Hindi, asked by rkcheema1917, 1 month ago

Narmada Nadi ke tat ke saundarya ka varnan kijiye

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Answered by aastha2538
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Answer:

यह अपने उद्गम से पश्चिम की ओर 1,312 किमी चल कर खंभात की खाड़ी, अरब सागर में जा मिलती है। नर्मदा, मध्य भारत के मध्य प्रदेश और गुजरात राज्य में बहने वाली एक प्रमुख नदी है। मैकल पर्वत के अमरकण्टक शिखर से नर्मदा नदी की उत्पत्ति हुई है। इसकी लम्बाई प्रायः 1312 किलोमीटर है।

Answered by geeshnavi
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Explanation:

नर्मदा भारत के मध्यभाग में पूरब से पश्चिम की ओर बहने वाली मध्य प्रदेश और गुजरात राज्य में बहने वाली एक प्रमुख नदी है, जो गंगा के समान पूजनीय है। महाकाल पर्वत के अमरकण्टक शिखर से नर्मदा नदी की उत्पत्ति हुई है। नर्मदा सर्वत्र पुण्यमयी नदी बताई गई है तथा इसके उद्भव से लेकर संगम तक दस करोड़ तीर्थ हैं।

इसका उद्गम विंध्याचल की मैकाल पहाड़ी श्रृंखला में अमरकंटक नामक स्थान में है । मैकाल से निकलने के कारण नर्मदा को मैकाल कन्या भी कहते हैं । स्कंद पुराण में इस नदी का वर्णन रेवा खंड के अंतर्गत किया गया है । कालिदास के ‘मेघदूतम्’ में नर्मदा को रेवा का संबोधन मिला है , जिसका अर्थ है—पहाड़ी चट्टानों से कूदने वाली। वास्तव में नर्मदा की तेजधारा पहाड़ी चट्टानों पर और भेड़ाघाट में संगमरमर की चट्टानों के ऊपर से उछलती हुई बहती है । अमरकंटक में सुंदर सरोवर में स्थित शिवलिंग से निकलने वाली इस पावन धारा को रुद्र कन्या भी कहते हैं, जो आगे चलकर नर्मदा नदी का विशाल रूप धारण कर लेती हैं । पवित्र नदी नर्मदा के तट पर अनेक तीर्थ हैं , जहां श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है । इनमें कपिलधारा, शुक्लतीर्थ, मांधाता , भेड़ाघाट, शूलपाणि, भड़ौंच उल्लेखनीय हैं । अमरकंटक की पहाड़ियों से निकल कर छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात से होकर नर्मदा क़्ररीब 1310 किमी का प्रवाह पथ तय कर भरौंच के आगे खंभात की खाड़ी में विलीन हो जाती है । परंपरा के अनुसार नर्मदा की परिक्रमा का प्रावधान हैं, जिससे श्रद्धालुओं को पुण्य की प्राप्ति होती है । पुराणों में बताया गया है कि नर्मदा नदी के दर्शन मात्र से समस्त पापों का नाश होता है ।

इसकी लम्बाई प्रायः 1310 किलो मीटर है। यह नदी पश्चिम की तरफ जाकर खम्बात की खाड़ी में गिरती है। इस नदी के किनारे बसा शहर जबलपुर उल्लेखनीय है। इस नदी के मुहाने पर डेल्टा नहीं है। जबलपुर के निकट भेड़ाघाट का नर्मदा जलप्रपात काफ़ी प्रसिद्ध है । वेदों में नर्मदा का कोई उल्लेख नहीं है। गंगा के उपरान्त भारत की अत्यन्त पुनीत नदियों में नर्मदा एवं गोदावरी के नाम आते हैं। रेवा नर्मदा का दूसरा नाम है और यह सम्भव है कि 'रेवा' से ही 'रेवोत्तरस' नाम पड़ा हो।

ग्रंथों में उल्लेख

वैदिक साहित्य में नर्मदा के विषय में कोई स्पष्ट संकेत नहीं मिलता।

• रामायण तथा महाभारत और परवर्ती ग्रंथों में इस नदी के विषय में अनेक उल्लेख हैं। पौराणिक अनुश्रुति के अनुसार नर्मदा की एक नहर किसी सोमवंशी राजा ने निकाली थी जिससे उसका नाम सोमोद्भवा भी पड़ गया था।

• गुप्तकालीन अमरकोश में भी नर्मदा को सोमोद्भवा कहा है।

• कालिदास ने भी नर्मदा को सोमप्रभवा कहा है।

• रघुवंश में नर्मदा का उल्लेख है।

• मेघदूत में रेवा या नर्मदा का सुन्दर वर्णन है।

• वाल्मीकि रामायण में भी नर्मदा का उल्लेख है। इसके पश्चात के श्लोकों में नर्मदा का एक युवती नारी के रूप में सुंदर वर्णन है।

• महाभारत में नर्मदा को ॠक्षपर्वत से उद्भूत माना गया है।

• भीष्मपर्व में नर्मदा का गोदावरी के साथ उल्लेख है।

• श्रीमद्भागवत में रेवा और नर्मदा दोनों का ही एक स्थान पर उल्लेख है।

• शतपथ ब्राह्मण ने रेवोत्तरस की चर्चा की है, जो पाटव चाक्र एवं स्थपति (मुख्य) था, जिसे सृञ्जयों ने निकाल बाहर किया था।

• पाणिनि के एक वार्तिक ने 'महिष्मत्' की व्युत्पत्ति 'महिष' से की है, इसे सामान्यत: नर्मदा पर स्थित माहिष्मती का ही रूपान्तर माना गया है। इससे प्रकट होता है कि सम्भवत: वार्तिककार को (लगभग ई.पू. चौथी शताब्दी में ) नर्मदा का परिचय था।

• रघुवंश में रेवा (अर्थात् नर्मदा) के तट पर स्थित माहिष्मती को अनूप की राजधानी कहा गया है।

जान पड़ता है कि कहीं-कहीं साहित्य में इस नदी के पूर्वी या पहाड़ी भाग को रेवा (शाब्दिक अर्थ—उछलने-कूदने वाली) और पश्चिमी या मैदानी भाग को नर्मदा (शाब्दिक अर्थ—नर्म या सुख देने वाली) कहा गया है। (किन्तु महाभारत के उपर्युक्त उद्धरण में उदगम के निकट ही नदी को नर्मदा नाम से अभिहित किया गया है)। नर्मदा के तटवर्ती प्रदेश को भी कभी-कभी नर्मदा नाम से ही निर्दिष्ट किया जाता था। विष्णुपुराण के अनुसार इस प्रदेश पर शायद गुप्तकाल से पूर्व आभीर आदि शूद्रजातियों का अधिकार था। वैसे नर्मदा का नदी के रुप में उल्लेख है।

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