Hindi, asked by harshvardhanbaluja30, 5 hours ago

nasha story moral Munshi Premchand​

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Answered by llItzDishantll
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मुंशी प्रेमचंद की कहानी “नशा”

मुंशी प्रेमचंद की कहानी “नशा” ईश्वरी एवं बीर नामक दो युवकों की कहानी है। ईश्वरी एक धनवान ज़मींदार का बेटा है, और बीर एक निर्धन क्लर्क का। बीर ज़मींदारों का तीव्र आलोचक है, उनके विलास को वह अनैतिक बताता है। इस विषय पर उसका अक्सर ईश्वरी से वाद-विवाद हो जाता है। यों तो ईश्वरी के मिजाज़ में ज़मींदारों के सारे तेवर हैं, पर बीर के प्रति उसका व्यवहार मित्रों वाला है। बीर द्वारा की गई ज़मींदारों की आलोचना पर भी वह कभी उत्तेजित नहीं होता।

एक बार छुट्टियों में ईश्वरी बीर को अपने साथ अपने घर ले जाता है। वह बीर का परिचय एक ऐसे धनवान ज़मींदार के रुप में कराता है जो कि महात्मा गांधी का भक्त होने के कारण धनवान होते हुए भी निर्धन का सा जीवन व्यतीत करता है। इस परिचय से बीर की धाक जम जाती है; लोग उसे ‘गांधीजी वाले कुंवर साहब’ के नाम से जानने लगते हैं। ईश्वरी के साथ-साथ बीर का भी भरपूर स्वागत सत्कार किया जाता है।

रहीम के शब्दों में,

जो रहीम ओछौं बढ़े, तो अति ही इतराए।

प्यादा जब फ़रज़ी भए, टेढ़ो-टेढ़ो जाए।।

ईश्वरी तो ज़मींदारी विलास का अभ्यस्थ था, पर बीर को यह सम्मान पहली बार मिल रहा होता है। यद्यपि वह जानता है कि ईश्वरी ने उसका झूठा परिचय कराया है, पर स्वागत सत्कार में अन्धा होकर वह अपना आपा खो बैठता है। उसे नशा हो जाता है। पहले जिन बातों के लिए वह ज़मींदारों की निन्दा किया करता था – जैसे नौकरों से अपने पैर दबवाना, नौकरों से सारे काम करवाना – अब वह स्वयं भी उन आदतों में लिप्त होने लगता है। ईश्वरी चाहे थोड़ा काम अपने आप कर भी ले, पर ‘गांधीजी वाले कुंवर साहब’ नौकरों का काम भला अपने हाथों से कैसे करते? नौकरों से ज़रा भी भूल हो जाती तो कुंवर साहब उनपर आगबबूले हो उठते।

झूठ-मूठ के कुंवर साहब का नशा टूटते देर नहीं लगती। ईश्वरी के घर से लौटते समय रेलगाड़ी खचाखच भरी हुई होती है। अब नए-नवेले कुंवर साहब को ऐसी असुविधा कैसे बर्दाश्त होती? क्रोध में आकर वह अपने पास बैठे एक यात्री की पिटाई कर देते हैं, जिससे पूरे डब्बे में हंगामा मच जाता है। खिजा हुआ ईश्वरी बीर को फटकार कर कहता है, “व्हाट ऐन ईडियट यू आर, बीर!”

मुंशी जी की यह कहानी मनोरंजक तो है ही, इसमें समाज एवं मानव व्यवहार की वास्तविकताओं का भी भरपूर चित्रण है। जिसके पास (धन, सत्ता, संसाधन, सुविधा) हैं, वह उनका उपभोग अवश्य करता है। जिसके पास यह नहीं है, वह इस उपभोग की निन्दा करता है, उसको अनैतिक बताता है। और अधिकतर वह निन्दा इसीलिए करता है क्योंकि उसको वह सुविधा उपलब्ध नहीं है। यदि किसी कारण से वह सुविधा उपलब्ध हो जाती है, तो बीर की तरह निन्दक भी उसके उपभोग में पीछे नहीं रहता। मैं पूछता हूँ हम में से किसके अन्दर एक बीर नहीं छुपा हुआ है?

नशा का एक पहलू और भी है। और वह है समाज के शीर्षकों तथा सम्मानों के सामने मनुष्य का अन्धापन। ‘गांधीजी वाले कुंवर साहब’ अपने नशे में एक गरीब आदमी को अपने पास नौकरी देने का आश्वासन दे देते हैं। खुशी में पागल वह आदमी उस रात को शराब पीता है, अपनी पत्नी को पीटता है, और महाजन से लड़ाई करता है। ऐसे ही जब बीर ईश्वरी से उसका असली परिचय न बताने का कारण पूछता है, तो ईश्वरी मुस्कुरा कर जवाब देता है, “इन गधों के सामने यह चाल ज़रूरी थी, वरना सीधे मुँह बोलते भी नहीं।”

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