Nari Shiksha ke Adhikar par essay
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आज के प्रगतिशील समय में भी यह देखने में आया है कि समाज के कुछ वर्गों द्वारा अभी भी नारी शिक्षा को नजर अंदाज किया जाता है । जबकि किसी को भी शिक्षा से वंचित रखना एक अपराध के समान है । विश्व प्रसिद्ध फ्रांसीसी शासक नेपोलियन बोनापार्ट जैसे योद्धा का भी कहना था कि यदि माँ अशिक्षित है तो राष्ट्र की उन्नति संभव नहीं है । यदि परिवार नागरिकता की प्रथम पाठशाला है तो माँ उस पाठशाला की प्रथम अध्यापिका है । यदि वह प्रथम शिक्षिका ही अशिक्षित है तो परिवार एक अच्छी पाठशाला कैसे सिद्ध हो सकता है । देश के भावी नागरिक योग्य व सुशिक्षित हों इसलिए उनका पालन पोषण एक सुशिक्षित माँ के नेतृत्व में होना चाहिए ।
परिवार में एक स्त्री तीन रूपों में अपनी भूमिका का निर्वाह करती है । आरंभ में एक पुत्री , तत्पश्चात एक पत्नी और फिर माँ । एक शिक्षित नारी अपनी तीनों भूमिकाओं को अच्छी तरह समझ सकती है तथा अपने कर्तव्यों का भली प्रकार निर्वहन कर सकती है । नारी ने घर से बाहर निकलकर जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में पुरुषों के समान अपनी सहभागिता निभाई है । साहित्य सृजन के क्षेत्र में वह महाश्वेता देवी है तो विज्ञान के क्षेत्र में कल्पना चावला । समाज कल्याण के क्षेत्र में वह मदर टेरेसा है तो राजनीति के क्षेत्र में वह स्वर्गीय श्रीमति इंदिरा गाँधी जैसी राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर की नेता के रूप में स्थापित हो चुकी है ।
प्राचीन समय में भी स्त्रियों को शिक्षा ग्रहण करने की पूर्ण स्वतंत्रता प्राप्त थी । वे ऋषियों के आश्रम में रहकर गुरुजन से शिक्षा ग्रहण करती थीं । वे विभिन्न कलाओं जैसे – गायन , नृत्यकला , चित्रकला , युद्धकला में पारंगत होने के साथ साथ गणितज् भी थीं ।
मध्यकालीन समय में मुस्लिम शासकों के भारत आगमन से हमारी सभ्यता व संस्कृति पर कटु प्रहार हुआ । उन्होंने न केवल भारत पर शासन किया बल्कि हमारे सामाजिक परिवेश को खंड विखंड कर दिया । इसी कारण महिलाओं को शिक्षा के क्षेत्र से वंचित किया जाने लगा और उन्हें घर की चार दीवारी में कैद कर दिया गया । अंग्रेजी शासन काल में स्त्रियों को कुछ सीमा तक स्वतंत्रता प्राप्त हुई , किंतु यह केवल उच्च व धनिक वर्ग तक ही सीमित रगी ।
भारत की स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद स्त्रियों की दशा में भी सुधार के प्रयास हुए । संविधान द्वारा देश के सभी स्त्री पुरुषों को समान मौलिक अधिकार प्रदान किए गये , जिसके अंतर्गत समान शिक्षा की व्यवस्था की गयी । इससे महिलाओं के शैक्षिक स्तर में काफी सुधार आना प्रारंभ हुआ है । महिला शिक्षा की स्थिति में सुधार का प्रमाण यह है कि स्वतंत्रता के समय भारत में महिला शिक्षा का प्रतिशत केवल 7.5 प्रतिशत था जो आज 65.46 प्रतिशत है । स्वतंत्र भारत में शिक्षित महिलाएँ न केवल अपने परिवार की देखरेख कर रही हैं अपितु अपने परिवार के रहन सहन के स्तर को ऊँचा उठाने के लिए आत्मनिर्भर होकर परिवार की आर्थिक रूप से मदद भी कर रहीं हैं ।
पौराणिक युग से लेकर आजादी के बाद के समय तक महिला साक्षरता को लेकर किये गये प्रयासों में बहुत प्रगति हुई है। हालाँकि अभी यह कार्य संतुष्टि के स्तर तक नहीं पहुँचा है। अभी भी इस दिशा में काफी काम करना बाकी है। भारत के विश्व में बाकी देशों से पिछड़ने के पीछे महिला साक्षरता की कमी का ही होना है। भारत में महिला साक्षरता को लेकर गंभीरता इसलिए कम है क्योंकि बहुत पहले समाज में महिलाओं पर तरह-तरह की पाबंदियां थोप दी गई थी। इन पाबंदियों का जल्द ही हटाना बेहद जरुरी है। इन प्रतिबंधों को हटाने के लिए हमें महिला शिक्षा को लेकर व्यापक स्तर पर जागरूकता फैलानी होगी और महिलाओं को अपने अधिकारों के प्रति प्रेरित करना होगा जिससे वे आगे आकर समाज और देश को बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सके।
महिला शिक्षा की बेहतरी के लिए निम्नलिखित योजनायें भारत सरकार द्वारा चलाई जा रही है:
सर्व शिक्षा अभियानइंदिरा महिला योजनाबालिका समृधि योजनाराष्ट्रीय महिला कोषमहिला समृधि योजनारोज़गार तथा आमदनी हेतु प्रशिक्षण केंद्रमहिलाओं तथा लड़कियों की प्रगति के लिए विभिन्न कार्यक्रमभारत में महिला शिक्षा को प्रभावित करने वाले निम्नलिखित कारण है:
कुपोषण तथा भरपेट खाना न मिलनानाबालिग उम्र में यौन उत्पीड़नमाता–पिता की ख़राब आर्थिक स्थितिकई तरह की सामाजिक पाबंदीघर में माता-पिता या सास-ससुर का कहना मानने का दबावऊँची शिक्षा हासिल करने की अनुमति ना होनाबचपन में संक्रमण रोग से लड़ने की प्रयाप्त शक्ति की कमीसर्व शिक्षा अभियान क्या है
सर्व शिक्षा अभियान एक राष्ट्रीय योजना है जिसे भारत सरकार द्वारा चलाया जा रहा है। इसका उद्देश्य 8 साल तक 6 से 14 वर्ष के बच्चों को उत्तम शिक्षा देने का है। पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा शुरू की गयी इस योजना का मुख्य लक्ष्य है:
2002 तक देश के सभी जिलो में शिक्षा को पहुँचाना।2003 तक सभी बच्चों का स्कूल में दाखिला करवाना।2007 तक सभी बच्चों की न्यूनतम 5 साल की शिक्षा अनिवार्य करना।2010 तक सभी बच्चें अपनी 8 साल की शिक्षा पूरी कर चुके हो इसको सुनिश्चित करना।