ननबंध: कोरोना महामारी का भारतीय व्यवस्था पर हुआ प्रभाव।
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एक प्रकार से उस रास्ते पर चलने के लिए हमारी दिशा-निर्देश कर दी है." और फिर वो ड्रामाई अंदाज़ में पूछते हैं, "और वो रास्ता क्या है, वो दिशा क्या है?" इसका जवाब वो तुरंत ख़ुद ही देते हैं, "इस कोरोना संकट से हमने पाया है कि हमें आत्मनिर्भर बनना ही पड़ेगा."
आत्मनिर्भरता मामूली नहीं बल्कि बहुत ही अर्थपूर्ण शब्द है. उन्होंने आगे कहा, "भारत में ये विचार सदियों से रहा है लेकिन आज बदलती परिस्थितियों ने हमें फिर से याद दिलाया है कि आत्मनिर्भर बनो, आत्मनिर्भर बनो, आत्मनिर्भर बनो."
आत्मनिर्भरता पर जिस क़दर उनका ज़ोर था उससे उनके इरादे का अंदाज़ा खूब हो जाता है. इससे कुछ दिन पहले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि कोरोना संकट के बाद वाली व्यवस्था कैसी हो इस पर विचार होना चाहिए.
उन्होंने इस पर अपनी राय दी, और ज़ोर देकर कहा कि भारत के लिए "शासन, प्रशासन और समाज" के सहयोग से आत्मनिर्भरता और स्वदेशी ज़रूरी है.
स्वदेशी के विचार को प्रोत्साहित करते हुए भागवत ने आगे कहा, "हमें इस बात पर निर्भर नहीं होना चाहिए कि हमारे पास विदेश से क्या आता है, और यदि हम ऐसा करते हैं तो हमें अपनी शर्तों पर करना चाहिए. हम अपने माल का उत्पादन ख़ुद करें और उनका उपयोग ख़ुद करें."
उन्होंने ये भी कहा, "स्वदेशी के विचार को व्यक्तिगत स्तर से लेकर परिवार तक आंतरिक रूप से अपनाना होगा."
महामारी के शुरू के दिनों में वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने देश में 5 खरब डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने के लक्ष्य को साकार करने के लिए घरेलू उद्योग को अधिक आत्मनिर्भर बनाने और राष्ट्रवाद की भावना को आत्मसात करने का आह्वान किया था. गोयल ने कहा था, "उद्योग को राष्ट्रवाद और आत्मनिर्भरता बढ़ाने की भावना के साथ काम करना चाहिए."
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कोरोना की वजह से पूरी दुनिया में हाहाकार मचा हुआ है। स्वास्थ्य के साथ साथ इस समय पूरी दुनिया एक बड़े आर्थिक संकट की तरफ भी बढ़ रही है जिसकी वजह से वैश्विक मंदी स्पष्ट रूप से दिख रही है। पिछले एक महीनें में ही दुनिया भर के शेयर बाजार धराशायी हो चुके हैं।
संयुक्त राष्ट्र ने चेतावनी दी है कि दुनिया भर में कोरोना की महामारी 2.5 करोड़ लोगों का रोजगार छीन लेगी। यह पहले से जारी वैश्विक आर्थिक संकट में कोढ़ में खाज की तरह साबित होगी। इससे वैश्विक अर्थव्यवस्था को 3.6 लाख करोड़ डॉलर का झटका लगेगा। संयुक्त राष्ट्र ने कहा कि इससे आर्थिक और श्रम संकट गहराएगा।
कोरोना वायरस का दुनिया पर प्रभाव
अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन ने भी एक अध्ययन में कहा है कि वैश्विक स्तर पर एक समन्वित नीति बनती है तो नुकसान को काफी हद तक कम किया जा सकता है। चीन में जनवरी-फरवरी माह में 50 लाख लोगों ने कोरोना के आर्थिक दुष्प्रभाव के चलते नौकरी गंवा दी। वुहान, शंघाई समेत तमाम शहरों में कामबंदी और व्यापारिक गतिविधियां ठप हो जाने से यह नुकसान हुआ। चीन में बेरोजगारी दर भी जनवरी में 5.3 फीसदी के मुकाबले फरवरी में 6.2 फीसदी हो गई है। इसका असर चीन की विकास दर पर भी दिख सकता है।
दुनियाभर में तेजी के साथ फैल रहे घातक कोरोना वायरस ने वैश्विक अर्थव्यस्था को बुरी तरह से प्रभावित किया है। इसके चलते वस्तुओं एवं सेवाओं की मांग और आपूर्ति दोनों पर असर पड़ा है। तेल की बढ़ी आपूर्ति और मांग में कमी के बीच विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की तरफ से कोरोना पर 24 जनवरी को हुई पहली बैठक के बाद से अंतरराष्ट्रीय कच्चे तेल की कीमतों में 50 फीसदी से ज्यादा की गिरावट आ चुकी है।
कोरोना का दुनिया के व्यवसायों पर असर साफतौर पर देखा जा सकता है, जहां कंपनियां अपने ऑपरेशंस कम कर रही हैं, कर्मचारियों से यह कहा जा रहा है कि वे घरों से काम करें और उत्पादन के लक्ष्य को कम किया जा रहा है। ऑर्गेनाइजेशन फॉर इकॉनोमिक को-ऑपरेशन एंड डेवलपमेंट (ओईसीडी) ने अंतरिम आर्थिक समीक्षा रिपोर्ट में मार्च के पहले हफ्ते में कोविड के चलते वैश्विक जीडीपी में 50 बेसिस प्वाइंट (2019 में 2.9 प्रतिशत से 2.4 प्रतिशत) का अनुमान लगाया है। गौरतलब है कि 100 बेसिस प्वाइंट एक प्रतिशत प्वाइंट के बराबर है।