Social Sciences, asked by taranggiri0gmailcom, 6 months ago

Narmada nadi kahan hai Jahan rajrajeshwar Mandir hai​

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Answered by empanitadevi
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Explanation:

 

-यह एकमात्र ऐसी नदी है जिसका पुराण है। यह एकमात्र ऐसी नदी है जिसकी परिक्रमा की जाती है। बड़े-बड़े ऋषि मुनि नर्मदा के तटों पर गुप्त तप करते हैं।

 

-मान्यता है कि एक बार क्रोध में आकर इन्होंने अपनी दिशा परिवर्तित कर ली और चिरकाल तक अकेले ही बहने का निर्णय लिया। ये अन्य नदियों की तुलना में विपरीत दिशा में बहती हैं। इनके इस अखंड निर्णय की वजह से ही इन्हें चिरकुंआरी कहा जाता है। यहां हम आपको नर्मदा मैया से जुड़े कुछ ऐसे तथ्यों के बारे में बताने जा रहे हैं जिनके बारे में साधारणतः जानना संभव नहीं होता।

 

पुराणों में ऐसा बताया गया है कि इनका जन्म एक 12 वर्ष की कन्या के रूप में हुआ था। समुद्र मंथन के बाद भगवान शिव के पसीने की एक बूंद धरती पर गिरी जिससे मां नर्मदा प्रकट हो गईं। इसी वजह से इन्हें शिवसुता भी कहा जाता है।

 

-चिरकुंआरी मां नर्मदा के बारे में कहा जाता है कि चिरकाल तक मां नर्मदा को संसार में रहने का वरदान है। ऐसा उल्लेख मिलता है कि भगवान शिव ने मां रेवा को वरदान दिया था कि प्रलयकाल में भी तुम्हारा अंत नहीं होगा। अपने निर्मल जल से तुम युगों-युगों तक इस समस्त संसार का कल्याण करोगी।

 

-मध्य प्रदेश के खूबसूरत स्थल अमरकंटक अनूपपुर से मां नर्मदा का उद्गम स्थल है। यहां ये एक छोटी-सी धार से प्रारंभ होकर आगे बढ़ते हुए विशाल रूप धारण कर लेती हैं।

 

 

-यह स्थान अद्भुत दृश्यों के लिए भी जाना जाता है। इसी जगह पर मां रेवा का विवाह मंडप आज भी देखने मिलता है। पुराणों के अनुसार अपने प्रेमी सोनभद्र से क्रोधित होकर ही इन्होंने उल्टा बहने का निर्णय लिया और गुस्से में अपनी दिशा परिवर्तित कर ली।

 

-सोनभद्र और सखी जोहिला ने बाद में इनसे क्षमा भी मांगी, किंतु तब तक नर्मदा दूर तक बह चुकी थी। अपनी सखी के विश्वास को खंडित करने की वजह से ही जोहिला को पूज्यनीय नदियों में स्थान नहीं दिया गया है। सोन नदी या नद सोनभद्र का उद्गम स्थल भी अमरकंटक ही है।

 

-वैसे तो मां नर्मदा को लेकर अनेक मान्यताएं हैं लेकिन ऐसा बताया जाता है कि जो भी भक्त पूरी निष्ठा के साथ इनकी पूजा व दर्शन करते हैं उन्हें ये जीवनकाल में एक बार दर्शन अवश्य देती हैं।

 

-जिस प्रकार गंगा में स्नान का पुण्य है उसी प्रकार नर्मदा के दर्शन मात्र से मनुष्य के कष्टों का अंत हो जाता है।

 

-अन्य नदियों से विपरीत नर्मदा से निकले हुए पत्थरों को शिव का रूप माना जाता है। ये स्वयं प्राणप्रतिष्ठित होते हैं अर्थात् नर्मदा के पत्थरों को प्राण प्रतिष्ठित करने की आवश्यकता नहीं होती। इसी कारण देश में ही नहीं विदेशों में भी नर्मदा से निकले हुए पत्थरों की शिवलिंग के रूप में सर्वाधिक मान्यता है।

 

-ऐसी पुरातन मान्यता है कि गंगा स्वयं प्रत्येक साल नर्मदा से भेंट एवं स्नान करने आती हैं। मां नर्मदा को मां गंगा से भी अधिक पवित्र माना गया है कहा जाता है कि इसी वजह से गंगा हर साल स्वयं को पवित्र करने नर्मदा के पास पहुंचती हैं। यह दिन गंगा दशहरा का माना जाता है।

 

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