नदी किनारे एक घंटा निबंध
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नदी के बिताए एक घंटा से बहुत सिख कर आई :
नदी जब निकलती है पहाड़ों के बीच से , कितना वेग , कितना साहस , कितना विश्वास ,जैसे कोई फिक्र नहीं , बस दौड़ते जाना है ,बस आगे बढ़ते जाना है | नदी कभी घुटने नहीं टेकती | नदी अपना रास्ता खुद बनती आगे चलती रहती है | नदी रुकती नहीं है लाख चाहे उसे बांधो, ओढ़ कर शैवाल वह चलती रहेगी।
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