नर हो, न निराश करा मन का।
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जल-तुल्य निरन्तर शुद्ध रहो,
। प्रबलानल ज्यों अनिरुद्ध रहो।।
पवनोपम संकृति-शील रहो,
अवनी-तल-वत् धृति-शील रहो।
कर तो नभ-सा शुचि जीवन को,
नर हो, न निराश करो मन को।
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Soo what I do in this poem..........
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Pani...ke trhh shudh raho
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