Hindi, asked by edwerd4714, 11 months ago

नदी की आत्मकथा हिंदी निबंध

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Answered by himanchal61
1981
नदी की आत्मकथा

मै नदी हूँ | मेरे कितने ही नाम है जैसे नदी , नहर , सरिता , प्रवाहिनी , तटिनी, क्षिप्रा आदि | ये सभी नाम मेरी गति के आधार पर रखे गए है | सर- सर कर चलती रहने के कारण मुझे सरिता कहा जाता है | सतत प्रवाहमयी होने के कारण मुझे प्रवाहिनी कहा गया है | इसी प्रकार दो तटो के बीच में बहने के कारण तटिनी तथा तेज गति से बहने के कारण क्षिप्रा कहलाती हूँ | साधारण रूप में मै नहर या नदी हूँ | मेरा नित्यप्रति का काम है की मै जहाँ भी जाती हूँ वहाँ की धरती , पशु- पक्षी , मनुष्यों व खेत – खलिहानों आदि की प्यार की प्यास बुझा कर उनका ताप हरती हूँ तथा उन्हें हरा- भरा करती रहती हूँ | इसी मेरे जीवन की सार्थकता तथा सफलता है |

आज मै जिस रूप में मैदानी भाग में दिखाई देती हूँ वैसी में सदैव से नही हूँ | प्रारम्भ में तो मै बर्फानी पर्वत शिला की कोख में चुपचाप , अनजान और निर्जीव सी पड़ी रहती थी | कुछ समय पश्चात मै एक शिलाखण्ड के अन्तराल से उत्पन्न होकर मधुर संगीत की स्वर लहरी पर थिरकती हुई आगे बढती गई | जब मै तेजी से आगे बढने पर आई तो रास्ते में मुझे इधर – उधर बिखरे पत्थरों ने , वनस्पतियों , पड़े – पौधों ने रोकना चाहा तो भी मै न रुकी | कई कोशिश करते परन्तु मै अपनी पूरी शक्ति की संचित करके उन्हें पार कर आगे बढ़ जाती |

इस प्रकार पहाडो , जंगलो को पार करती हुई मैदानी इलाके में आ पहुँची | जहाँ – जहाँ से मै गुजरती मेरे आस-पास तट बना दिए गए, क्योकि मेरा विस्तार होता जा रहा था | मैदानी इलाके में मेरे तटो के आस-पास छोटी – बड़ी बस्तियाँ स्थापित होती गई | वही अनेको गाँव बसते गए | मेरे पानी की सहायता से खेती बाड़ी की जाने लगी | लोगो ने अपनी सुविधा की लिए मुझे पर छोटे – बड़े पुल बना लिए | वर्षा के दिनों में तो मेरा रूप बड़ा विकराल हो जाता है |

इतनी सब बाधाओ को पार करते हुए चलते रहने से अब मै थक गई हूँ तथा अपने प्रियतम सागर से मिलकर उसमे समाने जा रही हूँ | मैंने अपने इस जीवन काल में अनेक घटनाएँ घटते हुए देखी है | सैनिको की टोलियाँ , सेनापतियो , राजा – महाराजाओ , राजनेताओं , डाकुओ , साधू-महात्माओं को इन पुलों से गुजरते हुए देखा है | पुरानी बस्तियाँ ढहती हुई तथा नई बस्तियाँ बनती हुई देखी है | यही है मेरी आत्मकथा |

मैंने सभी कुछ धीरज से सुना और सहा है | मै आप सभी से यह कहना चाहती हूँ की आप भी हर कदम पर आने वाली विघ्न-बाधाओ को पार करते हुए मेरी तरह आगे बढ़ते जाओ जब तक अपना लक्ष्य न पा लो |


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Answered by gionee477
1183

भूमिका : नदी प्रकृति के जीवन का एक महत्व पूर्ण अंग है। इसकी गति के आधार पर इसके बहुत नाम जैसे – नहर , सरिता , प्रवाहिनी , तटिनी , क्षिप्रा आदि होते हैं। जब मैं सरक-सरक कर चलती थी तब सब मुझे सरिता कहते थे। जब मैं सतत प्रवाहमयी हो गई तो मुझे प्रवाहिनी कहने लगे।

