"नर हो न निराश करो मन को" paragraph in 80 - 100 words (please answer fast)
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भूमिका : सभी लोगों को पता होता है कि नर शब्द का अर्थ पुरुष होता है। नर और पुरुष दोनों एक शब्द के व्यंजन होते हैं। नर का अर्थ पुरुष होता है लेकिन हम गंभीरता से इस शब्द के बारे में सोचें तो हमें यह पता चलता है कि नर शब्द के व्यंजक प्रयोग से पुरुष की विशिष्टता बताई जाती है। पुरुष एक मननशील प्राणी होता है।
मनुष्य अपने मानसिक बल के आधार पर बहुत से असंभव कामों को भी संभव कर सकता है। जब पुरुष के पुरुषत्व भाव को व्यक्त करना होता है तब नर शब्द को प्रयोग में लाया जाता है। मनुष्य जो भी कामों और उद्योग में उन्नति करने की कोशिश करता है वो सब उसके मन के बल पर ही निर्भर करता है। अगर मनुष्य का मन क्रियाशील नहीं रहता है तो उसका मन मर जाता है।
‘नर हो, न निराश करो मन’ को पंक्ति में उसके अर्थ और भाव-विस्तार का विवेचन करते हैं तो मानव जीवन के जो पक्ष होते हैं वे अपने आप ही उजागर हो जाते हैं। जब किसी व्यक्ति का मन मर जाता है तो उसके लिए सभी आकर्षण तुच्छ और अर्थरहित हो जाते हैं। जब तक मनुष्य का मन मरता नहीं है तब तक वह कुछ भी कर सकता है लेकिन जब व्यक्ति का मन मर जाता है तो व्यक्ति भी हार जाता है।
छोटी सी असफलता से निराश न होना :
जब हम ‘नर हो, न निराश करों मन को’ पंक्ति को सुनते हैं तो ऐसा लगता है जैसे कोई हमें चुनौती देते हुए कुछ कह रहा हो कि तुम सांसारिक जीवन की छोटी कठिनाईयों को से घबरा जाते हो क्योंकि तुमने अभी तक जीवन की बाधाओं का सामना करना नहीं सीखा है। जब वे ऐसे बोलने लगें जैसे जमीन फट जाएगी या आसमान फट जायेगा।
तुम पुरुष हो और वीरता तुम्हारे पास है। एक बार की असफलता से इस तरह से निराश नहीं होना चाहिए हमें परिस्थितियों का डंटकर सामना करना चाहिए। हमें एक चिड़िया से भी सबक लेना चाहिए क्योंकि वह कभी भी हार नहीं मानती है वह अपने घोंसले को बनाने के लिए बहुत मेहनत करती है।
वह तब तक नहीं हारती जब तक अपने घोंसले को पूरा नहीं कर देती। दूसरी तरफ मनुष्य होता है जो छोटी-छोटी बात पर निराश होकर बैठ जाता है उसे कभी भी निराश नहीं होना चाहिए। उसे अपने लक्ष्य तक पहुंचने तक परिश्रम करते रहना चाहिए।