नदी की आत्मकथा निबंध in hindi fast
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जब मैं दो तटों के बीच बह रही थी तो तटिनी कहने लगे और जब मैं तेज गति से बहने लगी तो लोग मुझे क्षिप्रा कहने लगे। साधारण रूप से तो मैं नदी या नहर ही हूँ। लोग चाहे मुझे किसी भी नाम से बुलाएँ लेकिन मेरा हमेशा एक ही काम होता है दुसरो के काम आना। मैं प्राणियों की प्यास बुझती हूँ और उन्हें जीवन रूपी वरदान देती हूँ।
नदी का जन्म : मैं एक नदी हूँ और मेरा जन्म पर्वतमालाओं की गोद से हुआ है। मैं बचपन से ही बहुत चंचल थी। मैंने केवल आगे बढना सिखा है रुकना नहीं। मैं एक स्थान पर बैठने की तो दूर की बात है मुझे एक पल रुकना भी नहीं आता है। मेरा काम धीरे-धीरे या फिर तेज चलना है लेकिन मै निरंतर चलती ही रहती हूँ।
मैं केवल कर्म में विश्वास रखती हूँ लेकिन फल की इच्छा कभी नहीं करती हूँ। मैं अपने इस जीवन से बहुत खुश हूँ क्योंकि मैं हर एक प्राणी के काम आती हूँ , लोग मेरी पूजा करते हैं , मुझे माँ कहते हैं , मेरा सम्मान करते हैं। मेरे बहुत से नाम एखे गये हैं जैसे :- गंगा , जमुना , सरस्वती , यमुना , ब्रह्मपुत्र , त्रिवेणी। ये सारी नदियाँ हिन्दू धर्म में पूजी जाती हैं।
नदी का घर त्यागना : मेरे लिए पर्वतमालाएं ही मेरा घर थी लेकिन मैं वहाँ पर सदा के लिए नहीं रह सकती हूँ। जिस तरह से एक लडकी हमेशा के लिए अपने माता-पिता के घर पर नहीं रह सकती उसे एक-न-एक दिन माता-पिता का घर छोड़ना पड़ता है उसी तरह से मैं इस सच्चाई को जानती थी और इसी वह से मैंने अपने माँ-बाप का घर छोड़ दिया।
मैंने माता-पिता का घर छोड़ने के बाद आगे बढने का फैसला किया। जब मैंने अपने पिता का घर छोड़ा तो सभी ने मेरा पूरा साथ दिया मैं पत्थरों को तोडती और धकेलती हुई आगे बढती ही चली गई। मुझसे आकर्षित होकर पेड़ पत्ते भी मेरे सौन्दर्य का बखान करते रहते थे और मेरी तरफ आकर्षित होते थे।
जो लोग प्र्वर्तीय देश के होते हैं उनकी सरलता और निश्चलता ने मुझे बहुत प्रभावित किया है। मैं भी उन्हं की तरह सरल और निश्चल बनी रहना चाहती हूँ। मेरे रास्ते में बड़े-बड़े पत्थरों और चट्टानों ने मुझे रोकने की पूरी कोशिश की लेकिन वो अपने इरादे में सफल नहीं हो पाए।
मुझे रोकना उनके लिए बिलकुल असंभव हो गया और मैं उन्हें चीरती हुई आगे बढती चली गई। जब भी मैं तेजी से आगे बढने की कोशिश करती थी तो मेरे रास्ते में वनस्पति और पेड़-पौधे भी आते थे ताकि वो मुझे रोक सकें लेकिन मैं अपनी पूरी शक्ति को संचारित कर लेती थी जिससे मैं उन्हें पार करके आगे बढ़ सकूं।
नदी का मैदानी भाग में प्रवेश : शुरू में मैं बर्फानी शिलाओं की गोद में बेजान , निर्जीव और चुपचाप पड़ी रहती थी। मुझे मैदानी इलाके तक पहुंचने के लिए पहाड़ और जंगल पर करने पड़े थे। जब मैं पहाड़ों को छोडकर मैदानी भाग में आई तो मुझे अपने बचपन की याद आने लगी।
मैं बचपन में पहाड़ी प्रदेशों में घुटनों के बल सरक-सरक कर आगे बढती थी और अब मैदानी भाग में आकर सरपट से भाग रही हूँ। मैंने बहुत से नगरों को ख़ुशी और हरियाली दी है। जहाँ-जहाँ से होकर मैं गुजरती गई वहाँ पर तट बना दिए गये। तटों के आस-पास जो मैदानी इलाके थे वहाँ पर छोटी-छोटी बस्तियां स्थापित होती चली गयीं।
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नदी की आत्मकथा
मैं नदी हूँ। हिमालय मेरा जन्मस्थान है। अधिकत्तर नदियों का जन्म हिमालय से होता है। हम बर्फ से पिघलकर बनती हैं और धीरे-धीरे एक धारा से विशाल और विशाल होती जाती हैं। मेरा जन्म भी ऐसी ही धारा से हुआ और आगे की यात्रा करते हुए मैं विशाल और विशाल होती गई। मुझे लोग गंगा के नाम से जानते हैं। मेरे बहुत से नाम हैं। लेकिन गंगा मेरा पवित्र नाम है। मेरा जन्म स्थान गोमुख कहलाता है।
मैं 13,800 फीट की ऊंचाई पर गंगोत्री ग्लेशियर के पास, हिमालय की पर्वत श्रृंखलाओं में उत्पन्न हुई। भारत और बांग्लादेश के माध्यम से पार करने के बाद, मैं बंगाल की खाड़ी में गिरती हूं। मेरी मुख्य सहायक नदियाँ यमुना, गोमती, घाघरा, कोसी, और उत्तर में गंडक हैं। मेरी दक्षिणी सहायक नदियाँ चंबल, बेतवा और कोसी हैं।भारत और बांग्लादेश दोनों ने मेरे पानी को साझा करने के लिए संधि पर हस्ताक्षर किए।