नदी निकलती है पर्वत से, मैदानों में बहती है।
और अंत में मिल सागर से, एक कहानी कहती है।
बचपन में छोटी थी पर मैं, बड़े वेग से बहती थी।
आँधी-तूफाँ, बाढ़-बवंडर, सब कुछ हँसकर सहती थी।
मैदानों में आकर मैंने, सेवा का संकल्प लिया।
और बना जैसे भी मुझसे, मानव का उपकार किया।
अंत समय में बचा शेष जो, सागर को उपहार दिया
सब कुछ अर्पित करके अपने, जीवन को साकार किया।
पद्यांश में प्रयुक्त प्राकृतिक घटक?
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बचपन में छोटी थी पर मैं, बड़े वेग से बहती थी। आँधी-तूफाँ, बाढ़-बवंडर, सब कुछ हँसकर सहती थी। मैदानों में आकर मैंने, सेवा का संकल्प लिया। और बना जैसे भी मुझसे, मानव का उपकार किया।
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नदी निकलती है पर्वत से, मैदानों में बहती है।
और अंत में मिल सागर से, एक कहानी कहती है।
बचपन में छोटी थी पर मैं, बड़े वेग से बहती थी।
आँधी-तूफाँ, बाढ़-बवंडर, सब कुछ हँसकर सहती थी।
मैदानों में आकर मैंने, सेवा का संकल्प लिया।
और बना जैसे भी मुझसे, मानव का उपकार किया।
अंत समय में बचा शेष जो, सागर को उपहार दिया
सब कुछ अर्पित करके अपने, जीवन को साकार किया।
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