Hindi, asked by shivanijadhav1880, 5 days ago

Nari dharm par nibandh 800 sabd hindi

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Answered by swatiram
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भारतीय संस्कृति में तो स्त्री ही सृष्टि की समग्र अधिष्ठात्री है। पूरी सृष्टि ही स्त्री है, क्योंकि इस सृष्टि में बुद्दि, निद्रा, सुधा, छाया, शक्ति, तृष्णा, जाति, लज्जा, शांति, श्रद्धा, चेतना और लक्ष्मी आदि अनेक रूपों में स्त्री ही व्याप्त है। इसी पूर्णता से स्त्रियां भाव-प्रधान होती हैं।उनके शरीर में केवल हृदय ही होता है, बुद्दि में भी हृदय ही प्रभावी रहता है, तभी तो गर्भधारण से पालन पोषण तक असीम कष्ट में भी उन्हें आनंद की अनुभूति होती है। कोई भी हिसाबी चतुर यह कार्य एक पल भी नहीं कर सकता।भावप्रधान नारी चित्त ही पति, पुत्र और परिजनों द्वारा वृद्दावस्था में भी अनेकविधि‍ कष्ट दिए जाने के बावजूद उनके प्रति शुभशंसा रखती है, उनका बुरा नहीं करती। जबकि पुरुष तो ऐसा कभी कर ही नहीं सकता, क्योंकि नर विवेक प्रधान है, हिसाबी है, विवेक हिसाब करता है, घाटा-लाभ जोड़ता है और हृदय हिसाब नहीं करता। जयशंकर प्रसाद ने कामायनी में लिखा है -

यह आज समझ मैं पाई हूं कि

दुर्बलता में नारी हूं ।

अवयन की सुंदर कोमलता

लेकर में सबसे हारी हूं ।नारी जीवन का चित्र यही

क्या विकल रंग भर देती है।

स्फुट रेखा की सीमा में

आकार कला को देती है।।

परिवार व्यवस्था हमारी सामाजिक व्यवस्था का आधार स्तंभ है। इसके दो स्तंभ हैं - स्त्री और पुरुष। परिवार को सुचारू रूप देने में दोनों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। समय के साथ मानवीय विचारों में बदलाव आया है। कई पुरानी परंपराओं, रूढ़िवादिता एवं अज्ञान का समापन हुआ है। महिलाएं अब घर से बाहर आने लगी हैं, कदम से कदम मिलाकर सभी क्षेत्रों में अपनी धमाकेदार उपस्थिति दे रही हैं, अपनी इच्छा शक्ति के कारण सभी क्षेत्रों में अपना परचम लहरा रही हैं।

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