Nari ke bade se bade tyag ko sansar Ne kis roop mein sokar kiya
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निबन्ध के आधार पर स्त्री यदि अपनी शक्ति को पहचान ले तो उन्हें किसी शस्त्र या बल की आवश्यकता नहीं है। पृथ्वी के एक छोर से दसरे छोर तक उनकी गति अबाध है। उनके जीवन में साहस की शक्ति की, आत्मसम्मान की,गरिमा की सुनहरी कल्पना है, परन्तु ऐसी सजीव नारियाँ उंगलियों पर गिनने योग्य हैं।
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