Hindi, asked by aadesh369, 11 months ago

नदी कि आत्मकथा पर निबंध लिखिऐ

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Answered by Disha1622
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नदी प्रकृति के जीवन का एक महत्वपूर्ण अंग है। इसकी गति के आधार पर इसके बहुत नाम जैसे – नहर, सरिता, प्रवाहिनी, तटिनी, क्षिप्रा आदि होते हैं। जब मैं सरक-सरक कर चलती थी तब सब मुझे सरिता कहते थे। जब मैं सतत प्रवाहमयी हो गई तो मुझे प्रवाहिनी कहने लगे।

जब मैं दो तटों के बीच बह रही थी तो तटिनी कहने लगे और जब मैं तेज गति से बहने लगी तो लोग मुझे क्षिप्रा कहने लगे।साधारण रूप से तो मैं नदी या नहर ही हूँ। लोग चाहे मुझे किसी भी नाम से बुलाएँ लेकिन मेरा हमेशा एक ही काम होता है दूसरों के काम आना। मैं प्राणियों की प्यास बुझाती हूँ और उन्हें जीवन रूपी वरदान देती हूँ।

नदी का जन्म : मैं एक नदी हूँ और मेरा जन्म पर्वतमालाओं की गोद से हुआ है। मैं बचपन से ही बहुत चंचल थी। मैंने केवल आगे बढना सीखा है रुकना नहीं। मैं एक स्थान पर बैठने की तो दूर की बात है मुझे एक पल रुकना भी नहीं आता है। मेरा काम धीरे-धीरे या फिर तेज चलना है लेकिन मै निरंतर चलती ही रहती हूँ।

मैं केवल कर्म में विश्वास रखती हूँ लेकिन फल की इच्छा कभी नहीं करती हूँ। मैं अपने इस जीवन से बहुत खुश हूँ क्योंकि मैं हर एक प्राणी के काम आती हूँ, लोग मेरी पूजा करते हैं, मुझे माँ कहते हैं, मेरा सम्मान करते हैं। मेरे बहुत से नाम रखे गये हैं जैसे – गंगा, जमुना, सरस्वती, यमुना, ब्रह्मपुत्र, त्रिवेणी। ये सारी नदियाँ हिंदू धर्म में पूजी जाती हैं।

नदी का घर त्यागना : मेरे लिए पर्वतमालाएं ही मेरा घर थी लेकिन मैं वहाँ पर सदा के लिए नहीं रह सकती हूँ। जिस तरह से एक लडकी हमेशा के लिए अपने माता-पिता के घर पर नहीं रह सकती उसे एक-न-एक दिन माता-पिता का घर छोड़ना पड़ता है उसी तरह से मैं इस सच्चाई को जानती थी और इसी वह से मैंने अपने माँ-बाप का घर छोड़ दिया।

मैंने माता-पिता का घर छोड़ने के बाद आगे बढने का फैसला किया। जब मैंने अपने पिता का घर छोड़ा तो सभी ने मेरा पूरा साथ दिया मैं पत्थरों को तोडती और धकेलती हुई आगे बढती ही चली गई। मुझसे आकर्षित होकर पेड़ पत्ते भी मेरे सौन्दर्य का बखान करते रहते थे और मेरी तरफ आकर्षित होते थे।

जो लोग पर्वतीय देश के होते हैं उनकी सरलता और निश्चलता ने मुझे बहुत प्रभावित किया है। मैं भी उन्हीं की तरह सरल और निश्चल बनी रहना चाहती हूँ। मेरे रास्ते में बड़े-बड़े पत्थरों और चट्टानों ने मुझे रोकने की पूरी कोशिश की लेकिन वो अपने इरादे में सफल नहीं हो पाए।

मुझे रोकना उनके लिए बिलकुल असंभव हो गया और मैं उन्हें चीरती हुई आगे बढती चली गई। जब भी मैं तेजी से आगे बढने की कोशिश करती थी तो मेरे रास्ते में वनस्पति और पेड़-पौधे भी आते थे ताकि वो मुझे रोक सकें लेकिन मैं अपनी पूरी शक्ति को संचारित कर लेती थी जिससे मैं उन्हें पार करके आगे बढ़ सकूं।

नदी का मैदानी भाग में प्रवेश : शुरू में मैं बर्फानी शिलाओं की गोद में बेजान, निर्जीव और चुपचाप पड़ी रहती थी। मुझे मैदानी इलाके तक पहुंचने के लिए पहाड़ और जंगल पार करने पड़े थे। जब मैं पहाड़ों को छोडकर मैदानी भाग में आई तो मुझे अपने बचपन की याद आने लगी।

मैं बचपन में पहाड़ी प्रदेशों में घुटनों के बल सरक-सरक कर आगे बढती थी और अब मैदानी भाग में आकर सरपट से भाग रही हूँ। मैंने बहुत से नगरों को खुशी और हरियाली दी है। जहाँ-जहाँ से होकर मैं गुजरती गई वहाँ पर तट बना दिए गये। तटों के आस-पास जो मैदानी इलाके थे वहाँ पर छोटी-छोटी बस्तियां स्थापित होती चली गयीं।

बस्तियों से गाँव बनते चले गये। मेरे पानी की सहायता से लोग खेती करने लगे। जिन दिनों वर्षा होती है उन दिनों मेरा रूप बहुत विकराल हो जाता है। जिसकी वजह से मैं अपने मार्ग को छोडकर मैदानी क्षेत्र में प्रवेश कर जाती हूँ।

नदी खुशहाली का कारण : सिर्फ मैं ही समाज और देश की खुशहाली के लिए अपना सब कुछ न्योछावर करती आ रही हूँ।मुझ पर बांध बनाकर नहरे निकली गयीं। नहरों से मेरा निश्चल जल दूर-दूर तक ले जाया गया। मेरे इस निश्चल जल को खेतों की सिचाई, घरेलू काम करने, पीने के लिए और कारखानों में प्रयोग किया गया।

मेरे इस निश्चल जल से प्रचंड बिजली को बनाया गया। इस बिजली को देश के कोने-कोने में रोशनी करने, रेडियो, दूरदर्शन चलाने में प्रयोग किया गया। मेरा रोज का काम होता है कि मैं जहाँ भी जाती हूँ वहाँ के पशु-पक्षी, मनुष्य, खेत-खलियानों और धरती की प्यार रूपी प्यास को बुझाती हूँ और उनके ताप को कम करके उन्हें हर-भरा बना देती हूँ।

इन्हीं के कारण नदी की सरलता और सार्थकता सिद्ध होती है। लोग मेरे जल से अपनी प्यास बुझाते हैं और अपने शरीर को शीतल करने के लिए भी मेरे जल का प्रयोग करते हैं। मेरे जल के प्रयोग से किसान अपनी आजीविका चलते हैं।

आशा करती हूँ कि यह निबंध आपकी सहायता करेगा।

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