nar ho na nirash karo Mann ko hindi poem meaning
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"नर हों , न निराश करो मन को" यह कविता मैथलीशरण गुप्त जी की है
नर का अर्थ मनुष्य होता है, मनुष्य का मन चंचल है, इसलिए इसको वश में करना उतना ही कठिन है जितना वायु को रोकना, किन्तु इसे निरंतर अभ्यास से वश में किया जा सकता है | मन क्या है ? यह अन्तः करण का व्यवहार है जिससे हम सब काम करते है , सोचते-समझते हैं | यहीं वह शक्ति है जो हमे प्रेरित करती हैं लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए | मनुष्य सृष्टि की सर्वश्रेष्ठ रचना हैं उसके पास मन है तो विवेक है | जब मनुष्य अपने मन को एकाग्रचित करके कार्य करता है तभी सफलता की सीढ़ियों चढ़ता है | मन की शक्ति असीमित है | मन से शरीर को बल मिलता है |
अपने को संभालो ताकि अच्छा समय यूँ ही न निकल जाये। अच्छा कार्य कभी निष्फल नहीं होता। जग को एक सपना न समझो, अपना रास्ता स्वयं निकालो। भगवान सहायता करने के लिए हैं।
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Q.1.- Summary of nar ho na nirash Karo man ko
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Q.2.- Nar ho na nirash karo ka prasang sandarb
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