग्रेजों से संबध तोड़कर आजादी की जंग में कूद पड़े। नवाब ने पत्र के जवाब में कहा कि बादशाह का हुक्म मानने के बाद इस गुलाम ने बंदूकों की सप्लाई पूरी कर दी है। साथ ही सभी लुहारों को हुक्म दे दिया गया है कि वे अपनी बनाई हुई बंदूकें शाही फौजों के अलावा किसी को भी नही देंगे। वहीं दुशमनों से मुकाबला के लिए फर्रुखनगर नवाब ने सभी तैयरिया पूरी कर ली थीं। स्वतंत्रता संग्राम के करीब छह माह बाद अंग्रेजी फौज मार्च करती हुई फर्रुखनगर पहुच गई। उन्होंने फर्रुखनगर को चारों ओर से घेर लिया। दिल्ली व झज्जरी दरवाजों पर तोपें लगा दी गई, फिर भी दोनों विशालकाय दरवाजों को अंग्रेजी सैनिक हिला भी नहीं सके। जिन्हें तोड़ने के लिए हाथियों का सहारा लिया गया। दरवाजों पर बड़े लोहे के कुस्से लगे होने से वह भी सफल नहीं हो सके। तीन दिन तक चले घमासान युद्ध में दोनों ओर के सैनिकों की लाशों के ढेर लग गए।
आखिर फर्रुखनगर की सेना हार गई ओर अंग्रेजी सैनिकों ने 20 मई 1857 को नवाब अहमद अली खा को बंदी बना लिया। अपनी जीत से खुश अंग्रेज नवाब को जंजीरों में जकड़ कर बाजार की मुख्य सड़कों से घुमाते हुए दिल्ली ले गए। वहा के लाल किले की चारदीवारी में बंदी रखकर उनके उन पर देशद्रोह का मुकदमा चलाया गया। नवाब को हथकड़ी पहनाकर अदालत में पेश किया जाता था। अंग्रेजों के बार-बार समझाने व यातनाएं देने पर भी वह उनके सामने झुके नहीं। 11 दिन चले गए मुकदमे के बाद उन्हे फासी का हुक्म सुनाया गया। साथ ही यह आदेश भी जारी किए गए कि उसकी सारी संपत्ति को जब्त कर लिया जाए। उसके परिवार की कुल 110 रुपये प्रति माह पेंशन तय की गई थी। उसमें उनकी बेगम के स्वीकृत 20 रुपये भी शमिल थे। अदालत के फैसला सुनाने के बाद नवाब को दिल्ली के फव्वारा चौक पर फांसी दे दी गई थी। उस संघर्ष के गवाह फर्रुखनगर का दिल्ली दरवाजा व हाथियों की टक्करों से तोडे़ गए विशाल दरवाजे आज भी मौजूद है। उन क्रातिकारियों की याद शीश महल के सामने शहीदी स्मारक बना
Explanation:
शीश महल