जब मैं दो तटों के बीच बह रही थी तो तटिनी कहने लगे और जब मैं तेज गति से बहने लगी तो लोग मुझे क्षिप्रा कहने लगे। साधारण रूप से तो मैं नदी या नहर ही हूँ। लोग चाहे मुझे किसी भी नाम से बुलाएँ लेकिन मेरा हमेशा एक ही काम होता है दुसरो के काम आना। मैं प्राणियों की प्यास बुझती हूँ और उन्हें जीवन रूपी वरदान देती हूँ।

नदी का जन्म : मैं एक नदी हूँ और मेरा जन्म पर्वतमालाओं की गोद से हुआ है। मैं बचपन से ही बहुत चंचल थी। मैंने केवल आगे बढना सिखा है रुकना नहीं। मैं एक स्थान पर बैठने की तो दूर की बात है मुझे एक पल रुकना भी नहीं आता है। मेरा काम धीरे-धीरे या फिर तेज चलना है लेकिन मै निरंतर चलती ही रहती हूँ।

मैं केवल कर्म में विश्वास रखती हूँ लेकिन फल की इच्छा कभी नहीं करती हूँ। मैं अपने इस जीवन से बहुत खुश हूँ क्योंकि मैं हर एक प्राणी के काम आती हूँ , लोग मेरी पूजा करते हैं , मुझे माँ कहते हैं , मेरा सम्मान करते हैं। मेरे बहुत से नाम एखे गये हैं जैसे :- गंगा , जमुना , सरस्वती , यमुना , ब्रह्मपुत्र , त्रिवेणी। ये सारी नदियाँ हिन्दू धर्म में पूजी जाती हैं।

नदी का घर त्यागना : मेरे लिए पर्वतमालाएं ही मेरा घर थी लेकिन मैं वहाँ पर सदा के लिए नहीं रह सकती हूँ। जिस तरह से एक लडकी हमेशा के लिए अपने माता-पिता के घर पर नहीं रह सकती उसे एक-न-एक दिन माता-पिता का घर छोड़ना पड़ता है उसी तरह से मैं इस सच्चाई को जानती थी और इसी वह से मैंने अपने माँ-बाप का घर छोड़ दिया।

मैंने माता-पिता का घर छोड़ने के बाद आगे बढने का फैसला किया। जब मैंने अपने पिता का घर छोड़ा तो सभी ने मेरा पूरा साथ दिया मैं पत्थरों को तोडती और धकेलती हुई आगे बढती ही चली गई। मुझसे आकर्षित होकर पेड़ पत्ते भी मेरे सौन्दर्य का बखान करते रहते थे और मेरी तरफ आकर्षित होते थे।

जो लोग प्र्वर्तीय देश के होते हैं उनकी सरलता और निश्चलता ने मुझे बहुत प्रभावित किया है। मैं भी उन्हं की तरह सरल और निश्चल बनी रहना चाहती हूँ। मेरे रास्ते में बड़े-बड़े पत्थरों और चट्टानों ने मुझे रोकने की पूरी कोशिश की लेकिन वो अपने इरादे में सफल नहीं हो पाए।

मुझे रोकना उनके लिए बिलकुल असंभव हो गया और मैं उन्हें चीरती हुई आगे बढती चली गई। जब भी मैं तेजी से आगे बढने की कोशिश करती थी तो मेरे रास्ते में वनस्पति और पेड़-पौधे भी आते थे ताकि वो मुझे रोक सकें लेकिन मैं अपनी पूरी शक्ति को संचारित कर लेती थी जिससे मैं उन्हें पार करके आगे बढ़ सकूं।

नदी का मैदानी भाग में प्रवेश : शुरू में मैं बर्फानी शिलाओं की गोद में बेजान , निर्जीव और चुपचाप पड़ी रहती थी। मुझे मैदानी इलाके तक पहुंचने के लिए पहाड़ और जंगल पर करने पड़े थे। जब मैं पहाड़ों को छोडकर मैदानी भाग में आई तो मुझे अपने बचपन की याद आने लगी।

मैं बचपन में पहाड़ी प्रदेशों में घुटनों के बल सरक-सरक कर आगे बढती थी और अब मैदानी भाग में आकर सरपट से भाग रही हूँ। मैंने बहुत से नगरों को ख़ुशी और हरियाली दी है। जहाँ-जहाँ से होकर मैं गुजरती गई वहाँ पर तट बना दिए गये। तटों के आस-पास जो मैदानी इलाके थे वहाँ पर छोटी-छोटी बस्तियां स्थापित होती चली गयीं।

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