Nar se badhkar nari anuched
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नर से बढ़कर नारी
नारी, स्त्री, महिला हमारे इस समाज का आधार है। समाज और परिवार के निर्माण में नारी का स्थान सर्वश्रेष्ठ है। प्राचीन काल से आज तक नारी ने इस समाज की इस राष्ट्र की तथा अपने परिवार की देखभाल की है। मनुस्मृति में कहां गया है -
यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवताः
मतलब जिस घर में नारी का सम्मान होता है, वहां देवता वास करते हैं, मतलब उस घर में हमेशा सुख-समृद्धि होती है।
वैसे देखा जाएं तो नर और नारी की कोई तुलना नहीं की जा सकती। क्योंकि दोनों ही अपने आप में महान है। वह एक सिक्के के दो पहलू जैसे ही है। यह दोनों एक गाड़ी के दो पहिये के समान है। जिस प्रकार दोनों पहिये के बिना गाड़ी सुचारु रूप से नहीं चल पाती है उसी प्रकार नारी के बिना नर का कोई मतलब नहीं है, उसका कोई अस्तित्व नहीं है।
समाज एवं परिवार के निर्माण में नारी का स्थान सर्वश्रेष्ठ है। नौ माह तक बच्चे को अपनी कोख में रखकर उसका निर्माण करती है । मां बनकर नारी ही बच्चे को संस्कारवान बनाती है।
शिक्षा ने नारी की परिभाषा बदल दी है। वह अब किसी तरह से अबला नहीं है। नारियां अपने कर्तव्यों का निर्वहन करना बखूबी जान गयीं है , आकाश से पाताल तक हर क्षेत्र में नारियां पुरुषों के साथ कंधे से कन्धा मिलकर चल रहीं है। ऐसा कोई भी क्षेत्र नहीं रह गया है जहाँ नारियों ने अपनी उपस्थिति दर्ज न कराई हों। नौकरी के साथ-साथ वह अपने परिवार को भी बखूबी संभाल रही है। पुरुष प्रधान समाज ने नारी को एक शो पीस बनाकर घर में सजाया था। लेकिन आज की नारी शिक्षित होकर, जिम्मेदार बनी है। वह किसी पर आश्रित नहीं है। वह नर से बढ़कर है।Answer:
नारी दोहरी मात्राओं का भार वहन करती है ( आ और ई ) । इससे उसका महत्त्व स्वतः ही बढ़ जाता है । प्राचीन भारतीय संस्कृति में नारी का गौरवशाली स्थान था । ऐसा माना जाता था कि जहाँ नारी की पूजा होती है , वहाँ देवता निवास करते हैं । नारी को जननी होने या मातृ - शक्ति होने के कारण अत्यधिक महत्त्व दिया जाता था । वह गृहस्वामिनी थी । नर और नारी समाजरूपी रथ के दो पहिए हैं , लेकिन अपने त्याग , तपस्या , कोमलता , शालीनता , ममता आदि गुणों के कारण नारी पुरुष से कहीं बढ़कर है । नारी दया - ममता की प्रतीक है । वह प्रेम की मूर्ति है । नारी के एक नहीं अनेक रूप हैं । वह जननी है , बहन है , प्रेमिका और पत्नी है । अपने सभी रूपों में वह अपने कर्तव्य का पालन करती है । घर के समस्त उत्तरदायित्वों का पालन करते हुए कभी थकती नहीं । प्राचीन काल में नारी को पुरुष के समान ही उच्च स्थान प्राप्त था । वह पुरुष की अर्धांगिनी थी । हाँ , मध्यकाल में अवश्य नारी का स्थान गिर गया । वह विलास की वस्तु मात्र समझी जाने लगी , परन्तु आधुनिक काल में नारी ने पुनः सिद्ध कर दिखाया कि वह किसी भी क्षेत्र में पुरुष से पीछे नहीं ।