नदी की उपयोगिता लिखिए
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नदी व्यवस्था मौसम के हिसाब से बदलती रहती है। एक वर्ष में एक नदी के चैनल में पानी के प्रवाह के स्वरूप को नदी व्यवस्था के रूप में जाना जाता है। उत्तर भारत के हिमालय से निकलने वाली नदियों बारहमासी हैं क्योंकि वे ग्लेशियरों से बर्फ पिघलने के माध्यम से भर जाती हैं और इनमे बरसात के मौसम के दौरान बारिश के पानी की वजह से भर जाता है| दक्षिण भारत की नदियों ग्लेशियरों से नहीं नकलती और इसी वजह से उनके प्रवाह के स्वरूप में उतार-चढ़ाव उत्पन्न होता है। मानसून की बारिश के दौरान इन नदियों में प्रवाह काफी बढ़ जाता है। इस प्रकार दक्षिण भारत की नदियों की व्यवस्था को वर्षा द्वारा नियंत्रित किया जाता है जो प्रायद्वीपीय पठार के एक भाग में दूसरे भाग से भिन्न होता है|बहाव का मतलब एक समय पर मापे गए नदी में बह रहे पानी की मात्रा है। यह या तो क्यूसेक (क्यूबिक फीट प्रति सेकंड) या क्यूमेक्स (क्यूबिक मीटर प्रति सेकेंड) में मापा जाता है। गंगा नदी जनवरी से जून की अवधि के दौरान पानी का स्टार अपने न्यूनतम प्रवाह पर होता है। अधिकतम प्रवाह या तो अगस्त या सितंबर में उपलब्ध हो जाता है। सितंबर के बाद प्रवाह में लगातार गिरावट आने लगती है। इस प्रकार बरसात के मौसम के दौरान इस नदी में मानसून वयवस्था रहती है। गंगा घाटी के पूर्वी हिस्से और पश्चिमी हिस्से में नदी वयवस्था में विचित्र मतभेद हैं। गर्मी के शुरुआती हिस्से में मानसून की बारिश शुरू होने से पहले बर्फ पिघलने के कारण गंगा अपने में एक बडे प्रवाह को बनाए रखती है। फरक्का में गंगा का अधिकतम बहाव 55,000 क्यूसेक है जबकि औसत न्यूनतम केवल 1,300 क्यूसेक है।
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